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गुरुवार, 9 जुलाई 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला 
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प्रभा लाल लख उषा की, अनिल रहा है झूम
भोर सुहानी हो गई, क्यों बतलाये कौन?
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श्वास सुनीता हो सदा, आस रहे शालीन
प्यास पुनीता हो अगर, त्रास न कर दे दीन
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वही पूर्णिमा निरूपमा, जो दे जग उजियार
चंदा तारे नभ धरा, उस पर हों बलिहार
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जो दे सबको प्रेरणा, उसका जीवन धन्य.
गुप्त रहे या हो प्रगट, है अवदान अनन्य.
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खिल बसन्त में मंजरी, देती है पैगाम.
देख आम में खास तू, भला करेंगे राम.
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देख अरुण शर्मा उषा, हुई शर्म से लाल.
आसमान के गाल पर, जैसे लगा गुलाल.
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चन्द्र कांता खोजता, कांति सूर्य के साथ.
अग्नि होत्री सितारे, करते दो दो हाथ.
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श्री वास्तव में साथ ले, तम हरता आलोक.
पैर जमाकर धरा पर, नभ हाथों पर रोक.
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आ दिनेश सह चंद्र जब, छू लेता आकाश.
धूप चाँदनी हों भ्रमित, किसको बाँधे पाश.
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नहीं रमा का, दिलों पर, है रमेश का राज.
दौड़े तेवरी कार पर, पहने ताली ताज.
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९-७-२०१८ 

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