ग़ज़ल:
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रहनुमा चाहिए
- ओमप्रकाश तिवारी
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(सीमा
पर दो जवानों के सिर कटने के सप्ताह भर बाद हमारे प्रधानमंत्री ने मुंह
खोले । उन्हें मुबारकबाद देते हुए एक तुकबंदी प्रस्तुत है) रहनुमा चाहिए
रहनुमा चाहिए मुंह में ज़ुबान हो जिसके ,
दिल में थोड़ा ही सही पर ईमान हो जिसके ।
हम हैं तैयार बहाने को लहू भी अपना ,
सिर्फ दो बूंद पसीने की आन हो जिसके ।
हमारे साथ जो घर अपना जला सकता हो,
इस रिआया पे खुदा मेहरबान हों जिसके ।
नहीं है राम का युग ना यहां गांधी कोई ,
फिर भी दो-चार सही कद्रदान हों जिसके ।
कोई किसी को निवाले नहीं देता आकर ,
किंतु नीयत में तो अमनो-अमान हो जिसके ।
चलेगी जात-पांत बात-बुराई सारी ,
जेहन में घूमता हिंदोस्तान हो जिसके ।
दिल में थोड़ा ही सही पर ईमान हो जिसके ।
हम हैं तैयार बहाने को लहू भी अपना ,
सिर्फ दो बूंद पसीने की आन हो जिसके ।
हमारे साथ जो घर अपना जला सकता हो,
इस रिआया पे खुदा मेहरबान हों जिसके ।
नहीं है राम का युग ना यहां गांधी कोई ,
फिर भी दो-चार सही कद्रदान हों जिसके ।
कोई किसी को निवाले नहीं देता आकर ,
किंतु नीयत में तो अमनो-अमान हो जिसके ।
चलेगी जात-पांत बात-बुराई सारी ,
जेहन में घूमता हिंदोस्तान हो जिसके ।
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