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मंगलवार, 22 मई 2018

साहित्य त्रिवेणी : छाया सक्सेना -बघेली लोकगीतों में छंद

 बघेली लोकगीतों में छंद
 छाया सक्सेना ' प्रभु '
परिचय: जन्म १५.८.१९७१, रीवा (म.प्र.)। शिक्षा: बी.एससी. बी.एड., एम.ए. राजनीति विज्ञान, एम.फिल.), संपर्क: १२ माँ नर्मदे नगर, फेज़ १, बिलहरी, जबलपुर म.प्र., चलभाष ९४०६०३४७०३ ईमेल: chhayasaxena2508@gmail.com

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वर्णों  का ऐसा संयोजन जो मन को आह्लादित करे तथा जिससे रचनाओँ को एक लय में निरूपित किया जा सके छंद कहलाता है 'छन्दनासि  छादनात' सभी उत्कृष्ट पद्य रचनाओँ का आधार छंद होता है। बघेली काव्य साहित्य छंदों से समृद्ध है, काव्य जब छंद के आधार पर सृजित होता है तो हृदय में सौंदर्यबोध, स्थायित्व, सरस, मानवीय भावनाओं को उजागर करने की शाक्ति, नियमों के अनुसार धारा प्रवाह, लय आदि द्रष्टव्य होते हैं। लोक साहित्य, लोकगीतों में ही दृष्टव्य  होते हैं इनका स्वरूप विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि ये लोक कल्याण की भावना से सृजित किये गए हैं । इनका सृजन तो एक व्यक्ति करता है किंतु उसका दूरगामी प्रभाव विस्तृत होता है। अपने परंपरागत रूप में यह सामान्य व्यक्तियों द्वारा उनकी भावनाएँ व्यक्त करने का माध्यम बनता है। लोक-साहित्य पांडित्य की दृष्टि से परिपूर्ण भेले ही न रहा हो पर इनके सृजनकार भावनात्मक रूप से  सुदृढ़ रहे इसलिए ये गीत जनगण के मन में अपनी गहरी पैठ बनाने में समर्थ और कालजयी हो सके।
लोकगीत
लोकगीत लोक के गीत हैं जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा स्थानीय समाज अपनाता, गुनगुनाता है, गाता हैै। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के  लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहते हैं । डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार “लोकगीत किसी संस्कृति के मुख बोलते चित्र हैं ।“ 
लोकगीतों में छंदों के स्वरूप के साथ-साथ मुहावरे, कहावतें व सकारात्मक संदेश भी अन्तर्निहित होते हैं जिनका उद्देश्य मनोरंजन मात्र नहीं अपितु भावी पीढ़ियों को सहृदय बनाना भी रहता है। अपनी बोली में सृजन करने पर भावों में अधिक स्पष्टता होती है। सामान्यत: लोकगीत मानव के विकास के साथ ही विकसित होते गए, अपने परंपरागत रूप में अनपढ़ किंतु लोक कल्याण की भावना रखनेवाले  लोगों द्वारा ये संप्रेषित हुए हैं। लोगों ने जो समाज में देखा-समझा उसे ही भावी पीढ़ी को बताया। आत्मानुभूत होने के कारण लोकसाहित्य की जड़ें बहुत गहरी हैं। हम कह सकते हैं कि हमारे संस्कारों को बचाने में  लोक साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है ।

