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गुरुवार, 23 मार्च 2023

सॉनेट,रश्मि,विलियम वर्ड्सवर्थ डैफोडिल,मनहरण घनाक्षरी,राजा अवस्थी,कज्जल छंद,

गौरैया! चुप रहना सीखो 
*
बाज कहे जो वही सही है 
जो बहेलिया गलत नहीं है 
शक्तिहीन का ही कुसूर सब 
छाया ही कब संग रही है 
साथ धार के बहना सीखो 
*
सहन न होगा गर चहकोगी 
साथ कली के यदि महकोगी 
कर शिकार मरघट ले जाएँ 
तापें हाथ कहें दहकोगी 
हाँ में हाँ ही कहना सीखो 
जनके हाथों में है सत्ता 
उनके हाथों में हर पत्ता 
सहमत उनसे नहीं हुए तो 
मिल न सकेगा एकउ लत्ता 
निज पीड़ाएँ तहना सीखो 
***
सॉनेट
रश्मि
रश्मि तिमिर का पाश काटती
कण-कण करता है अभिनंदन
करतल ध्वनि हो अक्षत चंदन
नव आशा निशि-दिवस बाँटती

रश्मि सलिल लहरों सँग खेले
सिकता-कण कनकाभित होते
नित नव अनगिन सपने बोते
रविकर पल पल लगें नवेले

रश्मि रचे रचना हर रुचिकर
धूप-छाँव कर, मन बहलाए
शुभ प्रयास की जय जय गाए

रश्मिरथी सबके मन में हो
किरण करे किसलय हर पोषित
तुहिन कणों को करे न शोषित
२४-३-२०२३
•••
भाषा सेतु 
अंग्रेजी हिंदी 
*
William Wordsworth - daffodils               विलियम वर्ड्सवर्थ - डैफोडिल
I wandered lonely as a cloud                    मैं एकाकी बादल जैसे भटक रहा था
That floats on high o'er vales and hills,    जो उड़ता है ऊपर घाटी अरु पर्वत के
When all at once I saw a crowd,               एकाएक झुण्ड देखा मैंने जब एक
A host, of golden daffodils,                      आतिथेय ज्यों एक सुनहरे डैफोडिल का
Beside the lake, beneath the trees,            बाजू में सरवर के; पेड़ों की छाया में
Fluttering and dancing in the breeze.        झूम- झूमकर नाच रहा साथ पवन के।
Continuous as the stars that shine             लगातार जैसे तारे चमका करते हैं
And twinkle on the milky way,                 झिलमिल करते आकाशी गंगा के पथ में
They stretch'd in never-ending line           बँधे हुए वे अंतहीन रेखा में जैसे
Along the margin of a bay:                        साथ-साथ खाड़ी की तटरेखा के मैंने
Ten thousand saw I at a glance                 दस हजार को देखा एक साथ ही मैंने
Tossing their heads in sprightly dance.     झूमा रहे अपने सर होकर मुदित, नाचते।
The waves beside them danced, but they  लहरें उनके बाजू में नाचीं लेकिन वे
Out-did the sparkling waves in glee:--      अनदेखा करते लहरों को निज मस्ती में
A Poet could not but be gay                       एक कवि हो सकता नहीं और नाकारा
In such a jocund company!                        ऐसी अद्भुत और अलौकिक प्रिय संगति में
I gazed--and gazed--but little thought        देखा रहा देखता तुक फिर मैंने सोचा
What wealth the show to me had brought; क्या निधि दृश्य अनोखा मुझ तक ले आया है।
For oft, when on my couch I lie                 जब फुरसत में लेटा होता हूँ मैं कोच पर
In vacant or in pensive mood,                    खालीपन में या चिंतन में लीन हुआ मैं
They flash upon that inward eye                वे दमकते हैं मेरी अंतर्दृष्टि में
Which is the bliss of solitude;                    जो वरदान अकेलेपन का मैंने पाया
And then my heart with pleasure fills        तब मेरा हृद प्रफुल्लता से पूर्ण भर गया
And dances with the daffodils.                  और उठा मैं नाच संग में डैफोडिल के।

हिंदी काव्यानुवाद : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
२३-३-२०२२
***
मनहरण घनाक्षरी (३१ वर्ण)
