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शनिवार, 17 जुलाई 2021

कार्य शाला अनीता शर्मा

कार्य शाला:
--अनीता शर्मा
शायरी खुदखुशी का धंधा है।
अपनी ही लाश, अपना ही कंधा है ।
आईना बेचता फिरता है शायर उस शहर मे
जो पूरा शहर ही अंधा है।।
*
-संजीव
शायरी धंधा नहीं, इबादत है
सूली चढ़ना यहाँ रवायत है
ज़हर हर पल मिला करता है पियो
सरफरोशी है, ये बगावत है
१७-७-२०१८
*
कार्यशाला: प्रश्नोत्तर
रोज मैं इस भँवर से दो- चार होता हूँ
क्यों नहीं मैं इस नदी से पार होता हूँ ।
*
लाख रोके राह मेरी, है मुझे प्यारी
इसलिए हँस इसी पर सवार होता हूँ ।
*
१७-७-२०२० 

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