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रविवार, 26 जुलाई 2020

द्विपदी, मुक्तक

द्विपदियाँ 
ग़ज़ल कहती न तू आ भा, ग़ज़ल कहती है जी मुझको
बताऊँ सत्य मैं उसे कैसे, जिया आभा हमेशा तुझको

*
न बारिश तुम इसे समझो, गिरा है आँख से पानी.
जो आहों का असर होगा, कहाँ जाओगे ये सोचो.

*
न केवल बात में, हालात में भी है वहाँ सीलन
जहाँ फौजों के साए में, चुनावी जीत होती है

*
मुक्तक 
गए मिलने गले पड़ने नहीं,पर तुम न मानोगे.
दबाने-काटने के जुर्म में, बंदूक तानोगे.
चलाओ स्वच्छ भारत का भले अभियान हल्ला कर-
सियासत कीचड़ी कर, हाथ से निज पंक सानोगे

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