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शनिवार, 14 नवंबर 2020

नवगीत

नवगीत
*
सम अर्थक हैं,
नहीं कहो क्या
जीना-मरना?
*
सीता वन में; 
राम अवध में
मर-मर जीते।
मिलन बना चिर विरह
किसी पर कभी न बीते।
मूरत बने एक की,
दूजी दूर अभी भी।
तब भी, अब भी 
सिर्फ सियासत, सिर्फ सुभीते।
सम अर्थक हैं
नहीं कहो क्या
मरना-तरना? 
*
जमुन-रेणु जल, 
वेणु-विरह सह, 
नील हो गया।
श्याम पीत अंबर ओढ़े
कब-कहाँ खो गया? 
पूछें कुरुक्षेत्र में लाशें
हाथ लगा क्या? 
लुटीं गोपियाँ,
पार्थ-शीश नत, 
हृदय रो गया।
सम अर्थक हैं 
नहीं कहो क्या
संसद-धरना? 
*
कौन जिया, 
ना मरा?
एक भी नाम बताओ।
कौन मरा, 
बिन जिए?
उसी के जस मिल गाओ।
लोक; प्रजा; जन; गण का
खून तंत्र हँस चूसे
गुंडालय में 
कृष्ण-कोट ले
दिल दहलाओ।
सम अर्थक हैं 
नहीं कहो क्या
हाँ - ना करना?
***
संजीव
१३-११-१९

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