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मंगलवार, 21 मार्च 2023

सॉनेट,अँजुरी,दुर्गा, लोकगीत,शारदा,इब्नबतूता,नवगीत,कुण्डलिया,हाइकूगीत,मुक्तिका,

सॉनेट 
अँजुरी 
हरि मैं हारा, अँजुरी खाली।
नीर लिया अभिषेक करूँगा।
बूँद बूँद बह गया मुरारी।।
नत शिर, पीछे पग न धरूँगा।।

पवन न अँजुरी में टिक पाया।
गगर विशाल न मैं पाया गह।
पावक दायक दारुण पाया।।
भू का भार नहीं पाया सह।।

पंच तत्व से परे मिले क्या?
भक्ति भाव आता नहीं मन में।
काम क्रोध मद लोभ न छोड़ें।।
भरे लबालब नाहक तन में।।

देह अंजुरी में विकार सब
लाया हरि हर लो,मैं हारा।।
२१-३-२०२३
एक लोकरंगी गीत-
देवी को अर्पण.
*
मैया पधारी दुआरे
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
घर-घर बिराजी मतारी हैं मैंया!
माँ, भू, गौ, भाषा प्यारी हैं मैया!
अब लौं न पैयाँ पखारे रे हमने
काहे रहा मन भुलावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
आसा है, श्वासा भतारी है मैया!
अँगना-रसोई, किवारी है मैया!
बिरथा पड़ोसन खों ताकत रहत ते,
भटका हुआ लौट आवा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
राखी है, बहिना दुलारी रे मैया!
ममता बिखरे गुहारी रे भैया!
कूटे ला-ला भटकटाई -
सवनवा बहुतै सुहावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
बहुतै लड़ैती पिआरी रे मैया!
बिटिया हो दुनिया उजारी रे मैया!
'बज्जी चलो' बैठ काँधे कहत रे!
चिज्जी ले ठेंगा दिखावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
तोहरे लिए भए भिखारी रे मैया!
सूनी थी बखरी, उजारी रे मैया!
तार दये दो-दो कुल तैंने
घर भर खों सुरग बनावा
रे भैया! झूम-झूम गावा
*
पत्रिका विमर्श २०२३ / १
सरस्वती सुमन दोहा विशेषांक, मार्च २०२३, प्रधान संपादक श्री (डॉ.) आनंद कुमार सिंह देहरादून, विशेषांक संपादक श्री अशोक अंजुम अलीगढ़।
हिंदी की शुद्ध साहित्यिक अव्यावसायिक पत्रिकाओं में अग्रणी पत्रिका 'सरस्वती सुमन'का २१ वें वर्ष में प्रकाशित यह अंक, ९९ वाँ अंक है। प्रसिद्ध दोहाकार-संपादक-समीक्षक अशोक अंजुम जी ने हेतु सामग्री संकलन और संपादन में जिस निपुणता का परिचय दिया है, वह असाधारण और प्रशंसनीय है।

इस दोहा विशेषांक का श्रीगणेश 'वेदवाणी' के अन्तर्गत ऋग्वेद इस एक ऋचा ( शब्दार्थ-भावार्थ सहित) तथा संपादकीय से डॉ. आनंद सुमन द्वारा किया गया है। अतिथि संपादकीय में अशोक अंजुम ने दोहे के गतागत के मध्य वैचारिक सृजन सेतु दोहे बनाया है। पद्मभूषण नीरज जी के साथ अंजुम का साक्षात्कार दोहा के सृजन, भविष्य आदि प्रश्नों का सटीक संतोषजनक समाधान सुझा सका है।

'विवेचन खंड' में डॉ. शिव ॐ अंबर, फर्रुखाबाद, डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' फ़िरोज़ाबाद, राजेंद्र वर्मा लखनऊ तथा डॉ. ब्रह्मजीत गौतम गाज़ियाबाद, डॉ. कल्पना शर्मा, दीपक गोस्वामी चिराग तथा अशोक अंजुम ने ने दोहा छंद के रचना पक्ष, शिल्प, त्रुटि संकेतन, त्रुटि सुधार, आधुनिकता बोध आदि बिंदुओं पर सटीक जानकारी देकर नव दोहाकारों का पथ प्रदर्शन किया है। इन लेखों ने इस विशेषांक को समृद्ध किया है।

'धरोहर' खंड में कबीर, जायसी, तुलसी, ददौ, रहीम, मलूकदास. बिहारी, रसलीन, वृन्द, भारतेन्दु, काका हाथरसी, नागार्जुन, पद्मश्री चिरंजीत, पद्मभूषण नीरज, उदयभानु 'हंस, पद्मश्री बेकल उत्साही, हरिकृष्ण शर्मा, डॉ. किशोर काबरा, इंजी. चंद्र सेन विराट, निदा फ़ाज़ली, पदम् श्री माणिक वर्मा, कुमार रवींद्र, हुल्लड़, डॉ. कुँअर बेचैन, कैलाश गौतम, ज़ाहिर कुरैशी, डॉ. उर्मिलेश, इब्राहीम 'अश्क', डॉ, वर्षा सिंह, कमलेश द्विवेदी, योगेंद्र मौदगिल तथा मन चाँदपुरी के दोहे श्रद्धांजलि स्वरूप देना एक स्वास्थ्य परंपरा को पुष्ट करना है।

'वर्तमान' खंड में २३ महिला दिहकारों तथा ११ पुरुष दोहाकारों को सम्मिलित कर अंजुम जी ने गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ किया है। इस अंक का वैशिष्ट्य १०५ दोहा कृतियों के आवरण चित्र तथा उन पर सूक्ष्म समीक्षा का समावेशन है। सारत: यह अंक हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। इस अंक के संयोजक, संपादक, प्रकाशक तथा सभी रचनाकार इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए साधुवाद के पात्र हैं।
*

