दोहा सलिला
सुधियों के संसार में, है शताब्दि क्षण मात्र
श्वास-श्वास हो शोभना, आस सुधीर सुपात्र
*
मृदुला भाषा-काव्य की, धारा, बहे अबाध
'सलिल' साधना कर सतत, हो प्रधान हर साध
*
अनिल अनल भू नभ सलिल, पंचतत्वमय देह
ईश्वर का उपहार है, पूजा करें सनेह
*
हिंदी आटा माढ़िए, उर्दू मोयन डाल
'सलिल'संस्कृत सान दे,पुड़ी बने कमाल
*
जन्म ब्याह राखी तिलक,गृह प्रवेश त्यौहार
हर अवसर पर दे 'सलिल', पुस्तक ही उपहार
*
१३-१०-२०१६
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020
दोहा सलिला
चिप्पियाँ Labels:
दोहा सलिला
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें