विशेष लेख
छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता सत्याग्रह और कायस्थ सत्याग्रही
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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भारत के स्वतंत्रता संघर्षों (विप्लव, सशस्त्र क्रांति तथा अहिंसक सत्याग्रह आदि) में कायस्थों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही। इसका कारण कायस्थों का सर्वाधिक शिक्षित होना तथा शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होना था। नौकरीपेशा कायस्थों ने आंदोलनों के विरोध में कार्य किया तो उनके बच्चों और कृषि या व्यवसायों से जुड़े पारिवारिक सदस्यों ने आन्दोलनों में प्राण शक्ति का संचार किया। बड़ी संख्या में कायस्थ पत्रकारों गणेश शंकर विद्यार्थी जी, पन्नालाल श्रीवास्तव जी आदि ने जन जागरण के लिए कलम के जौहर दिखाए।
दुर्भाग्यवश कायस्थ जन आजीविका कमाने या दमन से बचने के लिए निरंतर स्थान परिवर्तित करते रहे। फलत:, उनका स्थायित्व न हो सका। पूर्वजों से कुलनाम, धन-संपत्ति, गहने-जेवर आदि ग्रहण करनेवाली नई पीढ़ी ने पूर्वजों के अवदान को याद नहीं रखा। कायस्थों को २-३ पीढ़ियों से अधिक पुरखों की जानकारी ही नहीं है तो उनके कार्य और अवदान की जानकारी या खोज कैसे हो? कायस्थों का सशक्त सामाजिक संगठन न होना, संस्थाएँ स्थापित न करना, पुस्तक आदि न लिखना, खानदान के कागजात सम्हालकर न रखना, पारस्परिक द्वेषवश स्मृति चिन्हों को नष्ट करना आदि ने वर्तमान पीढ़ी के लिए स्वतंत्रता आंदोलनों में कायस्थों के अवदान को रेखांकित करना कठिन कर दिया है। यह लेखा कायस्थ सत्याग्रहियों के अवदान को प्रमाणिकता सहित प्रस्तुत करने का नन्हा प्रयास है। यह न समझें कि केवल इतने ही कायस्थ आजादी के लिए लड़े थे। प्रस्तुत से कई गुना अधिक कायस्थ सत्याग्रहियों की जानकारी नहीं मिल सकी।
आप सबसे अनुरोध है कि अपने खानदान के बड़ों से जानकारी प्राप्त करें। अपने पूर्व तथा वर्तमान निवास स्थानों से जानकारी एकत्र करें। अपने जिले के कलेक्टर कार्यालय में स्वतंत्रता संग्राम शाखा, पुरातत्व संग्रहालयों, पुस्तकालयों, कहाविद्यालयों में इतिहास के प्राध्यापकों आदि से जानकारी लेकर मुझे, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, वाट्स ऐप ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com पर भेजें ताकि मैं उन्हें पुस्तक में सम्मिलित कर सकूँ।
छत्तीसगढ़ अंचल की अब तक मुझे उपलब्ध जानकारी प्रस्तुत है। नई पीढ़ी की जानकारी के लिए छत्तीसगढ़ के प्रमुख नगरों में हुई आंदोलनात्मक गतिविधियों का संकेत कर दिया गया है।
रायपुर
छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध बगावत का बिगुल १८५६ में नारायण सिंह जी जमींदार सोनाखान ने फूँका था।उन्हें १९ दिसंबर १९५७ को जयस्तंभ चायक रायपुर में तोपे से उड़ा दिया गया था। १८ जनवरी १९५८ को नेटिव इन्फेंट्री की तीसरी रेजीमेन्ट ने मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह किया किंतु १७ सिपाहियों को फाँसी देकर उसे दबा दिया गया। मार्च १९०७ को आर.एन.मुधोलकर की अध्यक्षता में हुए सम्मलेन में डॉ. हरिसिंह गौर और रविशंकर शुक्ल ने महती भूमिका निभाई। १९१० में गुण्डाधुर के नेतृत्व में हुए बस्तर विद्रोह ने वनवासी आदिवासियों में चेतना का संचार किया। १९१५ को रायपुर में एनी बेसेंट द्वारा स्थापित होम रूल लीग की शाखा स्थापित की गई। १९१९ में कॉंग्रेस द्वारा अमृतसर सम्मलेन में खिलाफत आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। रायपुर में १७ मार्च १९२० को खिलाफत उपसमिति का गठन किया गया। २० दिसंबर १९२० को गाँधी जी के रायपुर-धमतरी-कुरुद प्रवास के समय जिला कॉंग्रेस समिति का गठन किया गया। छोटेलाल श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में कंडेल नहर सत्याग्रह हुआ। १९२१ में डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा राजाजी के रायपुर प्रवास का प्रभाव यह हुआ कि लोगों ने उपाधियाँ लौटा दीं, वकालत बंद कर दी, १६ पुलिस कर्मियों ने त्यागपत्र दे दिए और १९२३ के झंडा सत्याग्रह में रायपुए के सत्याग्रही जत्थे ने भाग लिया। १५ अप्रैल १९३० को रायपुर में महाकौशल राजनैतिक सम्मलेन हुआ। नमक सत्याग्रह में रविशंकर शुक्ल, सेठ गोविंददास, द्वारकाप्रसाद मिश्र, महंत लक्षमीनारायण दास तथा गयाचरण त्रिवेदीको ३ वर्ष की कैद हुई। रायपुर सुलग उठा१० जुलाई १९३० को रायपुर कोतवाली का घेराव किया गया। रुद्री में ५००० लोगों ने जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। १९३१-३२ ३२ में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, शराब दुकानों की पिकेटिंग, लगान बंद आदि आंदोलन हुए। नेताओं को जेल भेजने और जुर्माने लगाए जाने पर १४ वर्षीय बालक बलिराम ने वानर सेना का गठन कर आंदोलन की अलख जगाए रखी। १९३३ में गाँधी जी, १९३५ में डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा १९३६ में नेहरू जी के रायपुर प्रवासों के फलस्वरूप आई जन चेतना ने १९३७ विशाल बहुमत से डॉ. एन. बी.खरे की प्रथम कोंग्रे सर्कार के गठन की राह बना दी। १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों करने के इंकार कर सर्कार ने स्तीफा दे दिया। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में २७६१ सत्याग्रहियों में से रायपुर के ४७३ सत्याग्रही रायपुर से थे। भारत छोडो आंदोलन १९४२ में ४४७ सत्याग्रही कैद किए गए। स्वाधीनता सत्याग्रहों तथा संघर्षों का सिलसिला रायपुर में देश के स्वतंत्र होने तक निरंतर चला जिसमें कायस्थ समाज ने भी अपनी समिधा निरंतर समर्पित की।
* कुंजबिहारी लाल श्रीवास्तव जी -
कुंजबिहारी लाल श्रीवास्तव जी आत्मज गणपत्त लाल जी का जन्म १८९८ में हुआ। आपको भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लेने के कारन ३ वर्ष ९ माह कारावास भोगना पड़ा। आपका निवास नहरपारा रायपुर में था।
* कैलाश नारायण सक्सेना जी
जे. एन. सक्सेना जी के पुत्र कैलाश नारायण सक्सेना जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया तथा १५ दिन कारावास की सज पाई। आपका निवास निवास बूढ़ापारा रायपुर में था।
* बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव जी -
जन्म २८ फरवरी १८८९, आत्मज गुलाब बाबू, शिक्षा १० वीं, भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में ७ माह कारावास। बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव दृढ़ता और संकल्प के प्रतीक थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास की प्रमुख घटना कंडेल नहर सत्याग्रह के वह सूत्रधार थे। पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. नारायणराव मेघावाले के संपर्क में आकर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। वर्ष 1915 में उन्होंने श्रीवास्तव पुस्तकालय की स्थापना की। यहां राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ मंगवाई जाती थी। धमतरी स्थित उनका घर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। वह वर्ष 1918 में धमतरी तहसील राजनीतिक परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। छोटेलाल श्रीवास्तव को सर्वाधिक ख्याति कंडेल नहर सत्याग्रह से मिली। अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने किसानों को संगठित किया। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संगठित जनशक्ति का यह पहला अभूतपूर्व प्रदर्शन था। वर्ष 1921 में स्वदेशी प्रचार के लिए उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की। वर्ष 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ। बाबू साहब ने उस सत्याग्रह में भरपूर सहयोग दिया। जब वर्ष 1930 में रुद्री के नजदीक नवागांव में जंगल सत्याग्रह का निर्णय लिया गया, तब बाबू साहब की उसमें सक्रिय भूमिका रही। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें कड़ी यातना दी गई। वर्ष 1933 में गांधीजी ने छत्तीसगढ़ दौरे में धमतरी गए। वहाँ उन्होंने छोटेलाल बाबू के नेतृत्व की प्रशंसा की। वर्ष 1937 में श्रीवास्तवजी धमतरी नगर पालिका निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बाबू साहब की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के महान तीर्थ कंडेल में 18 जुलाई 1976 को उनका देहावसान हो गया।
* ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव जी -
जन्म १९१८, आत्मज रामविशाल श्रीवास्तव जी के पुत्र ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव जी ने शिक्षा माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की थी। उनहोंने विदेशी वस्तु बहिष्कार आंदोलन १९३२ में भाग लिया। उन्हें ३ माह कारावास की सज मिली। उनका निवास पिथौरा रायपुर में था।
श्री आनंद दास जी -
जन्म ४ अप्रैल १९१४, आत्मज - अयोध्या दास जी, शिक्षा प्राथमिक, भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में ६ माह कारावास। निवास बंगोली रायपुर।
जगदेव दास जी –
वर्ष १९१५ में जन्मे जगदेव दास जी के पिता का नाम नारायण दास था । माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त जगदेव दास जी ने वर्ष १९३२ के सविनय अवज्ञ आंदोलन में भाग लिया । आपको ६ माह के कारावास का दंड मिला था। आप रायपुर पंडरी तराई में रहते थे।
जगन्नाथ नायडू जी –
रामगुलाम नायडू जी के पुत्र जगन्नाथ नायडू का जन्म ७ नवंबर १९१९ को हुआ । माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त जगन्नाथ जी ने १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में उत्साह पूर्वक भाग लिया । आपको अंग्रेजों द्वरा ६ माह का कारावास दिया गया। आपका निवास बैरन बाजार में था।
तुलसीराम पिल्लै जी –
महासमुंद निवासी तुलसीराम पिल्लै आत्मज शिवचरण पिल्लै ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया। उन्हें ६ माह कारावास का दंड मिला।
दयालु दास जी -
सुंदर दास जी के पुत्र दयालु दास दृढ़ संकल्प के धनी थे। उन्होंने प्राथमिक तक शिक्षा प्राप्त की। वे राष्ट्रीय काँग्रेस दल से जुड़ गए। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह १९१९ तथा भारत छोड़ो आंदोलन आ २ में भाग लिया। उन्हें ६ मास कारावास का दंड मिला। वे बंग ओली रायपुर में रहते थे।
दयाबाई जी –
वर्ष १९०४ में जन्मी दयाबाई अपने समय से बहुत आगे की सोच रखनेवाली नारी थीं। आपके जीवन साथी बंगओली निवासी शिवलाल जी थे। भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागी होकर आपने ६ माह जेल की सजा पाई थी।
मनोहरलाल श्रीवास्तव जी -
श्री रघुवरदयाल श्रीवास्तव के पुत्र मनोहर का जन्म १६ सितंबर १९०८ को हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की थी। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने का पुरस्कार आपको ७ माह १५ दिन के कारावास के रूप में मिला था।
