एक गीत -बादलों के नाम
महेंद्र शर्मा
अब तो बरसो आ गया बरसात का मौसम ,
ज़िंदगी में चन्द खुशियाँ, ढेर सारे गम...
बरसना बस में नहीं, क्या,नभ की रखवाली करोगे,
जो धरा से जल पिया है,वह, कहाँ खाली करोगे,
भाग्य की अभ्यर्थना में , कर्म बौने हो रहे हैं,
खेलता प्रारब्ध हम से, हम खिलौने हो रहे हैं,
प्यास के आकर्षणों में ,समूचा ब्रम्हांड प्यासा ,
सूर्य प्यासा नवग्रहों का, इस धरा का चाँद प्यासा,
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