बघेली
बघेली बघेलखंड (मध्य प्रदेश के रीवा,सतना,सीधी, शहडोल ज़िले) में बोली जाती है। यहाँ के निवासी को 'बघेलखण्डी', 'बघेल', 'रिमही' या 'रिवई' कहे जाते हैं। बघेली में ‘व’ के स्थान पर ‘ब’ का अत्यधिक प्रयोग होता है। कर्म और संप्रदान कारकों के लिये ‘कः’ तथा करण व अपादान कारकों के लिये ‘कार’ परसर्गों का प्रयोग किया जाता है। ‘ए’ और ‘ओ’ ध्वनियों का उच्चारण करते हुए बघेली में ‘य’ और ‘व’ ध्वनियों का मिश्रण करने की प्रवृत्ति है।  सामान्य जन बोलते समय  'श' और 'स' में भी ज्यादा भेद नहीं मानते हैं। बघेली जन लोकपरंपरा में प्रचलित सभी संस्कारों को संपन्न करते समय ही नहीं ऋतु परिवर्तन, पर्व-त्यौहार आदि हर अवसर पर गीत गाते हैं। बघेलखंडी लोकगीतों में सोहर , कुंवा पूजा, मुंडन, बरुआ, विवाह, सोहाग, बेलनहाई, ढ़िमरहाई, धुबियाई, गारी गीत, परछन, बारहमासी, दादरा, कजरी, हिंडोले का गीत, बाबा फाग, खड़ा डग्गा, डग्गा तीन ताला आदि प्रमुख हैं। ये लोकगीत न केवल मनोरंजन करते हैं वरन जीने की कला भी सिखलाते हैं ।
सोहर
बच्चे के जन्मोत्सव पर  गाए जानेवाले गीत को सोहर कहते हैं। सभी महिलाएँ प्रसन्नतापूर्वक एक लय में सोहर गीत गाती है। सोहर गीत केवल महिलाएँ गाती हैं, पुरुष इन्हें नहीं गाते।  
तिथि नउमी चइत सुदी आई हो, राम धरती पधरिहीं।      १८-१२ 
बाजइ मने शहनाई हो,  राम धरती  पधरिहीं।।                  १४-१२ 

धरिहीं रूप सुघर पुनि रघुवर, खेलिहिं अज अँगनइया।       १६-१२ 
बड़भागी दसरथ पुनि बनिहीं, कोखि कौसिला मइया ।।      १६-१२ 

मनबा न फूला समाई हो, राम .....                                १६-१२ 
इस बघेली लोक गीत में शब्द-संयोजन का लालित्य और स्वाभाविकता देखते ही बनती है। लोकगीत छंद-विधान का कडाई से पालन न कर उनमें छूट ले लेते हैं। लोकगायक अपने गायन-क्षमता, अवसरानुकूलता, कथ्य की आवश्यकता और श्रोताओं की रूचि के अनुकूल शब्द जोड़-घटा लेते हैं। मुख्य ध्यान कथ्य पर दिया जाता है जबकि मात्राओं / वर्णों की घट-बढ़ सहज स्वीकार्य होती है। इस कारण इन्हें मानक छंदानुसार वर्गीकृत करना सहज नहीं है।   
जौने दिना राम जनम भे हैं                               १७ / ११ 
धरती अनंद भई-धरती अनंद भई हैं हो              २६ / १८ 
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गउवन लुटि भई-गउवन लुटि भई हो                 २० / १७ 
आवा गउवन के नाते एक कपिला                      २१ / १४ 
रमइयां मुँह दूध पियें- रमइया मुँह दूध पिये हो    २८ /२१   
जौने दिना राम जनम भे हैं हो                             १९ / १२                  
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सोनवन लुटि भई- सोनवन लुटि भई हो                २० / १७ 
आवा सोनवा के नाते एक बेसरिया                       २३ / १४ 
कौशिला नाके सोहै- कौशिला नाके सोहइ हो         २८ /  १६ 
जौने दिना राम जनम भे हैं हो                              १९ / १२
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रुपवन लुटि भई- रुपवन लुटि भई हो                    २०/ १७ 
आवा रुपवा के नाते एक जेहरिया                         २३ / १४  
कौशिला पायें सोहै, कौशिला पायें सोहइ हो            २८ / १६ 
जौने दिना राम जनम भे हैं हो                                १९  / १२ 

