प्रदत्त शब्द :- आभूषण, गहना
दिन :- बुधवार
तारीख :- ११-०७-२०१८
विधा :- दोहा छंद (१३-११)
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आभूषण से बढ़ सकी, शोभा किसकी मीत?
आभूषण की बढ़ा दे, शोभा सच्ची प्रीत.
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'आ भूषण दूँ' टेर सुन, आई वह तत्काल.
भूषण की कृति भेंट कर, बिगड़ा मेरा हाल.
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गहना गह ना सकी तो, गहना करती रंज.
सास-ननदिया करेंगी, मौका पाकर तंज.
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अलंकार के लिए थी, अब तक वह बेचैन.
'अलंकार संग्रह' दिया, देख तरेरे नैन.
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रश्मि किरण मुख पर पड़ी, अलंकार से घूम.
कितनी मनहर छवि हुई, उसको क्या मालूम?
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अलंकारमय रमा को, पूज रहे सब लोग.
गहने रहित रमेश जी, मन रहे हैं सोग.
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मिली सुंदरी ज्वेल सी, ज्वेलर हो हूँ धन्य.
माँगे मिली न ज्वेलरी, हुई उसी क्षण वन्य.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 12 जुलाई 2021
दोहे अलंकार के
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