कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

कविता

कविता
संजीव 'सलिल'
*
जिसने कविता को स्वीकारा, कविता ने उसको उपकारा.
शब्द्ब्रम्ह को नमन करे जो, उसका है हरदम पौ बारा..
हो राकेश दिनेश सलिल वह, प्रतिभा उसकी परखी जाती-
होम करे पल-पल प्राणों का, तब जलती कविता की बाती..
भाव बिम्ब रस शिल्प और लय, पञ्च तत्व से जो समरस हो.
उस कविता में, उसके कवि में, पावस शिशिर बसंत सरस हो..
कविता भाषा की आत्मा है, कविता है मानव की प्रेरक.
राजमार्ग की हेरक भी है, पगडंडी की है उत्प्रेरक..
कविता सविता बन उजास दे, दे विश्राम तिमिर को लाकर.
कविता कभी न स्वामी होती, स्वामी हों कविता के चाकर..
कविता चरखा, कविता चमडा, कविता है करताल-मंजीरा.
लेकिन कभी न कविता चाहे, होना तिजोरियों का हीरा..
कविता पनघट, अमराई है, घर-आँगन, चौपाल, तलैया.
कविता साली-भौजाई है, बेटा-बेटी, बाबुल-मैया..
कविता सरगम, ताल, नाद, लय, कविता स्वर, सुर वाद्य समर्पण.
कविता अपने अहम्-वहम का, शारद-पग में विनत विसर्जन..
शब्द-साधना, सताराधना, शिवानुभूति 'सलिल' सुन्दर है.
कह-सुन-गुन कवितामय होना, करना निज मन को मंदिर है..
******************************
७-७-२०१७
*

कोई टिप्पणी नहीं: