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रविवार, 27 जनवरी 2013

भोजपुरी दोहा सलिला : संजीव 'सलिल'

भोजपुरी दोहा सलिला :
संजीव 'सलिल'
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रउआ आपन देस में, हँसल छाँव सँग धूप।
किस्सा आपन देस का, इत खाई उत कूप।।
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रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच।
चमचे बदे बधाई बा, 'सलिल' न देखल साँच।।
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चिउड़ा-लिट्टी ना रुचे, बिरयानी की चाह।
चली बहुरिया मेम बन, घर फूंकन की राह।।
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रोटी की खातिर 'सलिल', जिनगी भयल रखैल।
कुर्सी के खातिर भइल, हाय! सियासत गैल।।
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आजु-काल्हि के रीत बा, कर औसर से प्यार।
कौनौ आपन देस में, नहीं किसी का यार।।
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खाली चउका देखि के, दिहले मूषक भागि।
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आगि।।
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रउआ रख संसार में, सबकी खातिर प्रेम।
हर पियास हर किसी की, हर से चाहल छेम।।
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