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान, संपादक कृष्ण प्रज्ञा
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com
***
सॉनेट
रंग
रंगरहित बेरंग न कोई।
श्याम जन्मता सदा श्वेत को।
प्रगटाए पाषाण रेत को।।
रंगों ने नव आशा बोई।।
रंगोत्सव सब झूम मनाते।
रंग लगाना बस अपनों को।
छोड़ न देते क्यों नपनों को?
राग-रागिनी, गीत गुँजाते।।
रंग बिखेरें सूरज-चंदा।
नहीं बटोरें घर-घर चंदा।
यश न कभी भी होता मंदा।।
रंगों को बदरंग मत करो।
श्वेत-श्याम को संग नित वरो।
नवरंगों को हृदय में धरो।।
२१-३-२०२२
•••
दोहा
हिंदू मरते हों मरें, नहीं कहीं भी जिक्र।
काँटा चुभे न अन्य को, नेताजी को फ़िक्र।।
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***
मुक्तक कविता दिवस पर
कवि जी! मत बोलिये 'कविता से प्यार है'
भूले से मत कहें 'इस पे जां निसार है'
जिद्द अब न कीजिए मुश्किल आ जाएगी
कविता का बाप बहुत सख्त थानेदार है
*
***
शारद विनय
*
सरसुति सुरसति सब सुख दैनी,
हंस चढ़त लटकावति बैनी।
बीना थामे सुर गुंजाँय-
कर किरपा कुछ मातु सुनैनी।।
*
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
सिर पै कर धर आसिस, बरसाओ न मैया!
हैं संतान तिहारी सच बिसर गओ जब
भव बाधा ने घेरो सुख बिखर गओ सब
दर पर आ टेर लगाई, अपनाओ न मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
अपढ़-अनाड़ी ठैरे, आ दरसन देओ
इत-उत भटके, ईसें सेवा में लेओ
उबर सके संकट सें ऊ जिसे उबारो
एक आसरो तुमरो, ऐ माँ न बिसारो
ओ माँ! औसर देओ, अंबे अ: मैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
*
आखर सबद न सरगम, जाने सिखला दो
नाद अनाहद तन्नक मैया! सुनवा दो
कलकल-कलरव ब्यापी माँ बीनापानी
भवसागर सें तारो हमखों कल्यानी
चरन सरन स्वीकारो ठुकराओ न दैया!
सरन तुमाई आय हम, ठुकराओ न मैया!
***
एक रचना
*
विश्व में कविता समाहित
या कविता में विश्व?
देखें कंकर में शंकर
या शंकर में प्रलयंकर
नाद ताल ध्वनि लय रस मिश्रित
शक्ति-भक्ति अभ्यंकर
अक्षर क्षर का गान करे जब
हँसें उषा सँग सविता
तभी जन्म ले कविता
शब्द अशब्द निशब्द हुए जब
अलंकार साकार हुए सब
बिंब प्रतीक मिथक मिल नर्तित
अर्चित चर्चित कविता हो तब
सत्-शिव का प्रतिमान रचे जब
मन मंदिर की सुषमा
शिव-सुंदर हो कविता
मन ही मन में मन की कहती
पीर मौन रह मन में तहती
नेह नर्मदा कलकल-कलरव
छप्-छपाक् लहरित हो बहती
गिरि-शिखरों से कूद-फलाँगे
उद्धारे जग-पतिता
युग वंदित हो कविता
***
इब्नबतूता
*
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
नहीं किसी को शकल दिखाता
घर के अंदर बंद हुआ है
राम राम करता दूरी से
ज्यों पिंजरे में कोई सुआ है
गले मत मिला, हाथ मत मिलो
कुरता सिलता बिन धागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
सगा न कोई रहा किसी का
हाय न कोई गैर है
सबको पड़े जान के लाले
नहीं किसी की खैर है
सोना चाहे; नींद न आए
आँख न खुलती पर जागा
इब्नबतूता भूल के जूता
कोरोना से डर भागा
***
नवगीत
क्या होएगा?
*
इब्नबतूता
पूछे: 'कूता?
क्या होएगा?'
.
काय को रोना?
मूँ ढँक सोना
खुली आँख भी
सपने बोना
आयसोलेशन
परखे पैशन
दुनिया कमरे का है कोना
येन-केन जो
जोड़ धरा है
सब खोएगा
.
मेहनतकश जो
तन के पक्के
रहे इरादे
जिनके सच्चे
व्यर्थ न भटकें
घर के बाहर
जिनके मन निर्मल
ज्यों बच्चे
बाल नहीं
बाँका होएगा
.
भगता क्योंहै?
डरता क्यों है?
बिन मारे ही
मरता क्यों है?
पैनिक मत कर
हाथ साफ रख
हाथ साफ कर अब मत प्यारे!
वह पाएगा
जो बोएगा
२१-३-२०२०
***
हाइकु गीत
*
आया वसंत
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत
हुए मोहित,
सुर-मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकर न जाने
नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान?
'सलिल' वरदान
दें एकदंत..
***
कुण्डलिया
*
रूठी राधा से कहें, इठलाकर घनश्याम
मैंने अपना दिल किया, गोपी तेरे नाम
गोपी तेरे नाम, राधिका बोली जा-जा
काला दिल ले श्याम, निकट मेरे मत आ, जा
झूठा है तू ग्वाल, प्रीत भी तेरी झूठी
ठेंगा दिखा न भाग, खिजाती राधा रूठी
*
कुंडल पहना कान में, कुंडलिया ने आज
कान न देती, कान पर कुण्डलिनी लट साज
कुण्डलिनी लट साज, राज करती कुंडल पर
मौन कमंडल बैठ, भेजता हाथी को घर
पंजा-साइकिल सर धुनते, गिरते जा दलदल
खिला कमल हँस पड़ा, फन लो तीनों कुंडल
२१-३-२०१७
***
मुक्तिका
*
आया वसंत, / इन्द्रधनुषी हुए / दिशा-दिगंत..
शोभा अनंत / हुए मोहित, सुर / मानव संत..
*
प्रीत के गीत / गुनगुनाती धूप / बनालो मीत.
जलाते दिए / एक-दूजे के लिए / कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण / संभावित जननी / जैसे विवर्ण..
हो हरियाली / मिलेगी खुशहाली / होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली / मधुकर गुंजार / लजाती लली..
सूरज हुआ / उषा पर निसार / लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत / जानकार न जाने / नीत-अनीत.
क्यों कन्यादान? / 'सलिल' वरदान / दें एकदंत..
***
मुक्तिका
*
खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता आँखें हैं नम..
पाला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा यम्..
जो करता जग उजियारा
उस दीपक के नीचे तम..
सीमाओं की फ़िक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
टन-टन रुचे न मन्दिर की.
रुचती कोठे की छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा
'सलिल' रखो हाथों में दम..
***
मुक्तक
मौन वह कहता जिसे आवाज कह पाती नहीं.
क्या क्षितिज से उषा-संध्या मौन हो गाती नहीं.
शोरगुल से शीघ्र ही मन ऊब जाता है 'सलिल'-
निशा जो स्तब्ध हो तो क्या तुम्हें भाती नहीं?
२१-३-२०१०

*** 

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