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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

गुरु पर दोहे

: विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर :
गुरु पूर्णिमा पर दोहोपहार
*
जग-गुरु शिव शंकारि हैं, रखें अडिग विश्वास
संग भवानी शक्ति पर, श्रद्धा हरती त्रास
*
गुरु गिरि सम गरिमा लिए, रखता सिर पर हाथ
शिष्य वही कुछ सीखा, जिसका नत हो माथ
*
गुरु-वंदन कर ध्यान से, सुनिए उसके बोल
ग्यान-पिटारी से मिलें, रत्न तभी अनमोल
*
गुरु से करिए प्रश्न हो, निज जिग्यासा शांत
जो गुरु की ले परीक्षा, भटके होकर भ्रांत
*
मात्र एक दिन गुरु सुमिर, मिले न पूरा ग्यान
गुरु सुमिरन कर सीख नित, दुहरा तज अभिमान
*
सूर्य-चंद्र की तरह ही, हों गुरु-शिष्य हमेश
इसकी ग्यान-किरण करे, उसमें सतत प्रवेश
*
गुरु-प्रति नत शिर नमन कर, जो पाता आशीष
उस पर ईश्वर सदय हों, बनता वही मनीष
*
अंध भक्ति से दूर रह, भक्ति-भाव हर काल
रखिए गुरु के प्रति सदा, दोनों हों खुशहाल 
*
गुरु-मत को स्वीकारिए, अगर रहे मतभेद 
नहीं पनपने दीजिए, किंचित भी मनभेद 
*
नया करें तो मानिए, गुरु का ही आभार 
भवन तभी होता खड़ा, जब हो दृढ़ आधार 
*
दर्शन को बेज़ार हूँ, अर्पित करूँ प्रणाम
सिखा रहे गुरु ज्ञात कुछ, कुछ अज्ञात-अनाम
*
गुरु हो जिसको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य 
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य 
*
वही पूर्णिमा निरूपमा, जो दे जग उजियार 
चंदा तारे नभ धरा, उस पर हों बलिहार 
*
गुरु गुरुता पर्याय हो, खूब रहे सारल्य
दृढ़ता में गिरिवत रहे, सलिला सा तारल्य
*
गुरु गरिमा हो हिमगिरी, शंका का कर अंत
गुरु महिमा मंदाकिनी, शिष्य नहा हो संत
*
सद्गुरु ओशो ज्ञान दें, बुद्धि प्रदीपा ज्योत
रवि-शंकर खद्योत को, कर दें हँस प्रद्योत
*
गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर.
शंका मिट विश्वास हो, दिव्या-चक्षु युत सूर.
*
गुरु न किसी को मानिये, अगर नहीं स्वीकार
आधे मन से गुरु बना, पछताएँ मत यार
*
गुरुघंटाल न हो कहीं, गुरु रखिए यह ध्यान 
तन-अर्पित मत कीजिए, मन से करिए मान 
*
गुरु पर श्रद्धा-भक्ति बिन, नहीं मिलेगा ज्ञान
निष्ठा रखे अखंड जो, वही शिष्य मतिमान
*
गुरु अभिभावक, प्रिय सखा, गुरु माता-संतान
गुरु शिष्यों का गर्व हर, रखे आत्म-सम्मान
*
गुरु में उसको देख ले, जिसको चाहे शिष्य
गुरु में वह भी बस रहा, जिसको पूजे नित्य
*
गुरु से छल मत कीजिए, बिन गुरु कब उद्धार?
गुरु नौका पतवार भी, गुरु नाविक मझधार
*
गुरु को पल में सौंप दे, शंका भ्रम अभिमान
गुरु से तब ही पा सके, रक्षण स्नेह वितान
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गुरु गुरुत्व का पुंज हो, गुरु गुरुता पर्याय
गुरु-आशीषें तो खुले, ईश-कृपा-अध्याय
*
जीवन के गुर सिखाकर, गुरु करता है पूर्ण
शिष्य बिना गुरु पूर्ण पर, रहता शिष्य अपूर्ण
*
गुरु उसको ही जानिए, जो दे ज्ञान-प्रकाश
आशाओं के विहग को, पंख दिशा आकाश
*
नारायण-आनंद का, माध्यम कर्म अकाम
ब्रम्हा-विष्णु-महेश भी, कर्मदेव गुरु नाम
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गुरु को अर्पित कीजिये, अपने सारे दोष
लोहे को सोना करें, गुरु पाए संतोष
*
गुरु न गूढ़, होता सरल, क्षमा करे अपराध
अहंकार-खग मारता, ज्यों निष्कंपित व्याध
*
गुरु-छाया से हो सके, ताप तिमिर का दूर
शंका मिट विश्वास हो, दिव्य-चक्षु युत सूर
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