कविता:
आभास
बीनू भटनागर
सूखे सूखे होंट,
बाट निहारती पलकें
कुछ आभास,
कोई आहट,
गूँजा है कंही,
कोई प्रेम गीत।
मै खो गई,
सपनों के झुरमट मे,
वीणा की झंकार,
दूर बजी बंसी,
गरजे बादल,
बिजुरी चमकी,
तन दहका,
मन महका,
पायल खनकी,
काजल बिखरा,
अहसास तुम्हारे आने का,
पाने से ज़्यादा सुन्दर है।
चितचोर छुपा है,
दूर कंही,
सपनों मे जिसको देखा था,
अहसास नया,
आभास नया,
पर ना पाना चाहूँ उसको,
बस,
दूर खड़ी महसूस करूँ
अपने मन के,
मधुसूदन को।
- binu.bhatnagar@gmail.com
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आभास
बीनू भटनागर
सूखे सूखे होंट,
बाट निहारती पलकें
कुछ आभास,
कोई आहट,
गूँजा है कंही,
कोई प्रेम गीत।
मै खो गई,
सपनों के झुरमट मे,
वीणा की झंकार,
दूर बजी बंसी,
गरजे बादल,
बिजुरी चमकी,
तन दहका,
मन महका,
पायल खनकी,
काजल बिखरा,
अहसास तुम्हारे आने का,
पाने से ज़्यादा सुन्दर है।
चितचोर छुपा है,
दूर कंही,
सपनों मे जिसको देखा था,
अहसास नया,
आभास नया,
पर ना पाना चाहूँ उसको,
बस,
दूर खड़ी महसूस करूँ
अपने मन के,
मधुसूदन को।
- binu.bhatnagar@gmail.com
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1 टिप्पणी:
- kiran5690472@yahoo.co.in
Aadarniye Binu Ji, aap ki rachna mein prem ka satwik bhao nihit hai.
अहसास तुम्हारे आने का,
पाने से ज़्यादा सुन्दर है।
Bahut sundar !!!
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