कुल पेज दृश्य

रविवार, 15 नवंबर 2020

चित्रगुप्त भजन

चित्रगुप्त भजन सलिला:
संजीव 'सलिल' 
१. शरणागत हम 

शरणागत हम चित्रगुप्त प्रभु! 
हाथ पसारे आये 
अनहद; अक्षय; अजर; अमर हे! 
अमित; अभय; अविजित; अविनाशी 
निराकार-साकार तुम्ही हो 
निर्गुण-सगुण देव आकाशी 
पथ-पग; लक्ष्य-विजय-यश तुम हो 
तुम मत-मतदाता-प्रत्याशी 
तिमिर मिटाने अरुणागत हम 
द्वार तिहारे आये 
वर्ण; जात; भू; भाषा; सागर 
अनिल;अनल; दिश; नभ; नद ; गागर 
तांडवरत नटराज ब्रह्म तुम 
तुम ही बृज रज के नटनागर 
पैगंबर ईसा गुरु तुम ही 
तारो अंश सृष्टि हे भास्वर! 
आत्म जगा दो; चरणागत हम 
झलक निहारें आये 
आदि-अंत; क्षय-क्षर विहीन हे! 
असि-मसि-कलम-तूलिका हो तुम 
गैर न कोई सब अपने हैं 
काया में हैं आत्म सभी हम 
जन्म-मरण; यश-अपयश चक्रित 
छाया-माया; सुख-दुःख सम हो 
द्वेष भुला दो; करुणाकर हे! 
सुनो पुकारें आये 
*** 
२. चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो... 
चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो 
भवसागर तर जाए रे... 
जा एकांत भुवन में बैठे, 
आसन भूमि बिछाए रे. 
चिंता छोड़े, त्रिकुटि महल में 
गुपचुप सुरति जमाए रे. 
चित्रगुप्त का ध्यान धरे जो 
निश-दिन धुनि रमाए रे... 
रवि शशि तारे बिजली चमके, 
देव तेज दरसाए रे. 
कोटि भानु सम झिलमिल-झिलमिल- 
गगन ज्योति दमकाए रे. 
चित्रगुप्त का ध्यान धरे तो 
मोह-जाल कट जाए रे. 
धर्म-कर्म का बंध छुडाए, 
मर्म समझ में आए रे. 
घटे पूर्ण से पूर्ण, शेष रह- 
पूर्ण, अपूर्ण भुलाए रे. 
चित्रगुप्त का ध्यान धरे तो 

चित्रगुप्त हो जाए रे... 
३. समय महा बलवान... 
समय महा बलवान 
लगाये जड़-चेतन का भोग... 
देव-दैत्य दोनों को मारा, 
बाकी रहा न कोई पसारा. 
पल में वह सब मिटा दिया जो- 
बरसों में था सृजा-सँवारा. 
कौन बताये घटा कहाँ-क्या? 
कहाँ हुआ क्या योग?... 
श्वास -आस की रास न छूटे, 
मन के धन को कोई न लूटे. 
शेष सभी टूटे जुड़ जाएं- 
जुड़े न लेकिन दिल यदि टूटे. 
फूटे भाग उसी के जिसको- 
लगा भोग का रोग... 
गुप्त चित्त में चित्र तुम्हारा, 
कितना किसने उसे सँवारा? 
समय बिगाड़े बना बनाया- 
बिगड़ा 'सलिल' सुधार-सँवारा. 
इसीलिये तो महाकाल के 
सम्मुख है नत लोग... 
४. प्रभु चित्रगुप्त नमस्कार... 
प्रभु चित्रगुप्त! नमस्कार 
बार-बार है... 
कैसे रची है सृष्टि प्रभु! 
कुछ बताइए. 
आये कहाँ से?, जाएं कहाँ?? 
मत छिपाइए. 
जो गूढ़ सच न जान सके- 
वह दिखाइए. 
सृष्टि का सकल रहस्य 
प्रभु सुनाइए. 
नष्ट कर ही दीजिए- 
जो भी विकार है... 
भाग्य हम सभी का प्रभु! 
अब जगाइए. 
जाई तम पर उजाले को 
विधि! बनाइए. 
कंकर को कर शंकर जगत में 
हरि! पुजाइए. 
अमिय सम विष पी सकें- 
'हर' शक्ति लाइए. 
चित्र सकल सृष्टि 
गुप्त चित्रकार है... 
*

कोई टिप्पणी नहीं: