बिना तार का दे सितार हम शारद को, सोच रहे वे अनहद नाद सुनाएँगी।
जान न पाते रख सितार, हथियार थाम, माँ हमको अपना काली रूप दिखाएँगी।।
सम्हलें चेतें विग्रह हों शुद्ध, उपासें तब, अथवा बेहतर है करें शिलाओं का पूजन-
कंकर-कंकर में शंकर उसको पूजें, वन-गिरि-सलिला नाश प्रलय ले आएगी।।
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