लघुकथा:
मरम्मत

संजीव 'सलिल'
*
- 'सर! मेरी बिटिया का विवाह तय हो गया है, कृपया, मेरी कोठरी में कुछ मरम्मत और पुताई करा दीजिये, बहुत मेहरबानी होगी.' चपरासी ने कार्यपालन यंत्री से प्रार्थना की.
= 'अभी पुताई कैसे कराई जा सकती है? इसके लिये कोई फण्ड नहीं है.' टका सा उत्तर पाकर चपरासी निराश हो लौट गया.
थोड़ी देर बाद उपयंत्री ने कक्ष में प्रवेश कर कार्यपालन यंत्री से कहा:' सर! अपने बुलाया था?'
= हाँ, कलेक्टर बंगले से फोन था... उनके बंगले में मरम्मत करा दो... कुछ पुतायी भी...'
-'सर! अभी एक माह पहले ही तो सब काम कराया है... साहब ने जो टाइल, डिस्टेम्पर और पेंट पसंद किया वही लगाया... अब में साहब कहती हैं पसंद नहीं है, बदल दो. क्या करूँ कम से कम ढाई-तीन लाख़ का काम है.'
= ' तो होने दो... करना तो पड़ेगा ही... कलेक्टर को कौन नाराज करेगा?'
- ठीक है सर! पर बजट?...'
= करा दो चपरासियों के क्वार्टरों की जगह यह करा दो... उसे अगले साल...'
यस सर! कह कर चला गया उपयंत्री.
++++++++++

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
मरम्मत
संजीव 'सलिल'
*
- 'सर! मेरी बिटिया का विवाह तय हो गया है, कृपया, मेरी कोठरी में कुछ मरम्मत और पुताई करा दीजिये, बहुत मेहरबानी होगी.' चपरासी ने कार्यपालन यंत्री से प्रार्थना की.
= 'अभी पुताई कैसे कराई जा सकती है? इसके लिये कोई फण्ड नहीं है.' टका सा उत्तर पाकर चपरासी निराश हो लौट गया.
थोड़ी देर बाद उपयंत्री ने कक्ष में प्रवेश कर कार्यपालन यंत्री से कहा:' सर! अपने बुलाया था?'
= हाँ, कलेक्टर बंगले से फोन था... उनके बंगले में मरम्मत करा दो... कुछ पुतायी भी...'
-'सर! अभी एक माह पहले ही तो सब काम कराया है... साहब ने जो टाइल, डिस्टेम्पर और पेंट पसंद किया वही लगाया... अब में साहब कहती हैं पसंद नहीं है, बदल दो. क्या करूँ कम से कम ढाई-तीन लाख़ का काम है.'
= ' तो होने दो... करना तो पड़ेगा ही... कलेक्टर को कौन नाराज करेगा?'
- ठीक है सर! पर बजट?...'
= करा दो चपरासियों के क्वार्टरों की जगह यह करा दो... उसे अगले साल...'
यस सर! कह कर चला गया उपयंत्री.
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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8 टिप्पणियां:
Indira Pratap ✆ yahoogroups.com
vicharvimarsh
sanjivji ,
ati marmik laghu katha .hindustan men yahi saty hai.yahan 80 % sankhya muuk pashu ke saman hii ji rahi hai .
Regards
indira
sn Sharma ✆ yahoogroups.com
vicharvimarsh
आ० आचार्य जी,
अति सामयिक और मार्मिक रचना|उच्चस्तर के भ्रष्टाचार का जीता जागता उदाहरण|बहुत कुछ सोचने समझने को विवश करता है|आज के सामाजिक और राजनैतिक परिवेश को उजागर करती आपकी यह लघुकथा उत्तम है|
सादर
कमल
- prans69@gmail.com
यथार्थ चित्रण .
प्राण शर्मा
deepti gupta ✆ yahoogroups.com
icharvimarsh
सच की बहुत सही तस्वीर प्रतुत करती हुई लघु कथा !
सादर,
दीप्ति
vijay ✆ yahoogroups.com vicharvimarsh
आ० संजीव जी,
जो सभी के इर्द-गिर्द हो रहा है, आपकी लघु कथा उसका सजल चित्रण करती है ।
विजय
- mcdewedy@gmail.com
तथ्यात्मक लघुकथा हेतु बधाई सलिल जी.
महेश चन्द्र द्विवेदी
- sosimadhu@gmail.com
सत्य कथा , सौ फी सदी सत्य ।
मधु
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com
vicharvimarsh
यही तो चारों ओर हो रहा है|
इसका खामियाजा 'बेचारों' को ही
भुगतना पड़ता है|
सारगर्भित चिन्तन हेतु बधाई
सादर
प्रणव
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