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रविवार, 15 नवंबर 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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 'फिर अविवाहित कीजिए', मन्नत माँगे भक्त 
मन्नत में जन्नत नहीं, माँग न हो अनुरक्त 
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सुन सवाल उत्तर दिए, क्या पाते हैं आप?
कुछ दे पर कुछ ले नहीं, यही कार्य निष्पाप 
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शब्द-ज्ञान को क्या पता, उसमें क्या है अर्थ?
अनुभव समझ-कहे उसे, छोड़े दूर अनर्थ 
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दुष्कर नामुमकिन नहीं, सत्य जानिए आप 
कोशश से आसान हो, पग लें मंज़िल नाप 
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आज न फिर आए कभी, दें आशीष उदार 
घावों पर मलहम लगा, करो 'सलिल' सत्कार 
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चाह रहे जो विश्व में, आप मिले बदलाव 
बिना देर वैसा बनें, हो साकारित चाव 
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अगिन चाह मन में पलीं, छिड़कूँ हर पर जान 
कम हैं मन में उग कहें, नित्य नए अरमान 
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