शिव पर दोहे
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शिव सत हैं; रहते सदा, असत-अशुचि से दूर।
आत्मलीन परमात्म हैं, मोहमुक्त तमचूर।।
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शिव सोकर भी जागते, भव से दूर-अदूर।
उन्मीलित श्यामल नयन, करुणा से भरपूर।।
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शिव में राग-विराग है, शिव हैं क्रूर-अक्रूर।
भक्त विहँस अवलोकते, शिव का अद्भुत नूर।।
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शिव शव का सच जानते, करते नहीं गुरूर।
काम वाम जा दग्ध हो, चढ़ता नहीं सुरूर।।
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शिव न योग या भोग को, त्याग हुए मगरूर ।
सती सतासत पंथ चल, गहतीं सत्य जरूर।।
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शिव से शिवा न भिन्न हैं, भेद करे जो सूर।
शिवा न शिव से खिन्न हैं, विरह नहीं मंजूर।।
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शिव शंका के शत्रु हैं, सकल लोक मशहूर।
शिव-प्रति श्रद्धा हैं शिवा, ऐच्छिक कब मजबूर।।
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शिव का चिर विश्वास हैं, शिवा भक्ति का पूर।
निराकार साकार हो, तज दें अहं हुजूर।।
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शिव की नवधा भक्ति कर, तन-मन-धन है धूर।
नेह नर्मदा सलिल बन, हो संजीव मजूर।।
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salil.sanjiv@gmail.com
२९.७.२०१८, ७९९९५५९६१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 30 जुलाई 2021
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