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शुक्रवार, 18 मई 2018

देवरहा बाबा

देवरहा बाबा : विरागी संत
-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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भारत भूमि चिरकाल संतों की लीला और साधना भूमि है। वर्तमान में जिन संतों की सिद्धियों लोकप्रियता और सरलता बहुचर्चित है उनमें देवरहा बाबा अनन्य हैं। अपनी सिद्धियों, उपलब्धियों, उम्र आदि के संबंध में देवरहा बाबा ने कभी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ हमेशा उनमें चमत्कार खोजती रही किन्तु वे स्वयं प्रकृति में परमतत्व को देखते रहे। उनकी सहज, सरल उपस्थिति में वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।
सतयुग से कलियुग तक:
देवरहा बाबा के जन्म के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है।बाबा कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रामाणिक रिकार्ड नहीं है तथापि लोगों का विश्वास है कि वे ३०० से ५०० वर्षों से अधिक जिए। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाये गये आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। इस सूची में भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। उनके आश्रम में देश-विदेश के ख्यातिनाम सिद्ध, संत, जननेता और सामान्यजन समभाव से आते और स्नेहाशीष पाते थे। बाबा को कभी किसी खाते-पीते देखा न वस्त्र धारण करते या शौचादि क्रिया करते। बाबा सांसारिकता से सर्वथा दूर थे। बाबा के अनन्य भक्त भोपाल निवासी स्व. इंजी. सतीशचंद्र वर्मा के अनुसार बाबा का अवतरण सतयुग में हुआ था बाबा का जीवनलीला काल सतयुग से कलियुग है।
बाबा की ख्याति सदियों पूर्व से सकल विश्व में रहीं है। सन १९११ में भारत की यात्रा पर आने से पहले ब्रिटिश नरेश जार्ज पंचम ने अपने भाई प्रिंस फिलिप से पूछा कि क्या भारत में वास्तव में महान पुरुषों का वास है? भाई ने बताया कि भारत में वाकई महान सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव-लश्‍कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियरा इलाके में मइल गाँव तक उनके आश्रम तक गया। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्‍वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को ब्रिटिश सरकार के पक्ष में करने के लिए हुई थी। जार्ज पंचम से हुई बातचीत के बारे में बाबा ने अपने कुछ शिष्‍यों को बताया भी था।
भविष्यदर्शन:
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने माता-पिता के साथ बाबा के दर्शन अपने बचपन में लगभग ३ वर्ष की आयु में किये थे। उन्हें देखते ही बाबा देखते ही बोल पडे- 'यह बच्‍चा तो राजा बनेगा।' बाद में राष्‍ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन १९५४ के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा के भक्तों में जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी बाजपेई, राजीव गाँधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। पुरूषोत्‍तम दास टंडन को तो बाबा ने ही 'राजर्षि' की उपाधि दी थी।
दियरा इलाके में रहने के कारण बाबाका नाम देवरहा बाबा हुआ । नर्मदा के उद्गमस्थल अमरकंटक में आँवले के पेड़ पर बने मचान पर तप करने पर उनका नाम अमलहवा बाबा भी हुआ। उनका पूरा जीवन मचान पर ही बीता। लकड़ीके चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका आश्रम था, नीचे से लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के माठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्‍तगण जो कुछ भी लेकर पहुँचे, उसे भक्‍तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैंकड़ों लोगों की भीड़ हर जगह, हर दिन जुटती थी।
वृक्ष की रक्षा:
जून १९८७ में वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा लगा था। तभी प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से बाबा के दर्शन हेतु आने की सूचना प्राप्त हुई। अधिकारियों में अफरातफरी मच गयी। प्रधानमंत्री के आगमन-भ्रमण क्षेत्र का चिन्हांकन किया गया। उच्चाधिकारियों ने हैलीपैड बनाने के लिए एक बबूल पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिये। यह सुनते ही बाबा ने एक उच्च पुलिस अफसर को बुलाकर पूछा कि पेड़ क्यों कटना है? 'प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए वृक्ष काटना आवश्यक है' सुनकर बाबा ने कहा; ' तुम पी.एम. को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पी.एम. का नाम होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! पेड़ पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा? यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अधिकारी ने विवशता बतायी कि आदेश दिल्ली से आये उच्च्चाधिकारी का है, इसलिए वृक्ष काटा ही जाएगा। पूरा पेड़ नहीं एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा: 'यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन-रात मुझसे बतियाता है. यह पेड़ नहीं कट सकता।' इस घटनाक्रम से अधिकारियों की दुविधा बढ़ी तो बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा: 'घबड़ा मत, मैं तुम्हारे पी.एम. का कार्यक्रम कैंसिल करा देता हूँ। आश्चर्य कि दो घंटे बाद कार्यालय से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गाँधी बाबा के दर्शन हेतु पहुँचे किंतु वह पेड़ नहीं कटा।
