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सोमवार, 27 जुलाई 2020

हिंदी में विदेश ध्वनियाँ

हिंदी में विदेश ध्वनियाँ

जब हिन्दुस्तान में फ़ारसी भाषा प्रचलित हुई तब कुछ ऐसी ध्वनियों से हमारा परिचय हुआ जो हिन्दी ध्वनियों से भिन्न थीं। ये ध्वनियाँ हमारी पुरानी परम्परा में नहीं थीं--

क़ (क़िस्सा, रक़्स, मुश्ताक़),
ख़ (ख़राश, सख़्त, सुर्ख़),
ग़ (ग़ाफ़िल, बग़ल, दाग़),
ज़ (ज़िन्दगी, मज़ाक़, साज़),
फ़ ( फ़र्क़, कुफ़्र, साफ़)।

उपर्युक्त पाँचों व्यंजन हैं।

कालान्तर में अंग्रेज़ी से भी दो व्यंजन ज़ (ज़ीरो, ट्रेज़री, चीज़ ब मानी पनीर) और फ़ (फ़र्स्ट, साॅफ़्ट, ग्राफ़) आये। एक स्वर ऑ (ऑफ़िस, जाॅब, टाॅप) भी आया।

अब हमारे देश में फ़ारसी का चलन लगभग लुप्त हो चुका है। देश-विभाजन के बाद भारत में उर्दू (जो ख़ुद को फ़ारसी से जोड़ना पसन्द करती है) का पठन-पाठन भी बहुत घट गया है। फ़ारसी और उर्दू के इस ह्रास के कारण हिन्दी के सुशिक्षित वर्ग में भी क़, ख़ और ग़ का प्रयोग कम होने लगा है। फ़ और ज़ का प्रयोग बरक़रार है क्योंकि ये दोनों व्यंजन फ़ारसी और अंग्रेज़ी दोनों  भाषाओं में काॅमन हैं।

आमजन की सामान्य हिन्दी में क़, ख़, ग़, ज़ और फ़ नुक़्तारहित हो गये हैं।

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