अधिकतर सोहर गीत राम-जन्म पर ही आधारित हैं।  इनकी बाहुल्यता यहाँ देखी जा सकती है ।
सोहर 
कारै पिअर घुनघुनवा तौ हटिया बिकायं आये / हटिया बिकाय आये हो
साहेब हमही घुनघुनवा कै साधि / घुनघुनवा हम लैबे-घुनघुनवा हम लेबई हो
नहि तुम्हरे भइया भतिजवा / न कोरवा बलकवा-न कोरवा बलकवउ हो
घुनघुनवा किन खेलइं हो / 
हंकरउ नगर केर पंडित हंकरि वेगि लावा / हंकरि वेगि लायउ हो
पंडित ऐसेन सुदिन बनावा नेहर चली जाबई हो / नैहर चली जाबई हो
हंकरहु नगर केर कहरा-हंकरि वेगि आवा / हंकर वेगि लावहु हो
रामा चन्दन डड़िया सजावा नैहर पहुंचावा / नेहरि पहुंचावहु हो
जातइ माया का मेटबै बैठतइ ओरहन देबई / बैठतइ आरहन देबई हो
माया तिरिया जनम काहे दीन्ह्या ब / बझिन कहवाया-बझिनि कहवायउ हो
जातइ काकी का मेटबई बैठतइ ओरहन देबई / बैठतइ ओरहन देबई हो
काकी धेरिया जनम काहे दीन्ह्या / बझिनि कहवाया बझिनि कहवायउ हो
जातइ भौजी का भटबै बैठतइ ओरहन देबई / बैठतइ ओरहन देबई हो
ऐसेन ननंदी जो पाया बझिन कहवाया / बझिनि कहवायउ हो।
बेटी तुहिनि मोर बेटी तुहिनि मोर सब कुछ हो
बेटी थर भर लेहु तुम मोतिया उपर धरा नरियर / उपर धरौ नरियर हो
बेटी उतै का सुरिज मनावा / सुरिज पूत देइहैं सुरिज पूत देइहै हो
होत विहान पही फाटत लालन भेहंइ होरिल में हइं हो
आवा बजई लागीं अनंद बघइया गवैं सखि सोहर / गवैं सखि सोहर हो
हंकरहु नगर केर सोनरा हंकरि वेगि लावा / हंकरि वेगि लावहु हो
सोनरा सोने रूपे गढ़ा घुनघुनवा तो धना का मनाय लई / धना का मनाय लई हो
हंकरहु नगर केरि कहरा हंकरि वेगि आवा / हंकरि वेगि लावउ हो
कहरा चन्दन डड़िया सजावां / तो धना का मनाई लई-धना का मनाई लई हो
एक बन गै हैं दुसर बन तिसरे ब्रिन्दाबन / तिसरे ब्रिन्दाबन हो
रामा पैठि परे गजओबरी तौ धना का मनाबै / तौ धना का मनावई हो
धनिया तुहिनि मोर धनिया तुहिनि मोर सब कुछ हो
धनिया छाड़ि देहु मन का विरोग घुनघुनवा तुम खेलहु / घुनघुनवा तुम खेलहु हो
नहि मारे भइया भतिजवा नहि कोरवा बलकवा घुनघुनवा किन खेलई
घुनघुनवा किन खेलई हो
घुनघुनवा तो खेलई तुम्हारी माया बहिनिउ तुम्हारिउ हो
रामा और तौ खेलई परोसिन जउन भिरूवाइसि हो
जउन भिरूवाइसि हो 

*
माघै केरी दुइजिया तौ भौजी नहाइनि
भौजी नहाइनि हो
रामा परि गा कनैरि का फूल मनै मुसकानी
मनै मुसक्यानी है हो

माया गनैदस मास बहिनी दस आंगुरि
बहिनी दस आंगुरि हो
भइया भउजी के दिन निचकानि तौ भउजी लइ आवा
भउजी लेवाय लावा हो
सोवत रहिउं अंटरिया सपन एक देखेउं हो
सपन एक देखेउं हो
माया जिन प्रभु घोड़े असवार डड़िया चंदन केरी
डड़िया चन्दन केरी हो
बेटी तुहिनि मोर बेटी तुहिनि मोर सब कुछ हो
बेटी खाय लेती नरियर चिरौंजी
तौ डड़िया चन्दन केरी-डड़िया चंदन केरी हो
एक बन नाकि- दुई बन तिसरे ब्रिन्दाबन
तिसरे ब्रिन्दाबन हो
आवा पैठि परे हैं गज ओबरी तौ माया निहारै
तौ माया निहारै हो
मचियन बैठी है सासु तौ हरफ- दरफ करैं
हरफ दरफ करैं हो
बहुआ एक बेरी वेदन निवारा तौ लाला जनम होइहीं
तो लाला जनम होईहीं हो
आपन माया जो होती वेदन हरि लेती
वेदन हरि लेतियं हो
रामा प्रभु जी की माया निठमोहिल
तौ ललन ललन करै होरिल होरिल करैं
ललन ललन करैं होरिल होरिल करैं हो। 

