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शनिवार, 25 अगस्त 2012

शिवस्तोत्रं - उदयभानु तिवारी 'मधुकर'

   शिवस्तोत्रं



उदयभानु तिवारी 'मधुकर'
*
शिव अनंत शक्ति विश्व दीप्ति सत्य सुंदरम्.
प्रसीद मे प्रभो अनादिदेव जीवितेश्वरम्.



नमो-नमो सदाशिवं पिनाकपाणि शंकरं.
केशमध्य जान्हवी झरर्झरति सुनिर्झरं.
भालचंद्र अद्भुतं भुजंगमाल शोभितं.
नमोस्तु ब्रह्मरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.१.



करालकालकंटकं कृपालु सुर मुनीन्द्रकं.
ललाटअक्षधारकं प्रभो! त्रिलोकनायकं.
परं तपं शिवं शुभं निरंक नित्य चिन्तनं.
नमोस्तु विश्वरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.२.



महाश्वनं मृड़ोनटं त्रिशूलधर अरिंदमं.
महायशं जलेश्वरं वसुश्रवा धनागमं.
निरामयं निरंजनं महाधनं सनातनं.
नमोस्तु वेदरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.३.



कनकप्रभं दुराधरं सुराधिदेव अव्ययं.
परावरं प्रभंजनं वरेण्यछिन्नसंशयं.
अमृतपं अजितप्रियं उन्नघ्रमद्रयालयं.
नमोस्तु नीलरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.४.



परात्परं प्रभाकरं तमोहरं त्र्यम्बकं.
महाधिपं निरान्तकं स्तव्य कीर्तिभूषणं.
अनामयं मनोजवं चतुर्भुजं त्रिलोचनं.
नमोस्तु सोमरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.५.



स्तुत्य आम्नाय शम्भु शम्बरं परंशुभं.
महाहदं पदाम्बुजं रति: प्रतिक्षणं  मम.
विद्वतं विरोचनं परावरज्ञ सिद्धिदं.
नमोस्तु सौम्यरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.६.



आत्मभू: शाश्वतं नमोगतिं जगद्गुरुं.
अलभ्य भक्ति देहि मे करोतु प्रभु परं सुखं.
सुरेश्वरं महेश्वरं गणेश्वरं धनेश्वरं.
नमोस्तु सूक्ष्मरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.७.



शिवस्य नाम अमृतं 'उदय' त्रितापनाशनं.
करोतु जाप मे मनं नमो नमः शिवः शिवं.
मोक्षदं महामहेश ओंकार त्वं स्वयं. 
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.७.



पूजनं न अर्चनं न शक्ति-भक्ति साधनं.
जपं न योग आसनं न वन्दनं उपासनं
मनगुनंत प्रतिक्षणं शिवं शिवं शिवं शिवं.  
नमोस्तु शांतिरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.९.



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4 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

अद्भुत... शिवतांडव स्तोत्र की लय पर यह सुमधुर शिवस्तोत्र रच पाना वस्तुतः ईश कृपा है. आपकी लेखनी को शत-शत नमन.

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com ekavita


बहुत सुखमय ,पवित्र मानसिकता तैयार कर दी इस संस्कृत स्तुति ने|
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं,
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं
की स्मृति आ गई |
सादर
प्रणव

achal verma ने कहा…



आ.आचार्य सलिल,
आपकी विद्वता भरी महादेव के स्तुति से मुझे अचानक गोसाईं जी की ये स्तुति याद आ गई, जो है तो बहुत लम्बी पर जितनी याद है उसको अपने शब्दों में ढालने की धृष्टता कर रहा हूँ. जानते हुए भी की भाषा शुद्ध नहीं।
क्योंकि यही तो महानता है महादेव की उनको भाषा से नहीं,भाव से लगाव है :

करती है कल्लोल ये अमृत घोल जहा गंगा धारा
भाल चमकता बाल चन्द्रमा फैलाए जो उजियारा
कर्णफूल है कुनडल जैसे लटक रहे शिशुनाग जहा
मुख प्रसन्न है नीलकंठ हैं भस्म लपेटे रहें वहां।
मुंडमाल मृगराज छाल ही लिपटे तन में है शोभित
हम नतमस्तक करे नमन नित तुलसीदास से है वर्णित।।

स्फुरंमौलिकल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भाबालेंदु कंठे भुजंगा
चलत्कुंडलम भ्रुसुनेत्रम विशालं
प्रसन्नाननं नील कण्ठं दयालं
मृगाधीश चर्माम्बरम मुण्ड मालम
प्रियः शंकरः सर्व नाथं भजामि ।।

सुझाव सर माथे पर आमंत्रित हैं ।

अचल वर्मा

Divya Narmada ने कहा…

आत्मीय!
इस महादेव स्तुति की रचना श्री उदयभानु तिवारी 'मधुकर' ने की है. उन्हें आपकी बधाई पहुँचा रहा हूँ.