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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

चित्र पर रचना

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मुक्तिका 
*
मेहनत अधरों की मुस्कान 
मेहनत ही मेरा सम्मान 
बहा पसीना, महल बना 
पाया आप न एक मकान 
वो जुमलेबाजी करते 
जिनको कुर्सी बनी मचान 
कंगन-करधन मिले नहीं 
कमा बनाए सच लो जान 
भारत माता की बेटी 
यही सही मेरी पहचान 
दल झंडे पंडे डंडे 
मुझ बिन हैं बेदम-बेजान 
उबटन से गणपति गढ़ दूँ 
अगर पार्वती मैं लूँ ठान 
सृजन 'सलिल' का है सार्थक 
मेहनतकश का कर गुणगान 
***
२०-४-२१ 
 

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