*
कुआं पूजन 
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी
जाइ कह्या मोरे राजा सुसुर से
द्वारे माँ कुंअना खोदावैं
तौ गोरी धना पानी का निकरीं
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी
जाइ कह्या मोरे राजा जेठ से
कुंअना मा जगत बंधावैं तौ गोरी धना पानी का निकरीं
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी
जाइ कह्या मोरे बारे देवर जी
रेशम रसरी मंगावैं तौ गोरी धना पानी का निकरीं
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी
जाइ कह्या मोरे राजा बलम से
सोने घइलना भंगावैं तौ गोरी धना पानी का निकरीं
ऊपर बदरा घहरायं रे तरी गोरी पानी का निकरी। 
मुंडन
बच्चे के मुंडन संस्कार के समय बुआ अपने भेतीजे के जन्म के समय की झालर (बाल) अपने हाथों में लेती है। सभी सखियाँ  प्रेमपूर्वक गीत गाती हैं-

झलरिया मोरी उलरू झलरिया मोरी झुलरू
झलरिया शिर झुकइं लिलार
अंगन मोरे झाल विरवा
सभवा मा बैठे हैं बाबा कउन सिंह
गोदी बइठे नतिया अरज करैं लाग
हो बव्बा झलरिया मोरी उलरू झलरिया मोरी झुलरू
झलरिया शिर झुकइं लिलार
नतिया से बव्बा अरज सुनावन लाग
सुना भइया आवें देउ बसंत बहार
झलरिया हम देबइ मुड़ाय
फुफुवा जो अइहैं मोहर पांच देबई
झलरिया शिर देबइ मुड़ाय
सभवा भा बैइठे हैं दाऊ कउन सिंह

बधाई गीत
शुभ कार्यों के अवसर पर  शुभकामनाएं प्रेरित करने हेतु बधाई गीत गाए जाते हैं।
धज पताका  घर-घर फहरइहीं,
सजहीं  तोरण  द्वार।
सदावर्त मन खोलि  लुटइहीं,
राजा  परम  उदार।।
देउता  साधू  सुखीं  सब होइहीं,
सरयू  मन हरसइहीं।
वेद पुराण गऊ  गुरु बाम्हन, 
सब मिल जय- जय  गइहीं।।
सुख गंगा  बही हरसाई हो, 
राम जनम  सुखदाई हो।।

शिक्षा गीत 
सीख देते हुए हुए लोककाव्य भी इस अंचल में प्रचलित हैं।  इस रचना में किरीट सवैया द्वारा कीर्ति व अपकीर्ति के कारणों पर प्रकाश डाला गया है:
कीर्ती
पाहन से फल मीठ झरै तरु राह सदा नित छाँव करै कछु ।
झूठ प्रपंचहि दूर रहै सत काम सदा नित   थाम करै कछु । 
हो हिय निर्मल प्रेम दया अभिमान नही तब नाम करै कछु - 
सो नर कीर्ति सदा फलती जब दीनन के हित काम करै कछु ।।

(2) अपकीर्ती 
कंटक राह बिछाइ सदा जग में ब्यभिचार सुलीन रहै जब ।
श्राप सदा हिय में धरता पर का अधिकार कुलीन हरै जब । 
वो बधिता बनिके हर जीव चराचर कष्टहि कार करै  तब - 
सो नरकी अपकीर्ति सदा घट पाप सुरेश सुनीर भरै जब ।।

सुरेश तिवारी खरहरी रीवा
*बरुआ  गीत*
विद्यालय जाने से पूर्व बच्चे से पाटी पूजा करवायी जाती है । बालक जब बड़ा हो जाता है तब उसका बरुआ होता है जनेऊ संस्कार की परंपरा यहाँ बहुत प्रचलित है ।
हरे हरे पर्वत सुअना नेउत दइ आवउ हो
गाँव का नाव न जान्यौं ठकुर नहि चीन्ह्योउ हो
गाँव का नाव अजुध्या ठकुर राजा दशरथ हो
हरे हरे सुअना नेउत दइ आवउ हो
पहिला नेउत राजा दशरथ दुसर कौशिला रानी
तिसरा नेउत रामचन्द्र तौ तीनौ दल आवइं हो।

