एक षटपदी:
प्रेम
संजीव 'सलिल'
*
तन न मिले ,मन से मिले, थे शीरीं-फरहाद.
लैला-मजनूं को रखा, सदा समय ने याद..
दूर सोहनी से रहा, मन में बस महिवाल.
ढोल-मारू प्रेम की, अब भी बने मिसाल..
मिल न मिलन के फर्क से, प्रेम रहे अनजान.
आत्म-प्रेम खुशबू सदृश, 'सलिल' रहे रस-खान..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
प्रेम
संजीव 'सलिल'
*
तन न मिले ,मन से मिले, थे शीरीं-फरहाद.
लैला-मजनूं को रखा, सदा समय ने याद..
दूर सोहनी से रहा, मन में बस महिवाल.
ढोल-मारू प्रेम की, अब भी बने मिसाल..
मिल न मिलन के फर्क से, प्रेम रहे अनजान.
आत्म-प्रेम खुशबू सदृश, 'सलिल' रहे रस-खान..
*
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सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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6 टिप्पणियां:
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
कविता अच्छी लगी ।
विजय
kiran5690472@yahoo.co.in ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
Wah Salil Ji bahut sundar.
Aap ki rachna ne Bhaktikaal ki yaad dila di
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
अति मनोहारी ।
विजय
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
संजीव जी,
कमाल की 'चटपटी' लिखी है!
ढेर सराहना कुबूलें,
सादर,
दीप्ति
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
आ० आचार्य जी,
लगी भली यह षट्पदी प्रेम रूप अनुरूप
लैला मजनूँ व शीरीं फरहद का प्रेम अनूप
सादर,
कमल
Santosh Bhauwala ✆ yahoogroups.com
kavyadhara
आदरणीय सलिल जी, प्रेम की गहरी अभिब्यक्ति !!साधुवाद
संतोष भाऊवाला
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