कार्यशाला
दोहा से कुंडलिया
*
पोर पोर में है थकन, दर्द दर्द मे तान
मन को धक्का मारते, सपने कुछ शैतान। -शशि पुरवार
सपने कुछ शैतान, नटखटी बचपनवाले
जरा बड़े हम हुए, पड़ गए उन पर ताले
'सलिल' जी सकें काश!, होकर भाव विभोर
खट्टी अमिया तोड़, खा नाचे हर पोर - संजीव
दोहा से कुंडलिया
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पोर पोर में है थकन, दर्द दर्द मे तान
मन को धक्का मारते, सपने कुछ शैतान। -शशि पुरवार
सपने कुछ शैतान, नटखटी बचपनवाले
जरा बड़े हम हुए, पड़ गए उन पर ताले
'सलिल' जी सकें काश!, होकर भाव विभोर
खट्टी अमिया तोड़, खा नाचे हर पोर - संजीव
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