*दैनिक कार्यों में भी लोग उत्साहित होकर अपने भावों को व्यक्त करते हैं - *
*जनसामान्य द्वारा महुआ बीनते समय गाए जाने वाला गीत--*
*  महुआ केर महातिम  *   
       ॥ कुंडलिया॥  
(1)महुआ केर महातिम गाबइ जुग -जुग बीत जहान , 
ई विशाल बिरछा केर अँग -अँग उपयोगी गुणवान , 
उपयोगी गुणवान , बहुत महुआ का फूल व डोरी , 
बुँकबा , लाटा , चुरा , सुरा , महुआ केर फूल ,महुअरी , 
कह घायल कविराय, गुलग़ुला खाय  लाल भा गलुआ, 
आमजनेन का साल भरे का रोजी -रोटी महुआ । 
,   
(2)नाना औषधि देय महौषधि, महुआ तरु हर अंग , 
झूरा , दारू ,अलकोहल, ई मादक देय तरंग , 
मादक देय तरंग , हराबइरोग बचाबइ जान , 
महुआ रस लाली लसइ, हाली हरय  थकान , 
कह घायल कविराय , कुबुद्धी ! करइ नशा मनमाना' , 
दारू भा बदनाम, तऊ गुन महुआ माही नाना ।

(3)फागुन माही फूलय महुआ बहुत परय भिनसारे , 
छोरा -छोरी , बूढ़ , बहोरिया-
छोड़इं खाट सकारे, 
छोँड़इं खाट सकारे , 
दउड़इं लइ डलिया महुअरिया,
चूसइं महुआफूलमजेसे, बिनइंचिल्ल दुपहरिया , 
कह घायल कविराय ,अन्न से     महंगा महुआ चउगुन  , 
चइत पूर बइशाख, जेठ की चून चढ़ाबइ फागुन ।

(4)धुआँ खरी का साँप भगाबइ हरय रोग चमड़ी का , 
ई चरचरी मा काम बनाबइ , हइ जुगाढिं दमड़ी का , 
हइ जुगाढिं दमड़ी का, महुआ ई गरीब का सोना , 
हरछठि ललहीजिउ! चाहइं -महुआ -दहिउ का दोना , 
कह घायल कविराय जियाबइ खुर , पर , पांउ ई महुआ , 
डोरी तेल बनाबइ साबुन  खरय खरी का धुआँ ।    -घायल-
                              

बघेली जन मानस धार्मिक प्रवत्ति के हैं  हर घर में तुलसी का पौधा, राम कृष्ण के चरित्र का गुणगान करते हुए गीत गाने वाले लोग मिलेंगे, अपनी बोली में  ह्रदय की अभिव्यक्ति और सहज लगती है ....
*बघेली सुंदर काण्ड*
गोड़ लइ परें सीतय जिउ के,पुन घुसें बगइचा जाय।
फर खाईंन अउ बिरबा टोरिंन,दंउ दंहनय दिहिंन मचाय।।
करत रहें तकबारी होंईंन,रामंन के जोधा बहुतेर।
कुछंन का मारिंन हनमानय पुन,रामन लघे भगें कुछफेर।।
एकठे आबा बाँदर सोमीं!,दीन्हिस बाग़ असोक उजारि।
फर खाइस अउ बिरबउ टोरिस,पीटिस सब रखबारि।।
तकबारंन का पसधुर कीन्हिस,पटक पटक दइ मारि।
रामन सुनि सँदेस जोधंन का,भेजिस कइ तइआरि।।
गरजें देखतय जोधंन कांहीं,रामभगत हनमानय।
देखतय देखत जिउ लइ लीन्हिन,महा बली हनमानय।।
पुनि के मिला संदेस रामनय,भेजिस अछय कुमार।
देखतय बड़े जोर चिल्लानें,हनमत मारि दहार।।
एक ठे बिरबा का उखारि के,दउरि परें हनमांन।
अछय कुमार के जिउ लइ लीन्हिन,महयबलिंन हनमांन।।
मुरघेटिआईंन कुछय जनेंन का,कुछंन के जिउलइ लीन्हिन।
पटकि पटकिके धूर चटाईंन,कुछंन क हनमत दइ मारिंन।।
जाय पुकारिंन कुछय जनें पुन,हे रामंन सरकार!।
इआ,बहुतय बलमानीं है बाँदर,रच्छा करी हमार।।