आज हम सब निरंतर वृक्षों और वनस्पतियों का विनाश कर रहे हैं, यह प्रसंग पेड़ों के प्रति बाबा की संवेदनशीलता बताता है तथा प्रेरणा देता है कि हम सब प्रकृति-पर्यावरण के साथ आत्मभाव विकसित कर उनकी रक्षा करें।
पक्षियों से बातचीत:
देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, लौटते तो लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। उन्होंने पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊँचे मचान पर देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान करते। वे आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। उनका स्वभाव बच्चों की तरह भोला था। वे कुछ खाते-पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बाँटकर सबको आशीर्वाद देते। बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी और आवाज़ भारी थी।
मितभाषी बाबा:
बाबा बहुत कम बोलते थे किंतु मार्गदर्शन माँगे जाने पर अपनी बात बेधड़क कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी प्रभावित किया। बाबा के अनुसार भारतीय जब तक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा देते, समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिये है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में खूब चर्चा होती थी। प्रत्‍यक्षदर्शी बताते हैं कि आधा-आधा घंटा तक वे पानी में रहते थे। पूछने पर उन्‍होंने शिष्‍यों से कहा- 'मैं जल से ही उत्‍पन्‍न हूँ।' उनके भक्‍त उन्‍हें दया का महासमुंद बताते हैं। अपनी यह सम्‍पत्ति बाबा ने मुक्‍त हस्‍त से लुटाई, जब जो आया, बाबा से भरपूर आशीर्वाद लेकर गया। वर्षाजल की भाँति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्‍यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामनेवाले का सवाल क्‍या है? दिव्‍यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोलकर हँसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्‍त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्‍यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्‍प्‍यूटर की तरह। हाँ, बलिष्‍ठ कदकाठी भी थी।
सुपात्र को विद्या दान:
बाबा के पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएँ सिखाते थे। योग विद्या पर उन्हें पूर्ण अधिकार था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। सिद्ध सम्मेलनों में संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से वे सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना ज्ञान किससे, कहाँ, कब - कैसे पाया? ध्यान, प्राणायाम, समाधि की पद्धतियों में बाबा सिद्ध थे । धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे संवाद कर मार्गदर्शन पाते थे। बाबा ने जीवन में लंबी-लंबी साधनाएँ कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग-जाहिर था।
लीला संवरण:
आजीवन स्वस्थ्य तथा मजबूत रहे बाबा देह त्‍यागने के कुछ पूर्व कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। बाबा नित्य ही बिना नागा भक्तों को मचान दर्शन देते थे किन्तु ११ जून १९८० से अचानक बाबाने दर्शन देना बंद कर दिया। भक्तों को अनहोनी की आशंका हुई। मौसम अशांत होने लगा। बाबा मचान पर त्रिबंध सिद्धासन में बैठे थे। चिकित्सकों ने शरीर का तापमान अत्यधिक पाया, तापमापी (थर्मामीटर) की अंतिम सीमा पर पारा सभी को आशंकित कर रहा था। मंगलवार १९ जून १९९० योगिनी एकादशी की शाम आँधी-तूफ़ान, भारी जलवृष्टि के बीच बाबा ने इहलीला संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गये। यमुना की लहरें तट पर हाहाकार कर बाबा के मचान तक पहुँचाने को मचल रही थीं। शाम ४ बजे स्पंदन रहित बाबा की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी गई अगणित भक्त शोकाकुल थे। समाचार देश-विदेश विद्युतगति से फ़ैल रहा था। अकस्मात् बाबा के शिष्य देवदास ने बाबाके शीश पर स्पंदन अनुभव किया। ब्रम्हरंध्र खुल गया जिसे पुष्पों से भरा गया किन्तु वह फिर रिक्त हो गया दो दिन तक बाबा के शरीर को सिद्धासन त्रिबंध स्थिति में किसी चमत्कार की आशा में रखा गया। यमुना किनारे भक्त दर्शन हेतु उमड़ते रहे, अश्रु के अर्ध्य समर्पित करते रहे। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर संचार-संपर्क के अधुनातन साधन न होने पर भी देश-देशांतर तक फैली, विश्व के कोने-कोने से हजारों भक्त उन्हें विदा देने उमड़ पड़े। कुछ विज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जाँचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह संभव नहीं हो सका। आखिरकार, दो दिन बाद बाबा की देह उसी सिद्धासन-त्रिबंध की स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दी गई।
लोक संत लीला संवरण कर अनंत में विलीन हो गया किंतु उसकी महागाथा काल की थाती बनकर युगों-युगों के लिए अमर हो गई।
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- विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१,
salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४

3 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Anita ने कहा…

देवरहा बाबा को शत शत नमन..आभार उनके अनोखे जीवन के बारे में जानकारी देने हेतु...

मन की वीणा ने कहा…

अद्भुत लेख मेरे लिये बिलकुल नया।
अप्रतिम जानकारी।