संजीव
*
मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा।
मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा।
*
लाख दागो गोलियाँ
सर छेद दो
मैं नहीं बस्ता तजूँगा।
गया विद्यालय
न वापिस लौट पाया।
तुम गए हो जीत
यह किंचित न सोचो।
भोर होते ही उठाकर
फिर नए बस्ते हजारों
मैं बढूँगा, मैं बढूँगा, मैं बढूँगा।
मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा।।
*
खून की नदियाँ बहीं
उसमें नहा
हर्फ़-हिज्जे फिर पढ़ूँगा।
कसम रब की है
मदरसा हो न सूना।
मैं रचूँगा गीत
मिलकर अमन बोओ।
भुला औलादें तुम्हें
मेरे साथ होंगी।
मैं गढ़ूँगा, मैं गढ़ूँगा, मैं गढ़ूँगा।
मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा।।
*
आसमां गर स्याह है
तो क्या हुआ?
हवा बनकर मैं बहूँगा।
दहशतों के
बादलों को उड़ा दूँगा।
मैं बनूँगा सूर्य
तुम रण हार रोओ।
वक़्त लिक्खेगा कहांणी
फाड़ मैं पत्थर उगूँगा।
मैं खिलूँगा, मैं खिलूँगा, मैं खिलूँगा।
मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा।।
***
(टीप - पेशावर के मदरसे में दहशतगर्दों द्वारा गोलीचालन के विरोध में)
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