(अठरहमं दोहा),अरुण पयासी
।।
*बघेली महाबानीं*
*राम की महिमा*
"सब कुछु बिसर जाय चाहे मन,या की सुधय पूर आ जाय।
मन ता मधबय के देखे मां, चिन्ता से मुकुती पा जाय।।
मधबय के निहारि दीन्हें मन,पूर सुफल होइ जाय।
फेर का कहैं का आँगू केरे,सबय काम बनिं जाँय।।
अरुण पयासी

*कृष्ण महिमा*
जब कीन्ह राधिका गौर ,  कदम के डाली ।
उत कान्हा बइठा  ठौर,   बजावे  ताली ।।
बाहर आ के ल्या चीर,  सुना  मधुबाला ।
उत  आवत  माखन चोर सुबह नंद लाला ।।

सुरेश तिवारी रीवा
राधिका छंद, 13, 9

बघेलखण्ड में अधिकांश लोग किसानी का कार्य करते  हुए भी साहित्य साधना में लीन रहते हैं उनको लय का ज्ञान भी बहुत है जिससे उनके गीतों में छंद का प्रभाव अनायास ही उभर कर आता है जो मनभावक व कर्ण प्रिय हो जाता है ।
फसल काटते समय का गीत:
अरहरि  कटि खरिहाने  आई, / मसूरी  अँगने  लोटी रही ।
गेहूं  कटे  हमय  खेतन म, / बिटिया  मटरन  क  खरभोटि  रही ।।
गारी
विवाह उत्सव के समय समधियों व मान रिश्तेदारों को चिढ़ाते हुए हँसी ,ठिठोली करने में लिए गारी गयी जाती है ।
झुल्लूर  गुल्ली, बब्बू  मुन्ना, रानिया टेटबन  काटैं।
पढ़े लिखै मा छाती फाटिगे, यहै  चोखैती चाटैं।
हम काहे का मसका मारी, चला फलाने  सोई।
तीस साल के वर अब बागैं, काज कहाँ  से होई।।

अंगने मोरे नीम लहरिया लेय / अंगने मोरे हो
जहना कउन सिंह गाड़े हिडोलना / गाड़े हिडोलना
अरे उन कर दिद्दा हरसिया झूलि झूलि जायं
अंगने मोरे नीम लहरिया लेय अंगने मां
जहना कउन सिंह गाडे हिडोलना गाड़े हिडोलना
उन कर फूफू हरसिया झूलि झूलि जायं
अंगने मां नीम लहरिया लेय-अंगने मां

माँ की महिमा
केखे तार ही महतारी अस, तारिउ होय कहाँ से?।
महतारी हय जबर बिस्स मां, अउरउ सबय जंहाँ से।।
हिरदंय के चाहत,राहत के, परम आसरा आय।
महतारी के माँन करब ता, इस्सर पूजा आय।।    -अरुण पयासी  

परछन
सास द्वारा परछन करते समय उपस्थित सभी महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत -

लाला खोला खोला केमरिया हो / मैं देखौं तोरी धना
धौं सांवरि हैं धौं गोरि / देखौं मैं तोरी धना
लाला खोला केमरिया हो / मैं देखौं तोरी धना

मनोरंजन हेतु दादरा का प्रचलन भी यहाँ देखने को मिलता है-
डग्गा तीन ताला
सुरति रहे तो सुअना ले गा / बोल के अमृत बोल
नटई रहै तो कोइली लै गे / चढ़ि बोलइ लखराम

एतनी देर भय आये रैन न एकौ लाग
कोइली न लेय बसेरा न करन सुआ खहराय....

बघेली साहित्य न केवल मनोरंजन कर रहा है वरन सामाजिक मूल्यों के संरक्षण एवं विकास की दिशा में चेतना जागृत कर  व्यक्ति के जीवन को सुखी व अमूल्य बना रहा है । यहाँ के गीतों की एक विशिष्ट लय है जिसका आधार छंद है,  अधिकांश गीत धार्मिक परिवेश से प्रभावित  हैं ।
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