*
मनहरण घनाक्षरी में १६,१५ वर्ण पर यति तथा चरणांत में गुरू होता है।
शालिनी हो, माननी हो, नहीं अभिमाननी हो,
श्वास-आस स्वामिनी हो मीत मेरी कविता
गति यति लय रस भाव बिंब रूप जस,
प्राण मन आत्मा हो प्रीत मेरी कविता
साधना हो वंदंना हो प्रार्थना हो अर्चना हो
मोहिनी आराधना हो रीत मेरी कविता
शब्द शब्द हो निशब्द सुनें सभी श्रोता गण
हो अतीत अव्यतीत गीत मेरी कविता
२३-३-२०१९
***
पुस्तक सलिला:
'जिस जगह यह नाव है' नवगीत का वह घाट है
*
[कृति विवरण- जिस जगह यह नाव है, नवगीत संग्रह, राजा अवस्थी, वर्ष २००६, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, जैकेट सहित, पृष्ठ १३६, मूल्य १२०रु., अनुभव प्रकाशन, ई २८ लाजपत नगर, साहिबाबाद, गाज़ियाबाद २०१००५, ०१२० ४११२२१०, रचनाकार संपर्क- गाटरघाट मार्ग, आजाद चौक, कटनी ४८३५०१, चलभाष ९६१७९१३२८७}
*
सनातन सलिला नर्मदा के अंचल में आधुनिक हिंदी के उद्भव काल से ही साहित्य की हर विधा में सतत सत्साहित्य का सृजन होता रहा है। वर्तमान पीढ़ी के सृजनशील नवगीतकारों में राजा अवस्थी का नाम साहित्य सृजन को सारस्वत पूजन की तरह समर्पित भाव से निरंतर कर रहे रचनाकारों में सम्मिलित है। हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ हस्ताक्षर डॉ. देवेन्द्र शर्मा 'इंद्र' तथा नर्मदांचल के वरिष्ठ साहित्य साधक श्यामनारायण मिश्र द्वारा आशीषित 'जिस जगह यह नाव है' ७८ समसामयिक, सरस नवगीतों का पठनीय संग्रह है। मध्य प्रदेश के बड़े जंक्शन कटनी में बसे राजा के नवगीत विंध्याटवी के नैसर्गिक सौंदर्य, ग्राम्यांचल के संघर्ष, नगरीकरण की घुटन, राजनीति के दिशाभ्रम, आम जन के अंतर्द्वंद तथा युवाओं के सपनों के बहुदिशायी रेलगाड़ियों में यात्रारत मनोभावों को मन में बसाते हैं। करुणा और व्यथा काव्य का उत्स है. गाँव की माटी की व्यथा-कथा गाँव के बेटों तक न पहुँचे यह कैसे संभव है?
आज गाँव की व्यथा बाँचती / चिट्ठी मेरे नाम मिली
विधवा हुई रमोली की भी / किस्मत कैसी फूटी
जेठ-ससुर की मैली नज़रें / अब टूटीं, तब टूटीं
तमाम विसंगतियों से लड़ते-जूझते हुए भी अक्षर आराधना किसी सैनिक के पराक्रम से कम नहीं है।
चंदन वन काट-काट / शव का श्रृंगार करें
शिशुओं को दें शव सा जीवन
यौवन में सन्नाटा / मरघट सा छाता है
आस-ओस दुर्लभ आजीवन
यश अर्जन को होता
भूख को हमारी, साहित्य में उतारना
माँ शारदा को क्षुधा-दीप समर्पित करती कलम का संघर्ष गाँव और शहर हर जगह एक सा है। विडम्बनाओं व विसंगतियों से जूझना ही नियति है-
स्वार्थ-पोषित आचरण को / यंत्रवत निष्ठुर शहर को / सौपने बैठा
भाव की पहचान भूले / चेहरे पढ़ना कठिन है
धुंध, सन्नाटा, अँधेरा / और बहरापन कठिन है
विवशताएँ, व्यस्तताएँ / ह्रदय में छल वर्जनाएं / थोपने बैठा
अनचाही पीड़ाएँ प्रकृति प्रदत्त कम, मनुष्य रचित अधिक हैं-
गाँव के पंचों ने मिलकर / फिर खड़ी दीवार की
फिर वही हालत, नियति / वह ही प्रकृति के प्यार की
किशनवा-रधिया की / घुटती साँस का मौसम।
किसी समाज के सामने सर्वाधिक चिंतनीय स्थिति तब होती है जब बिखराव के कारण मानव-मन दूर होने लगें। राजा इस परिस्थिति का अनुमान कर अपनी चिंता नवगीत में उड़ेल देते हैं-
अंतस के समतल की / चिकनाई गायब अब
रोज बढ़े, फैले, ज़हरीला बिखराव
रिश्तों का ताप चुका / आ बैठा ठंडापन
चहक-पुलक में में पसरा जाता ठहराव
कैसी इच्छाओं के / ज्वार और भाटे ये
दूर हुए जाते मन, सदियों के द्वीप
विषमताओं के कुम्भ में सपनों की आहट बेमानी प्रतीत होने लगे तो नवगीत मन की पीड़ा को स्वर देता है -
किसलिए सजें / सपने, तो बस विशुद्ध रेत हैं
नरभक्षी पौधों से / आश्रय की आशा क्या?
सब के सब इक जैसे / टोला क्या, माशा क्या?
कोई भी अमृत फल / इन पर आ पायेगा?
छोडो भी आशा, ये बेंत हैं
बेशर्मी जेहन से / आँखों में उतरी
ढंकेंगी कब तक / ये पोशाकें सुथरी
बच पाना मुश्किल है / ये भोंडे संस्कार
दम लेंगे हंसकर ही, ये करैत हैं
राजा केवल नाम के ही नहीं अनुभूतियों और अभिव्यक्ति-क्षमता के भी राजा हैं। लोकतंत्र में भी सामंतवादी प्रवृत्तियों का बढ़ते जाना, प्रगति की मरीचिका मैं आम आदमी का दर्द बढ़ते जाना उनके मन की पीड़ा को बढ़ाता है-
फिर उसी सामंतवादी / जड़ प्रकृति को रोपता
एक विध्वंसक समय को / हाथ बाँधे न्योतता
जड़ तमाचे पर तमाचे / अमन के मुँह पर
पढ़ कसीदे पर कसीदे / दमन के मुँह पर
गर्व से मुस्की दबाये / है प्रगति का देवता
मुहावरेदार भाषा राजा अवस्थी के नवगीतों की जान है। रेवड़ी बेभाव बाँटी / प्रगति को दे दी धता, ढिबरी का तेल चुका / फैला अँधियार, खेतिहर बिजूकों से / भय खाएं राम, मस्तक में बोकर नासूर / टोपी के ये नकली बाल क्या सँवारना?, संविधान के मकड़जाल में / उलझा अक्सर न्याय हमारा, तार पर दे जीवन आघात / बेसुरे सुर दे रहे धता, कुँवारी इच्छाएं ऐसी / खिले ज्यों हरसिंगार के फूल जैसी अभिव्यक्तियाँ कम शब्दों में अधिक अनुभूतियों से पाठक का साक्षात करा देती हैं।
ग्राम्यांचली पृष्ठभूमि राजा अवस्थी को देशज शब्दों के उस ख़ज़ाने से संपन्न करती है जो शहरों के कोंवेंटी कवि के लिए आकाश कुसुम है। बरुआ, ठकुरवा, छप्पर, छुअन, झरोखा, निठुराई, बिजूका, झोपड़, जांगर. कहतें, पांग, बढ़ानी, हिय, पर्भाती, सुग्गे, ढिबरी, किशनवा, कुछबन्दियों, खटती, बहुँटा, अंकुई, दलिद्दर, चरित्तर, पैताने आदि ग्रामीण शब्दों के साथ उर्दू लफ्ज़ खातिर, रैयत, खबर, गुजरे, बैर, ज़ुल्मों, खस्ताहाल, नज़रें, ख्याल, आमद, बदन, यकीन, ज़ेहन, नुस्खे, नासूर, इन्तिज़ार, ज़हर, आफत, एहसान, तकादा, एहसान, चस्पा, लफ़्फ़ाज़ी आदि मिलकर उस गंगो-जमुनी जीवन की बानगी पेश करते हैं जिसमें शुद्ध हिंदी के अनुपूरित, प्रतिकार, अंतर्मन, उल्लास, ग्रसित, व्याल, आतंकित, प्रतिबंधित, मराल, भ्रान्ति, आलिंगन, उत्कंठा, वीथिकाएँ, वर्जनाएं,अंतस, निष्कलुष, बड़वानल, हिमगलित, संभरण आदि पुलाव में मेवे की तरह प्रतीत होते हैं। राजा अवस्थी ने शब्द-युग्मों की शक्ति और उपदेयता को पहचाना और उपयोग किया है। खबर-दबर, जेठ-ससुर, माँ-दद्दा, रात-दिन, हम-तुम, मन-मान, आस-ओस, उठना-गिरना, साँझ-सँझवाती, लड़ी-फड़ी, डगर-मगर, सुख-दुःख, घर-गाँव, सुबह-शाम, दोपहरी-रात, नून-तेल, आस-पास, दूध-भात, मरते-कटते, चोर-लबार, अमन-चैन, चहक-पुलक, सीलन-सन्नाटे, दंभ-छ्ल्, है-मेल, हवा-पानी, प्रीति-गीति-रीति, मोह-ममता-नेह, तन-मन-जेहन आदि शब्द युगन इन नवगीतों की भाषा को जीवंतता देते हैं।
राजा अवस्थी की प्रयोगधर्मी वृत्ति फाइलबाजों, कंठ-लावनी, वर्ण-कंपित, हिटलरी डकार, श्रध्दाशा, ममता की अलगनी, सुधियों की डोर, काँटों की गलियाँ, मुस्कानों के झोंके, शब्दों का संत्रास, पीड़ाओं के शिलाखंड जैसे शब्दावलियों से पाठक को बाँध पाये हैं। शब्द-सामर्थ्य, भाषा-शैली, नव बिम्ब, नए प्रतीक, मौलिक कथ्य की कसौटी पर ये गीत खरे उतरते हैं। इन नवगीतों में मात्रिक छंदों का प्रयोग किया गया है। दो से लेकर चार पंक्तियों तक के मुखड़े तथा आठ पंक्तियों तक के अंतरे प्रयुक्त हुए हैं। नवगीतों में अंतरों की संख्या दो या तीन है।
हिंदी के समर्थ समीक्षक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने इन गीतों में 'समकालीन जीवन व् उसके यथार्थ के प्रति अत्यधिक सजगता एवं संवेदनशीलता, स्थानीयता के रंगों से कुछ अधिक रंगीनियत' ठीक ही लक्षित की है। इस कृति के प्रकाशन के एक दशक बाद राजा अवस्थी की कलम अधिक पैनी हुई है, उनके नवगीतों के नये संकलन की प्रतीक्षा स्वाभाविक है।
२३-३-२०१६
***
छंद सलिला:
कज्जल छंद
*
लक्षण: सममात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणांत लघु-गुरु
लक्षण छंद:
कज्जल कोर निहार मौन,
चौदह रत्न न चाह कौन?
गुरु-लघु अंत रखें समान,
रचिए छंद सरस सुजान
उदाहरण:
१. देव! निहार मेरी ओर,
रखें कर में जीवन-डोर
शांत रहे मन भूल शोर,
नयी आस दे नित्य भोर
२. कोई नहीं तुमसा ईश
तुम्हीं नदीश, तुम्ही गिरीश।
अगनि गगन तुम्हीं पृथीश
मनुज हो सके प्रभु मनीष।
३. करेंगे हिंदी में काम
तभी हो भारत का नाम
तजिए मत लें धैर्य थाम
समय ठीक या रहे वाम
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
२३-३-२०१४
***
विज्ञापन या ठगी ??????
1) घोटालों से परेशान ना हों, Tata की चाय पीयें, इससे देश बदल
जाएगा|
2) पानी की जगह Coca Cola और Pepsi पीयें और प्यास बुझायें|
3) Lifebuoy और Dettol 99.9% कीटाणु मारते है पर 0.1 %
पुनः प्रजनन के लिए छोड़ ही देते हैं|
4) महिलाओं को बचाने और बटन खुले होने
की चेतावनी देने का ठेका केवल Akshay Kumar ने लिया है|
5) अगर आप Sprite पीते हैं तो लड़की पटाना आपके बाये हाँथ
का खेल है|
6) Salman Khan के अनुसार
महीने भर का Wheel Detergent ले आओ
और कई किलो सोने के मालिक बन जाओ.
आपको नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं|
7) Saif Ali Khan और Kreena Kapoor ने शादी एक दुसरे के सर
का Dandruff देख कर की है|
8)यदि किसी के Toothpaste में नमक है तो; यह पूछने के लिए आप
किसी के भी घर का बाथरूम तोड़ सकते हैं|
9) Samsung Galaxy S3 फोन के
अलावा बाकी सभी फोन बंदरों के लिए बने हैं| केवल यही फ़ोन
इंसानों के लिए है!
10) Mountain Dew पीकर पहाड़ से कूद जाइये, कुछ नहीं होगा|
11) Cadbury Dairy Milk Silk Chocolate खाएं कम और मुंह
पर ज्यादा लगायें|
12) Happident चबाइए और बिजली का कनेक्शन कटवा लीजिये|
13) आपके insurance Agents को अपने पापा से
ज्यादा आपकी फ़िक्र रहती हैं|
14) फलमंडी से ज्यादा फल आपके Shampoo में होते हैं|
15) अपने घर का Toilet सदा साफ़ रखें अन्यथा एक Handsome
सा लड़का Harpic और Camera लेकर आपकेToilet की सफाई
का Live Broadcast
करने लगेगा|
16) अगर आपने घर में Asian Paints किया है तो आप दुनिया के
सबसे Intelligent इन्सान हैं|
17) अगर आपने Lux Cozy Big Shot
नहीं पहनी तो आपको मर्द कहलाने काकोई हक़ नहीं|
18) अगर तुम्हारा बेटा Bournvita
नहीं पीता तो वो मंदबुद्धि हो जायेगा|
***
फागुन के मुक्तक
*
बसा है आपके ही दिल में प्रिय कब से हमारा दिल.
बनाया उसको माशूका जो बिल देने के है काबिल..
चढ़ायी भाँग करके स्वांग उससे गले मिल लेंगे-
रहे अब तक न लेकिन अब रहेंगे हम तनिक गाफिल..
*
दिया होता नहीं तो दिया दिल का ही जला लेते.
अगर सजती नहीं सजनी न उससे दिल मिला लेते..
वज़न उसका अधिक या मेक-अप का कौन बतलाये?
करा खुद पैक-अप हम क्यों न उसको बिल दिला लेते..
*
फागुन में गुन भुलाइए बेगुन हुजूर हों.
किशमिश न बनिए आप अब सूखा खजूर हों..
माशूक को रंग दीजिए रंग से, गुलाल से-
भागिए मत रंग छुड़ाने खुद मजूर हों..
२३-३-२०१३
*
पर्वत शिखरों पर बसी, धूप-छाँव सँग शाम.
वृक्षों पर कलरव करें, नभचर आ आराम..

गीत
*
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
हम समझ ही नहीं पाए
कौन क्या है?
और तुमने यह न समझा
मौन क्या है?
साथ रहकर भी रहे क्यों
दूर हरदम?
कौन जाने हैं अजाने
भाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
चाहकर भी तुम न हमको
चाह पाए.
दाहकर भी हम न तुमको
दाह पाए.
बाँह में थी बाँह लेकिन
राह भूले-
छिपे तन-मन में रहे
अलगाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
अ-सुर-बेसुर से नहीं,
किंचित शिकायत.
स-सुर सुर की भुलाई है
क्यों रवायत?
नफासत से जहालत क्यों
जीतती है?
बगावत क्यों सह रही
अभाव इतने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
खड़े हैं विषधर, चुनें तो
क्यों चुनें हम?
नींद गायब तो सपन
कैसे बुनें हम?
बेबसी में शीश निज अपना
धुनें हम-
भाव नभ पर, धरा पर
बेभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
*
साँझ सूरज-चंद्रमा सँग
खेलती है.
उषा रुसवाई, न कुछ कह
झेलती है.
हजारों तारे निशा के
दिवाने है-
'सलिल' निर्मल पर पड़े
प्रभाव कितने?
वक़्त ने दिल को दिए हैं
घाव कितने?...
***
नवगीत
विडंबना
*
कोई न चाहे
पुत्र बने निज
भगत गुरु सुखदेव.
नेता जी से पूछो भाई .
व्यापारी से पूछो भाई .
अधिकारी से पूछो भाई .
न्यायमूर्ति से पूछो भाई
वकील साब से पूछो भाई
सब चाहें केवल यश गाना.
भाषण देना चित्र छपाना.
कोई न चाहे
पुत्र बने निज
भगत गुरु सुखदेव.
*
कोई न चाहे
पत्नि-सुता हो
रानी लक्ष्मी बाई.
नेता जी से पूछो भाई .
व्यापारी से पूछो भाई .
अधिकारी से पूछो भाई .
न्यायमूर्ति से पूछो भाई
वकील साब से पूछो भाई
सब चाहें केवल यश गाना.
भाषण देना चित्र छपाना.
कोई न चाहे
पत्नि-सुता हो
रानी लक्ष्मी बाई.
*
मेरे घर में
रहे लक्ष्मी
तेरे घर में काली.
तू ले ले वनवास विरासत
सत्ता मैंने पा ली.
वादे किये न पूरे लेकिन
मुझसे तू मत पूछ.
मुँह मत खोल भले ही मैंने
दी जी भर कर गाली.
चार साल की पूछ न बातें
सत्तर की बतला दे.
अपना वोट मुझे दे दे
जुमलेबाजी बिसरा दे.
२३-३-२०१०
***

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