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मंगलवार, 1 मई 2018

shri shri chintan: doha gunjan 6


श्री श्री चिंतन दोहा गुंजन: ६
इच्छाएँ
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६.३.१९९६, आश्रम बेंगलुरु 
खुशी हेतु इच्छा करें, इच्छाएँ हों लक्ष।
पहुँचा  देंगी लक्ष्य तक, इच्छा यदि तुम दक्ष।।
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इच्छाओं की प्रकृति क्या, करिए कभी विचार।
इच्छा कल; आनंद है, अब में निहित अपार।।
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तुम हो यदि आनंदमय, इच्छाएँ हों दूर।
इच्छा मन में; तो न हो आनंदित भरपूर।।
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७.४.२०००, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश
इच्छा से आनंद का, होता है आभास।
मिल न सके आनंद, है 'माया'  यह अहसास।।
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यादें या अनुभव सुखद, हैं इच्छा का मूल।
मिलना, सुन्ना, देखना, दे इच्छा को तूल।।
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निश्चित घटना या नियति, से इच्छाएँ जाग।
प्रेरित करतीं; कार्यरत हो लेते तुम भाग।।
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भूखे को भोजन दिला, करो किसी से बात।
काम किया कोइ कभी, इच्छावश हो तात।।
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१४.४.२०१८ 

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