दोहा सलिला
गले मिले दोहा-यमक ३
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गरज रहे बरसे नहीं, आवारा घन श्याम
नहीं अधर में अधर धर, वेणु बजाते श्याम
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कृष्ण वेणु के स्वर सुने, गोप सराहें भाग
सुन न सके वे जो रहे, श्री के पीछे भाग
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हल धर कर हलधर चले, हलधर कर थे रिक्त
चषक थाम कर अधर पर, हुए अधर द्वय सिक्त
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बरस-बरस घन बरस कर, करें धरा को तृप्त
गगन मगन बादल नचे, पर नर रहा अतृप्त
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असुर न सुर को समझते, अ-सुर न सुर के मीत
ससुर-सुता को स-सुर लख, बढ़ा रहे सुर प्रीत
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पग तल पर रख दो बढें, उनके पग तल लक्ष्य
हिम्मत यदि हारे नहीं, सुलभ लगे दुर्लक्ष्य
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ताल तरंगें पवन संग, लेतीं पुलक हिलोर
पत्ते देते ताल सुन, ऊषा भाव-विभोर
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दिल कर रहा न संग दिल, जो वह है संगदिल
दिल का बिल देता नहीं, नाकाबिल बेदिल
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हसीं लबों का तिल लगे, कितना कातिल यार
बरबस परबस दिल हुआ, लगा लुटाने प्यार
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दिलवर दिल वर झूमता, लिए दिलरुबा हाथ
हर दिल हर दिल में बसा, वह अनाथ का नाथ
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रीझा हर-सिंगार पर, पुष्पित हरसिंगार
आया हरसिंगार हँस, बनने हर-सिंगार
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२४-७-२०१६
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 24 जुलाई 2021
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