कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला:
*
गुरु न किसी को मानिये, अगर नहीं स्वीकार
आधे मन से गुरु बना, पछताएँ मत यार
*
गुरु पर श्रद्धा-भक्ति बिन, नहीं मिलेगा ज्ञान
निष्ठा रखे अखंड जो, वही शिष्य मतिमान
*
गुरु अभिभावक, प्रिय सखा, गुरु माता-संतान
गुरु शिष्यों का गर्व हर, रखे आत्म-सम्मान
*
गुरु में उसको देख ले, जिसको चाहे शिष्य
गुरु में वह भी बस रहा, जिसको पूजे नित्य
*
गुरु से छल मत कीजिए, बिन गुरु कब उद्धार?
गुरु नौका पतवार भी, गुरु नाविक मझधार
*
गुरु को पल में सौंप दे, शंका भ्रम अभिमान
गुरु से तब ही पा सके, रक्षण स्नेह वितान
*
गुरु गुरुत्व का पुंज हो, गुरु गुरुता पर्याय
गुरु-आशीषें तो खुले, ईश-कृपा-अध्याय
*

तुलसी सदा समीप हो, नागफनी हो दूर
इससे मंगल कष्ट दे, वह सबको भरपूर
***

कोई टिप्पणी नहीं: