दोहा दुनिया आज की:
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छीन रहे थे और के, मुँह से रोटी-कौर.
अपने मुँह से छिन गया, आया ऐसा दौर.
*
कर्नाटक में गिर गए, औंधे मुँह खो लाज।
शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।
शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।
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समय छोड़ पाया नहीं, अपना तनिक प्रभाव।
तब सा अब भी चेहरा, आदत, मृदुल स्वभाव।।
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छीन रहे थे और के, मुँह से रोटी-कौर.
अपने मुँह से छिन गया, आया ऐसा दौर.
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कर्नाटक में गिर गए, औंधे मुँह खो लाज।
शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।
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कर्नाटक में गिर गए, औंधे मुँह खो लाज।शाह लबारी हारकर, जीती बाजी-ताज।।
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समय छोड़ पाया नहीं, अपना तनिक प्रभाव।
तब सा अब भी चेहरा, आदत, मृदुल स्वभाव।।
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मार पड़े जब समय की, बढ़ता अनुभव-तेज।
तब करते थे जंग, रंग जमा हुए रंगरेज।।
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मन बच्चा-सच्चा रहे, कच्चा तन बदनाम।
बिन टूटे बादाम हो, टूटे तो बेदाम।।
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कैसे हैं? क्या होएँगे?, सोच न आती काम।
जैसा चाहे विधि रखे, करे न बस बेकाम।
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कांता जैसी चाँदनी, लिये हाथ में हाथ।
कांत चाँद सा सोहता, सदा उठाए माथ।।
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मिल कर भी मिलती नहीं, मंजिल खेले खेल।
यात्रा होती रहे तो, हर मुश्किल लें झेल।।
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बाल बाल बच रहे हम, बाल-बाल
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