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बुधवार, 14 जुलाई 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला
आशा
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आशा मत तजना कभी, रख मन में विश्वास।
मंजिल पाने के लिए, नित कर अथक प्रयास।।
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आशा शैली; निराशा, है चिंतन का दोष।
श्रम सिक्का चलता सदा, कर सच का जयघोष।।
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आशा सीता; राम है, कोशिश लखन अकाम।
हनुमत सेवा-समर्पण, भरत त्याग अविराम।।
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आशा कैकेयी बने, कोशिश पा वनवास।
अहं दशानन मारती, जीवन गहे उजास।।
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आशा कौशल्या जने, मर्यादा पर्याय।
शांति सुमित्रा कैकयी, सुत धीरज पर्याय।
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आशा सलिला बह रही, शिला निराशा तोड़।
कोशिश अंकुर कर रहे, जड़ें जमाने होड़।।
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आशा कोलाहल नहीं, करती रहती मौन।
जान रहा जग सफलता, कोशिश जाने कौन?
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आशा सपने देखती, श्रम करता साकार।
कोशिश उनमें रंग भर, हार न देती हार।।
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आशा दिख-छिपती कभी, शशि-बादल सम खेल।
कहे धूप से; छाँव से, रखना सीखो मेल।।
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आशा माँ बहिना सखी, संगिन बेटी साध।
श्वास-आस सम साथ रख, आजीवन आराध।।
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आशा बिन होता नहीं, जग-जीवन संजीव।
शैली सलिल सदृश रहे, निर्मल पा राजीव।।
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१४-७-२०१९

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