शंकरलाल श्रीवास्तव जी –
लमकेनी निवासी शंकरलाल जी का जन्म १८ फरवरी १८९८ को हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा पाई। देश की पुकार पर वे स्वतंत्रता अत्याग्रहों से जुड़ गए। १९३० के जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें ४ माह का कारावास मिला था।
सूरजप्रसाद सक्सेना जी –
चौबे कॉलोनी निवासी नर्मदाप्रसाद सक्सेना जी के पुत्र सूरजप्रसाद जी ने स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की थी । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपने व्यवसाय पर देश सेवा को वरीयता दी। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में नेतृत्व करने के कारण आपको १ वर्ष ६ माह का सख्त कारावास दिया गया था।
दुर्ग
वीर प्रसूता दुर्ग की माटी ने अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया जिन्होंने स्वतंत्रता के महायज्ञ में अपनी आहुति दी थी। वर्ष १९०६ में राजनांदगाँव में शिवलाल मास्टर, शंकरराव खरे आदि ने स्वदेशी आंदोलन का श्री गणेश कर खादी का प्रचार किया। १९१५ में मध्य प्रांत और बरार प्रादेशिक संघ तथा होम रूल लीग की स्थापना से राजनैतिक चेतना में वृद्धि हुई। १९१९ में रोलेट एक्ट के विरोध में दुर्ग में ३७ दिवसीय ऐतिहासिक श्रमिक हड़ताल हुई। शिवलाल मास्टर, ठाकुर प्यारेलाल तथा रज्जूलाल को जिला बदर करने पर हुए जन विरोध के दबाब में गवर्नर के आदेश पर पॉलिटिकल एजेंट को आदेश रद्द कर माफी माँगनी पड़ी। १९२० में जलियाँवाला बाग कांड के बाद वकीलों ने वकालत छोड़ दी। १९२१ में जिला स्तरीय राजनैतिक सम्मेलन हुआ। १९२३ में झण्डा सत्याग्रह में की स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। २६ जनवरी १९३० को दांडी यात्रा के समय सविनय अवज्ञा आंदोलन में दुर्ग ने हिस्सा लिया। इसी साल जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण रामप्रसाद देशमुख तथा साथियों को जेल हुई। १९३२ में श्रीमती लक्ष्मी बाई धर्मपत्नी श्री गुलाब चंद ने जेल जाकर महिलाओं के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया। २२ नवंबर १९३३ को गाँधी जी के आगमन पर ५०,००० नर-नारी एकत्र हुए।१९३८ में खैरागढ़ में सेवादल तथा कॉंग्रेस का गठन हुआ। १९३९ में व्यक्तिगत सत्याग्रह में सम्मिलित ५५० सत्याग्रहियों में से २२ दुर्ग से थे। वर्ष १९४१ तक सम्मिलित हुए २७६१ सत्याग्रहियों में से १०७ दुर्ग से थे। स्वतंत्रता सतयग्रहों में भंगूलाल श्रीवास्तव, रामप्रसाद देशमुख आदि के नेत्रत्व में युवकों ने कड़ा संघर्ष किया। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में जिला कचहरी तथा नगर पालिका परिषद भवन आग के हवाले कर दिए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति पर्यंत दुर्ग ने बलिदानों की मशाल जलाए रखी।
केशवलाल गुमाश्ता जी -
वर्ष १९०१ में जन्मे केशव लाल गुमाश्ता जी ने बी.ए., एल-एल. बी. तक शिक्षा प्राप्त की। स्वाधीनता आंदोलन में सहभागिता को सरकार विरोधी गतिविधि करार देकर आपको १९२९ में अंग्रेज समर्थक राजनाँदगाँव स्टेट ने शिक्षक पद से निष्काषित कर दिया पर अपने अपनी राह नहीं बदली। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में महती भूमिका निभाने के कारण ९-८-१९४२ से ७-७-१९४४ तक कारावास में रहे। आपको महाकौशल कॉंग्रेस कमेटी जबलपुर द्वारा ताम्र पत्र से सम्मनित किया गया।
भंगुलाल श्रीवास्तव जी -
कुञ्ज बिहारी लाल श्रीवास्तव जी के पुत्र भंगुलाल जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया। उन्हें १० माह कारावास की सजा दी गई। आप १८-४-१९४२ से १९-१०-१९४३ तक जेल में रहे। १५-८-१९७३ को आपको ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया। आप म. प्र. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के संस्थापक सदस्य तथा दुर्ग जिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के अध्यक्ष रहे।
श्री रामसहाय जी -
ग्राम मुराईटोला, बालौद निवासी रामसहाय जी आत्मज सुभाष गौड़ जी ने भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में भाग लिया। माह कारावास का दंड दिया गया था।
विश्वनाथ दीवान जी -
बेमेतरा दुर्ग निवासी हीराधर दीवान जी के पुत्र विश्वनाथ जी ने मैट्रिक तक शिक्षा पाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में सक्रियता के लिए आपको ९ माह का कारावास भोगना पड़ा था।
राजनाँदगाँव
स्वतंत्रता सत्याग्रहों से सामान्य जनों को जोड़ने के लिए गाँधी जी ने स्थानीय समस्याओं के आधार पर असहयोग आंदोलन किये जाने का आह्वान किया। वर्ष १९२० में राजनाँदगाँव में बी.एन.सी. मिल के मजदूरों ने अंग्रेज प्रबधकों के विरुद्ध आंदोलन किया। निकटस्थ रियासतों छुईखदान, छुरिया, कवर्धा, खैरागढ़, बादराटोला, कौड़ीकसा आदि में आंदोलन आरंभ हुए। १९३० में कॉंग्रेस की पहली बैठक हुई, क्रांतिकारियों के लिए पुस्तकालय स्थापित किया गया। १९३४ में प्रथम हरिजन आंदोलन हुआ। १९३८ में कांग्रेस ने 'रिस्पोंसिबल गवर्नमेंट' आंदोलन किया जिसका नेतृत्व १९३२ में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके गोवर्धनलाल वर्मा जी ने किया था। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में ९ सत्याग्रही गिरफ्तार हुए।
डॉ.फणिभूषण दास जी -
डोंगरगढ़ निवासी फणिभूषण दास जी आत्मज आनंद चरण दास जी का जन्म अक्टूबर १९१७ में हुआ था। उन्होंने बंगाल से फिजिशियन (एल.एम.पी.) तथा एम.बी.बी.एस. की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी फलती-फूलती मेडिकल प्रेक्टिस छोड़कर वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। वे१९३० में गाँधी जी के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में रहने के कारण मदारीपुर जेल में कारावास मिला। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए उन्हें मार्च १९४२ से सितंबर १९४५ तक सेंट्रल जेल में कैद रख गया था। वे नोआखली में गांधी जी के चिकित्सक थे।
कृष्णचंद्र वर्मा जी -
गोंड़पारा बिलासपुर निवासी रामचंद्र वर्मा जी के आत्मज कृष्णचंद्र जी का जन्म १९११ में हुआ था। उनहोंने सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे १९३६ से हो स्वतंत्रता सत्याग्रहों में सक्रिय हो गए थे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्हें ४ माह का कारावास तथा १५० रु. का अर्थदंड दिया गया था। दुर्योगवश १९४५ में उनका निधन हो गया।
क्रांति कुमार भारती जी -
छत्तीसगढ़ के ख्यात पत्रकार क्रांति कुमार भारती जी का जान १८९४ में हुआ था। आप १९१९ के असहयोग आंदोलन में दिल्ली में सक्रीय भूमिका का ंनिर्वहण कर रहे थे, फलत: आपको ३० बेटों की सजा से नवाजा गया था। आपने इस पर भी उफ़ तक न की और देश की पुकार पर स्वतंत्रता के महायज्ञ में आहुति देते रहे। वर्ष १९३० में बिलासपुर आकर आपने सरकारी स्कूल तिरंगा ध्वज फहराने का पराक्रम दिखाया और गिरफ्तारी दी। १९३२ के स्वदेशी आंदोलन में आप पुन:: गिरफ्तार हुए। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर आपको ६ माह कारावास तथा १०० रु. अर्थदंड की सजा दी गई।
केशव प्रसाद वर्मा जी -
भैरव प्रसाद वर्मा जी के आत्मज केशव प्रसाद जी का जन्म १९०२ में हुआ था। आपकी शिक्षा प्राथमिक तक हुई थी। सं १९३० के जंगल सत्याग्रह में सक्रियता के लिए आपको ३ माह कारावास तथा ५० रु. अर्थ दंड दिया गया था। आप का निवास सुभाष नगर बिलासपुर में था।
कैलाश चंद्र वर्मा -
१४ जुलाई १९०९ को जन्मे कैलाश चंद्र जी के पिता, गणेश प्रसाद जी वर्मा के पुत्र थे। आपने मैट्रिक तक शिक्षा पाई थी। १९३० के स्वतंत्रता सत्याग्रह में आपने सक्रिय भूमिका निभाई थी। १९३२ में विदेशी वस्तु बहिष्कार आंदोलन में भागीदारी के लिए आपको १५ दिन कारावास तथा ७५ रु. अर्थदंड दिया गया था।
जुगलकिशोर जी -
लक्ष्मण प्रसाद जी के पुत्र जुगलकिशोर जी ने १९३० के विदेश वस्तु बहिष्कार आंदोलन को सक्रिय रहकर सफल बनाया। फलत: आपको ३ माह का कारावास तथा २० रु. का अर्थदंड दिया गया।
यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव जी -
हरिचरण लाल जी के सुपुत्र यदुनंदन जी का जन्म १८९८ में हुआ था। आप १९२० के स्वतंत्रता सत्यग्रह में सक्रिय रहे। १९३१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में नेतृत्व करने पर आपको १ वर्ष कारावास तथा १०० रु. का अर्थदण्ड दिया गया। आप राष्ट्रवादी साप्ताहिक के संपादक तथा छत्तीसगढ़ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। अनेक पुस्तकों के रचयिता यदुनंदन जी का निधन १५ मार्च १९७० को हुआ।
राजकिशोर वर्मा जी -
राजेंद्र नगर बिलासपुर निवासी मोतीलाल वर्मा जी के सुपुत्र राजकिशोर जी (वर्ष १९०८ में जन्म) ने बी.ए., एल-एल. बी. तक शिक्षा पाई। आप १९३६ में स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रिय रहे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी के लिए आपको ३ माह का कारावास मिला। कालांतर में आप जिला कॉंग्रेस के मंत्री पद पर भी रहे।
डॉ. रामचरण राय जी -
बिलासपुर के प्रतिष्ठित नागरिक हरिवंश राय जी के कुलदीपक रामचरण जी का जन्म १८९७ में हुआ था। आपने एम्.बी.बी.एस. की उपाधि प्राप्त की थी। चिकित्सक के रूप में उज्जवल भविष्य के बावजूद आप १९३३ से स्वतंत्रता सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाने लगे थे। १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने प्रथम गिरफ्तारी दी। आपको ४ माह का कारावास तथा १०० रु. अर्थदंड प्राप्त हुआ था। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्व करने पर आपको १३ माह का कारावास दिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात् आप बिलासपुर नगर पालिका व जिला काउन्सिल के सदस्य रहे। सागर, नागपुर तथा रायपुर विश्वविद्यालयों में भी आपने सदस्य के रूप में अपनी कार्य कुशलता की छाप छोड़ी। अविभाजित मध्य प्रदेश में आप कैबिनेट मंत्री (स्वास्थ्य विभाग) भी रहे। आपका निवास मसानगंज, सी. एम. डी. कॉलेज चौक के निकट था। आपकी बड़ी पुत्रवधु श्रीमती इंदिरा राय हिंदी की प्रसिद्द कहानीकार-उपन्यासकार रहीं।
डॉ. विष्णुकांत वर्मा जी -
आपका जन्म ११ अक्टूबर १९२२ को जबलपुर में हुआ था। आपके पीर राधिका प्रसाद वर्मा जी तथा माताजी शकुंतला वर्मा जी भी स्वतंत्रता संग्राम व समाज सुधार कार्यों में सक्रिय रहे थे। आपने १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन में जबलपुर में भाग लिया था। इस कारण आपको एक वर्ष के लिए कॉलेज से निष्कासन का दंड मिला था। आपके बाएँ पैर की पिंडली में अंग्रेज पुलिस कर्मी द्वारा चलाई गई एक गोली भी लगी थी। तत्पश्चात आपने एम.एससी। (गणित), एल-एल.बी., पी-एच. डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय) की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वर्ष १९६०-६३ की अवधि में आप फर्ग्युसन कॉलेज पुणे में एप्लाइड गणित के प्राध्यापक रहे। आप शसकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय जबलपुर व बिलासपुर में प्राध्यापक व प्राचार्य रहे। विश्व की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं में आपके अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए। आप कायस्थ मनीषा के श्रेष्ठ प्रतिनिधि थे। सेवा निवृत्ति के पश्चात् आपने बिलासपुर में वैदिक कॉन्वेंट स्कूल की स्थापना की थी। आपके द्वारा लिखित पुस्तक 'वैदिक सृष्टि उत्पत्ति रहस्य' (२ भाग) में वैदिक रसायन शास्त्र, नाभिकीय विज्ञान, महा विस्फोट तथा ग्रहोत्पात्ति की गणिताधारित तर्क सम्मत व्याख्या की गयी है। 'चरम सत्य की खोज' में भारतीय दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों की नवीनतम तात्विक मीमांसा की गई है। 'ऋग्वैदिक आधात्म विद्या (२ भाग) में सादा जीवन उच्च विचार के सूत्र को आपने जीवन में जीकर दिखाया।
श्यामानंद वर्मा जी -
सुभाष नगर बिलासपुर निवासी नारायण प्रसाद वर्मा जी के ज्येष्ठ चिरंजीव श्यामनन्द का जन १९१९ में हुआ था. अपने बी.ए., एल-एल,बी. की शिक्षा प्राप्त कर वकालत की। वर्ष १९३७ से स्वतंत्रता सत्याग्रहों और आंदोलनों में निरंतर सक्रिय रहे। भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में आपने ३ माह का कारावास इलाहाबाद में पाया।
रायगढ़
प्रजा मंडल समाज रायगढ़ की स्थापना के साथ १९३८ में स्वत्नत्रता संघर्ष में सहभागिता का क्रम आरंभ हो गया। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रा के प्रयासों से 'किसान समाज' स्थापित हुआ। जनवरी १९४६ में बंबई जाते नेहरू जी के दर्शन करने कुछ नवयुवक रायगढ़ स्टेशन में उनसे मिले और राजा द्वारा किए जा रहे दमन की जानकारी दी तथा उनसे मिले मार्गदर्शन से उत्साहित होकर 'प्रगतिशील नागरिक संघ' की स्थापना की। नवंबर १९४७ में कांग्रेस सम्मलेन के आयोजन ने जनगण में प्राण फूँक दिए। उड़ीसा की नीलगिरि रियासत में हुए आंदोलन की प्रतिक्रिया में सक्ती तथा रायगढ़ राज्यों द्वारा जनता का दमन किया जाने पर राज्य विलीनीकरण आंदोलन आरंभ हुआ। फलस्वरूप सरदार पटेल के आग्रह पर रायगढ़ के राजा ने विलीनीकरण दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए और रायगढ़ स्टेट भारत गणतंत्र का अभिन्न अंग हो गया।
सरगुजा -
सरगुजा में स्वतंत्रता सत्याग्रहों संबंधी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हुई किंतु कुछ स्वतंत्रता सत्याग्रही बाद में सरगुजा में आकर बस गए।
रमेशचंद्र दत्ता जी
जोगेंद्रचंद्र दत्ता जी के सुपुत्र रमेशचंद्र जी का जन्म १ सितंबर १९२३ को हुआ था। आपने बी.एससी. तक शिक्षा प्राप्त की थी। राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रियता के कारण आपको सेंट्रल जेल अलीपुर कोलकाता में ९ माह १६ दिन कारावास में रहना पड़ा था।
वासुदेव प्रसाद खरे जी -
सगरखारी निवासी दुर्गाप्रसाद खरे जी के आत्मज वासुदेव जी ने चरखारी राज्य विलीनीकरण आंदोलन में भाग लिया भूमिगत रहकर कार्य किया तथा २३ की जेल यातनाएँ सहन कीं।
हेमंत कुमार कर -
रामरतन कर जी के पुत्र जन्म १९१० में हुआ था। आपने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की। राष्ट्रीय आंदोलन १९३० में सक्रियतापूर्वक भाग लेने के लिए आपको केंद्रीय कारगर मिदनापुर में ६ माह का कारागार में रहना पड़ा था।
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लेखक संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com
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