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सोमवार, 2 नवंबर 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
संजीव  
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ज्यों मोती को आवश्यकता सीपोंकी.
मानव मन को बहुत जरूरत दीपोंकी.. 
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संसद में हैं गर्दभ श्वेत वसनधारी
आदत डाले जनगण चीपों-चीपोंकी..
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पदिक-साइकिल के सवार घटते जाते
जनसंख्या बढ़ती कारों की, जीपोंकी..
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चीनी झालर से इमारतें है रौशन
मंद हो रही ज्योति झोपड़े-चीपों की..
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नहीं मिठाई और पटाखे कवि माँगे
चाह 'सलिल' मन में तालीकी, टीपोंकी..
२-११-२०१०
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