कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

समीक्षा - एक सच्चाई यह भी - विद्या लाल

फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.पुस्तक चर्चा
''एक सच्चाई यह भी'' - अपनी सोच अपना नज़रिया
चर्चाकार- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[पुस्तक विवरण- एक सच्चाई यह भी, विद्या लाल, लेख संग्रह, ISBN ९७८-९३-८५९४२-१२-९, वर्ष २०१६, २०.७ से.मी. x १४ से. मी., पृष्ठ १८८, मूल्य १५०/-, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, बोधि प्रकाशन, ऍफ़ ७७, सेक्टर ९, मार्ग ११, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर ३०२००६, ०१४१ २५०३९८९, ९८२९० १८०८७]

*
'एक सचाई यह भी' असामयिक विषयों पर लिखे गए ५४ लेखों के संग्रह है। लेखिका विद्या लाल की ५ पुस्तकें जूठन और अन्य लघुकथाएँ २०१३, किसको सोचा तुमने चाँद २०१३, नीला समंदर २०१४, बिगड़ैल लड़की २०१४, तथा ज़ख्म २०१६ प्रकाशित हो चुकी हैं। विवेच्य कृति में अधिकांश लेख स्त्री विमर्श पर हैं। सामान्यतः: स्त्रियों को शोषित, पीड़ित बताने की लीक पर चलते हुए भी लेखिका ने स्त्रियाँ क्या वाकई त्याग की मूतियाँ हैं? नहीं, पुरुष नारी सहयोग के मुखापेक्षी, पुरुष प्रधान समाज पुरुषों को ही रास नहीं आता, नारी का मोहताज पुरुष दम्भ, राजनीति: खुद कितने योग्य हैं पुरुष?, पुरुष कब करेंगे स्त्री की बराबरी?, लाचार पिता आदि लेखों में पुरुष की कमी, दुर्बलता को उभारा है अर्थात स्त्री को अबला समझने की भूल पुरुष को नहीं करनी चाहिए।

स्त्रियाँ स्वर्ग रचें तो कैसे?, स्त्रियाँ कैसे कहें मेरा भारत महान? में अनेक विचारोत्तेजक प्रश्न इंगित किये गए हैं। जातीय श्रेष्ठता के भूमिसात होते स्तंभों, दलित पुरुषों द्वारा दलित स्त्रियों को हीन मानने, अपने घर की और अन्य स्त्रियों के प्रति पुरुषों की दृष्टि में भेद आदि अनेक संवेदनशील प्रश्नों को लेखिका ने स्पर्श किया है और अपने दृष्टिकोण को सामने रखा है। इन लेखों के विषय रुचिकर, शैली सहज बोधगम्य तथा प्रस्तुति शालीन है। इन्हीं विषयों पर अन्य लेखिकाएँ अश्लील भाषा का प्रयोग करती हैं किन्तु विद्या जी ने तल्ख सारे तल्ख बात कहने के लिए भी शालीनता और शिष्टता को ताक पर नहीं रखा है।
सामान्य पाठक के पढ़ने और सोचने के लिए इस पुस्तक में बहुत कुछ है। किशोरों और तरुणों को इस लेखों से अपनी मानसिकता को व्यापक और स्वास्थ्य बनाने में सहायता मिलेगी।
क्या जरूरत है छूट्टियों में राष्ट्रीय होने की?, श्री राम और अल्लाह दोनों अगर लाचार नहीं हैं, इक्कीसवीं सदी विज्ञान की या आस्था की?, पुरुष भी असहाय हैं, परमाणु परीक्षण, दोष विवेक में कमी और परवरिश की आदि लेख सर्वोपयोगी और तथ्यपरक हैं। विद्या जी की लेखन शैली 'कम लिखे को अधिक समझना की' देशज विरासत की तरह है। उनकी आगामी कृतियों की प्रतीक्षा पाठकों को बनी रहेगी।
***

कोई टिप्पणी नहीं: