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बुधवार, 30 मई 2018

साहित्य त्रिवेणी ४ डा .प्रवीण कुमार श्रीवास्तव छंद चिकित्सा: प्रयोग और प्रभाव

                                                            ४. छंद चिकित्सा: प्रयोग और प्रभाव 
डा .प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
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परिचय: जन्म: एक जुलाई १९६१। आत्मज: श्रीमती सुनैना देवी-स्व . श्री प्रेम चन्द्र प्रसाद वर्मा। शिक्षा: एम.बी.बी.एस., डी. सी.पी. (पैथोलोजिस्ट)। प्रकाशित कथा संग्रह: कथा अंजलि, पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित। 
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सामान्यत: छंद और चिकित्सा विज्ञान में कोई अंतर्संबंध नहीं दिखता किन्तु सत्य इससे सर्वथा विपरीत है। आम जन को यह जानकर आश्चर्य होगा कि छंद और चिकित्सा विज्ञान में अंतरंग, अभिन्न और विशिष्ट संबंध है। छंद-चिकित्सा एक सुविचारित, शोधपरक संकल्पना है। इस क्षेत्र में अनेक प्रयोग, सर्वेक्षण और मूल्यांकन हो चुके हैं जिनमें ध्वनि अर्थात छंद और संगीत के मिश्रण का विशिष्ट, स्थाई और असाधारण प्रभाव कई गंभीर रोगों से ग्रस्त रोगियों पर होते हुए देखा गया है। छंद-चिकित्सा के अंतर्गत छंद के गायन की बारंबार आवृत्ति कर देखा जाता है कि रोगी के स्वास्थ्य और व्यवहार पर क्या प्रभाव हो रहा है? ध्वनि चिकित्सा छंदों तथा वाद्यों के विशिष्ट मिश्रित प्रयोग से निर्गमित ध्वनि तरंगों का लक्ष्य के तन-मन तथा मस्तिष्क पर हो रहे प्रभावों का गहन व सूक्ष्म अध्ययन कर की जाती है। प्रयोगों में पाया गया है कि ऐसे गंभीर रोगी जिनका उपचार करने में अन्य चिकित्सा प्रणालियाँ सफल नहीं हो सकीं उन पर ध्वनि-उपचार के परिणाम विस्मयजनक, त्वरित तथा स्थाई हुए। ऐसे प्रकरणों में छंदों का प्रयोग रोगी के मस्तिष्क पर तरंगाघात कर उसकी मानसिक उद्विग्नता का शमन कर उसे शांत करने में सफल हुआ। छंदों का प्रयोग संगीत की भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के माध्यम से स्वास्थ्य में सुधार करता है।

छंद-चिकित्सा एक कलात्मक चिकित्सा-पद्धति है , जिसके द्वारा यह कल्पना की जाती है कि व्यक्ति का रोग उसके शरीर में ऊर्जा के असंतुलन से उत्पन्न हुआ है और इन ऊर्जाओं को छंद या संगीत के माध्यम से शांत व संतुलित किया जाए तो स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।  चिकित्सक रोगी की मनोदशा का अनुमान कर उसके मस्तिष्क को शुख-शांति की अनुबूती करने वाले छंद या संगीत की अभिव्यक्ति से रोगी में स्वस्थ्य होने की इच्छाशक्ति जाग्रत करता है।

आयुर्वेद में देह धारण की तीन धातुएँ बताई गयी हैं: वात, पित तथा कफ। इन तीन धातुओं का संतुलन बनाये रखने के लिए शब्द शक्ति, मंत्र शक्ति और छंद (गीत) शक्ति का भी प्रयोग होता रहा है। ऋषियों–मुनियों द्वारा संगीत व मंत्र साधना द्वारा अनेक सिद्धि व चमत्कारों का अधिकार प्राप्त करना संगीत के प्रभाव को दर्शाता है। संगीतार्षी तुम्बरा प्रथम संगीत चिकित्सक हैं जिन्होंने  अपनी पुस्तक 'संगीत स्वरामृत' में उल्लेख किया है कि ऊँची और असमान ध्वनि का वात पर, गंभीर  व स्थिर ध्वनि का पित पर तथा कोमल ध्वनि का कफ के गुणों पर प्रभाव पड़ता है यदि सांगीतिक छंद ध्वनियों से इन तीनों का संतुलन कर लिया जाय तो बीमारी की सम्भावना ख़त्म हो जाती है। कुछ रोगों पर गीत-संगीत के प्रभावों पर एक दृष्टि डालें:
ह्रदय रोग:
इस रोग में राग दरबारी व् राग सारंग से संबंधित गीत सुनाना लाभदायक है। इनसे सम्बंधित चित्रपटीय गीत निम्न हैं: तोरा मन दर्पण कहलाये (काजल),  राधिके तूने बंसरी चुरायी (बेटी-बेटा),  झनक-झनक तोरी बजे पायलिया (मेरे हुजूर)
, बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन),  जादूगर सइयाँ छोड़ मोरी (फागुन), ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा), मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोए (मुगले आज़म) आदि। ह्रदय रोगियों को गायत्री मंत्र के श्रवण व जाप से लाभ होता है। 
अनिद्रा:
इस रोग के होने पर राग भैरवी राग मोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत इस प्रकार हैं: रात भर उनकी याद आती रही (गमन), नाचे मन मोरा (कोहिनूर), मीठे-मीठे बोल बोले पायलिया (सितारा), तू गंगा की मौज मै यमुना (बैजू बावरा), सावरे सावरे (अनुराधा), चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम) छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ),  झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन),  कुहू कुहू बोले रे कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी) आदि।  
अम्लाधिक्य (एसिडिटी):
इस रोग में राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है।  इस राग के प्रमुख गीत इस प्रकार हैं:  ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत), आयो कहाँ से घनश्याम (बुड्ढा मिल गया), छूकर मेरे मन को (याराना), कैसे बीते दिन कैसे बीते रतिया (ठुमरी अनुराधा), तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाएँ (सेहरा), रहते थे कभी जिनके दिल मे(ममता), हमने तुमसे प्यार किया है इतना (दूल्हा-दुल्हन), तुम कमसिन हो नादां हो (आयी मिलन की बेला) आदि। 
कमजोरी: इस रोग के होने पर राग जय जयवन्ती सुनना लाभकारी होता है। प्रमुख गीत हैं: मन मोहना बड़े झूठे (सीमा), बैरन नींद न आये (चाचा जिंदाबाद), मोहब्बत की राहों पे चलना संभल के (उड़न खटोला), साज हो तुम आवाज हूँ मैं (चन्द्रगुप्त), जिंदगी आज मेरे नाम से शर्माती है (दिल दिया दर्द लिया), तुम्हें जो भी देख लेगा (बीस साल बाद) आदि।  
याददाश्त:
याददाश्त कम होने पर राग शिव रंजनी सुनने से लाभ मिलता है। इस राग पर आधारित प्रमुख गीत हैं: ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला), मेरे नयना (महबूबा), दिल के झरोखे से तुझको (ब्रह्मचारी), ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम), जीता था जिसके (दिलवाले), जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर) आदि।
रक्ताल्पता (खून की कमी):
राग पीलू से सम्बंधित गीत सुनना चाहिए:  आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म), नदिया किनारे (अभिमान),  खाली हाथ शाम आयी है (इजाजत), तेरे बिन सुने नयन हमारे (लता रफी), मैंने रंग ली चुनरिया (दुल्हन एक रात की),  मोरे सइयाँ जी उतरेंगे पार(उड़न खटोला) आदि।
मनोरोग:
राग बिहाग या राग मधुमती सुनना लाभदायक होता है। प्रमुख गीत: तेरे प्यार में दिलदार (मेरे महबूब), पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी), दिल जो न कह सका (भीगी रात), तुम तो प्यार हो (सेहरा), मेरे सुर और तेरे गीत (गूँज उठी शहनाई)
मतवारी नार ठुमक-ठुमक चली आए (आम्रपाली), सखी रे तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा) आदि। 
उच्च रक्तचाप:
शास्त्रीय रागों में राग भूपाली को विलंबित या तीव्र गति से सुना जा सकता है।  ऊँचे रक्त चाप में सुनने योग्य कुछ प्रमुख गीत हैं: चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी), ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ), चलो दिलदार चलो (पाकीजा), नील गगन के तले (हमराज़) आदि। 
निम्न रक्तचाप:
ओ नींद न मुझको आये (पोस्ट बॉक्स ०९९९), बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश में गंगा बहती है), जब डाल-डाल पर (सिकंदरे आज़म), पंख होते तो उड़ आती रे (सेहरा) आदि।  
अस्थमा:
भक्ति पर आधारित गीत सुनने व गाने से लाभ होता है। राग मालकोश व् राग ललित सुनना चाहिए।  प्रमुख गीत: तू छुपी है कहाँ (नवरंग), मन तड़पत हरि दर्शन को आज (बैजू बावरा), आधा है चंद्रमा (नवरंग), एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताज महल (लीडर) आदि। 
सिरदर्द:
राग भैरव सुनाना लाभ दायक है।  प्रमुख गीत: मोहे भूल गए साँवरिया (बैजू बावरा), राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक), पूछो न कैसे रैन बिताई (तेरी सूरत मेरी आँखें), सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए)
भय:
लोरी में एक तरह की कशिश होती है। बच्चा सबसे अधिक माँ की आवाज पहचानता है। लोरी के रूप में वह जो आवाज सुनता है उससे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है। लोरी सुनकर डर समाप्त हो जाता है। लोरी से मष्तिस्क का विकास होता है, दिमाग की कल्पनाशीलता तेज होती है। यही आगे चल कर बड़े बड़े अविष्कारों , कलाकृतियों और साहित्यिक रचनाओं की आधारशिला साबित होती है। 
एकाग्रता का अभाव:
गायत्री मंत्र 'ॐ भूर्भुव: स्व: त्त्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात ॐ'  का जप छात्रों को सबसे ज्यादा लाभ पहुँचाता किसी छात्र का पढ़ने में मन नहीं लगता है तो रोजाना गायत्री मंत्र का जप करे। गायत्री मंत्र के नियमित जप से गंभीर से गंभीर व्याधियों का शमन होते देखा गया है।
तनाव और अवसाद (स्ट्रेस-डिप्रेसन):
गायत्री मंत्र के जप से स्ट्रेस और डिप्रेसन दूर होता है। जो  बातों को जरूरत से ज्यादा सोचता है, वह गायत्री मंत्र का जप करे। गायत्री मन्त्र से ऊर्जा का प्रवाह होता है, साथ ही प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है।
श्वास रोग:
गायत्री मंत्र के नियमित पाठ से ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है,  साँस संबधी रोग दमा में भी आराम मिलता है।
त्वचा रोग:
गायत्री मंत्र का नियत समय पर निर्धारित संख्या में जप करने से त्वचा में निखार आता है। 
महामृत्यंजय मंत्र के लाभ:
यह मंत्र न केवल मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है बल्कि अटल मृत्यु को भी टाल सकता है।  छंदों के माध्यम से चिकित्सा पद्वति मे न केवल सुधार लाया जा सकता है बल्कि रोगी को शीघ्र स्वस्थ किया जा सकता है। हर अच्छे अस्पताल में छंद-चिकित्सा का न केवल प्रावधान होना चाहिए अपितु प्रयोगों को सूचीबद्ध कर उन पर संगोष्ठियाँ कर अनुभवों का आदान-प्रदान किया जाना चाहिए।  
संदर्भ: १. Music therapy– wikipedia, .२. Music in medical treatment. ३. Gayatri mantra in medical therapy .
४. Mahamritunjay mantra in medical therapy, ५. Lullabies- Wikipedia. ६. Raga therapy –raga music therapy.
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लेखक संपर्क: ५०१, चर्च रोड सिविल लाइन्स सीतापुर उ. प्र. ।

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