एक कविता

मैत्रेयी अनुरूपा
*
मैत्रेयी अनुरूपा
*
उलझते रहे
गुत्थियों की तरह
प्रश्न पर प्रश्न
और उन्हीं के उलझाव में
खो गयी ज़िन्दगी
तलशते हुए
अधूरे समीकरण का हल.
हथेलियों की ज्यामिति
सुलझी नहीं
बीजगणित से
और हम व्यर्थ में
गंवाते रहे
औसत और अनुपात के
आँकड़ों में
उलझी हुई अपनी साँसें
हल-जानते हुए भी
स्वीकारा नहीं
और फिर से
उलझ कर रह गये
प्रश्नहीन प्रश्नों में.
*
<maitreyi_anuroopa@yahoo.com>
गुत्थियों की तरह
प्रश्न पर प्रश्न
और उन्हीं के उलझाव में
खो गयी ज़िन्दगी
तलशते हुए
अधूरे समीकरण का हल.
हथेलियों की ज्यामिति
सुलझी नहीं
बीजगणित से
और हम व्यर्थ में
गंवाते रहे
औसत और अनुपात के
आँकड़ों में
उलझी हुई अपनी साँसें
हल-जानते हुए भी
स्वीकारा नहीं
और फिर से
उलझ कर रह गये
प्रश्नहीन प्रश्नों में.
*
<maitreyi_anuroopa@yahoo.com>
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