दोहा दुनिया
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नेह-नर्मदा नहा ले, गर्मी होगी शांत
जी भर जलजीरा गटक, चित्त न पित्त अशांत 
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नित्य निनादित नर्मदा, कलकल सलिल प्रवाह 
ताप किनारे ही रुका, लहर मिटाती दाह 
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परकम्मा करते चरण, वरते पुण्य असीम 
छेंक धूप को छाँह दें, पीपल, बरगद, नीम 
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मन कठोर चट्टान सा, तप पा-देता कष्ट 
जल संतों सा तप करे, हरता द्वेष-अनिष्ट 
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मग पर पग पनही बिना, नहीं उचित इस काल 
बाल न बाँका लू करे, पनहा पी हर हाल 
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गाँठ प्याज की संग रख, लू से करे बचाव 
मट्ठा पी ठट्ठा करो, व्यर्थ न खाओ ताव 
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भर गिलास लस्सी पियो, नित्य मलाईदार 
कहो 'नर्मदे हर' सलिल, एक नहीं कई बार 
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पीस पोदीना पत्तियाँ, मिर्ची-कैरी-प्याज 
काला नमक व गुड़ मिला, जमकर खा तज लाज 
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मीठी या नमकीन हो, रुचे महेरी खूब 
सत्तू पी ले घोलकर, जा ठंडक में डूब 
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खरबूजे-तरबूज से, मिले तरावट खूब 
लीची खा संजीव नित, मस्ती में जा डूब 
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गन्ना-रस ग्लूकोज़ का, करता दूर अभाव 
गुड़-पानी अमृत सदृश, पार लगाता नाव 
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