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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

विमर्श : पत्र लेखन

 पत्र लेखन : 

पत्र लेखन एक रोचक कला एवं विज्ञान है। वर्तमान अंतर्जालीय - संगणकीय युग में भी पत्र लेखन अभिव्यक्ति के समस्त साधनों में सर्वाधिक प्रमुख, शक्तिशाली, प्रभावपूर्ण और मनोरम स्थान का अधिकारी है।  पत्र अपने लेखम के व्यक्तित्व कस दर्पण होता है। वैयक्तिक पत्र-लेखन में अन्तर्निहित आत्मीयता लेखक तथा पाठक, प्रेषक तथा प्रापक दोनों के संबंध को ताजगी तथा नैकट्य से समृद्ध करती है।औपचारिक पत्र लेखन का कथ्य और भाषा लिखित प्रापक को प्रेषक के व्यक्तित्व तथा प्रयोजन से अवगत कराकर त्वरित  निराकरण में सहायक या बाधक होता है। पत्र लेखन की की कला बुद्धि कौशल  और परिपक्व ज्ञान, व्यापक विचार सामर्थ्य, विषय का ज्ञान, अभिव्यक्ति की सामर्थ्य, शब्द चयन और भाषिक नियंत्रण से संपन्न होती है। पत्र लेखन विज्ञान प्रापक के व्यक्तित्व, प्रेषक के उद्देश्य तथा पत्र से उत्पन्न प्रभाव का पूर्वानुमान कर इच्छित परिणाम  में सहायक होता है।

महत्त्व :

 'पत्र' लिखित रूप में अपने मन के भावों एवं विचारों को प्रकट करने का एक माध्यम है। 'पत्र' का शाब्दिक अर्थ सामान्यत: कागज़ अपवाद स्वरूप पत्तों, वस्त्र, शिला आदि प रलिखित, टंकित, मुद्रित अथवा चित्रित संदेश है प्रेषक द्वारा किसी उद्देश्य के लिए प्रापक को भेजा गया हो। पत्रद्वारा प्रेषक अपनी बातों प्रापक तक लिखकर पहुँचाता हैं। पत्र अभिव्यक्ति का एक सहज सुलभ सशक्त माध्यम है। व्यक्ति जिन बातों को आमने-सामने या सीधे मौखिक रूप से कहने में संकोच करता हैं, हिचकिचाता हैं; उन सभी बातों कोपत्र के माध्यम से लिखित रूप में खुलकर अभिव्यक्त कर सकता हैं। दूरस्थ सबन्धियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए अथवा / तथा अपनी कुशल-क्षेम सूचित करने के लिए पत्र एक साधन है। वैयक्तिक, व्यापारिक, व्यावसायिक अथवा सामाजिक कारणों व कार्यों के लिए भी पत्र लिखे जाते है।

इस समय बातचीत करने के अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध दूरभाष, चलभाष, ई-मेल, फैक्स आदि सुलभ हैं तथापि पत्र लेखन आवश्यक है। अंतर्जालीय पटल पत्र लेखन का आधुनिक माध्यम है, विकल्प नहीं। सम्भाषण अथवा वार्तालाप पात्र लेखन का विकल्प नहीं हो सकता। पत्र लिखना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपितु अत्यंत आवश्यक है। किसी कारण वश अपने कार्य से अनुपस्थित रहने पर सूचित करने तथा अवकाश स्वीकृति कराने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखना होता है। स्वजनों को कुशल समाचार सूचित करने के लिए भी पत्र सहज सुलभ माध्यम है, विशेषकर उन स्थानों और परिस्थितियों में जान अंतर्जालीय सुविधा अनुपलब्ध हो। दूर्भाषिक वार्ता अस्थायी होती है, जिसे अभिलेख की तरह सुरक्षित नहीं रखा जा सकता।

 विशेषता 

१. सरलता : पत्र की भाषा सरल, आसानी से समझ आनेवाली हो। साहित्यिक, प्रशासनिक, व्यावसायिक अथवा वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब प्रापक उसे समझने में समर्थ हो तथा पात्र लेखन उद्देश्य वैसा है। 

२. स्पष्टता : पत्र की भाषा में स्पष्टता होना आवश्यक है। चयनित शब्द, वाक्य रचना तथा विचार ऐसे हों जिससे प्रापक  पत्र भेजने का उद्देश्य सहज ही समझ सके।

३. संक्षिप्तता: पत्र की भाषा में संक्षिप्त, अनावश्यक विस्तार रहित तथा अपने आप में पूर्ण हो। 

४. मौलिकता : पत्र प्रेषक के व्यक्तित्व तथा विचारों का परिचायक होता है। ात:, उसमें व्यक्त विचार तथा शब्द मौलिक हों, किसी अन्य के विचार प्रेषक की असामर्थ्य का संकेत करती है। यथावश्यक उध्दरण, आँकड़े आदि अन्यत्र से साभार संदर्भ सहित लिए जा सकते हैं।

५. सोद्देश्यता : पत्र जिस उद्देश्य से लिखा जा रहा है, उसके अनुरूप, संबोधन, अभिवादन तथा भाषा से युक्त होना चाहिए। 

६. रोचकता : पत्र में वर्णित कथ्य नीरस, उबाऊ, लंबा या जटिल न हो। यथासंभव विचारों को सरल, रोचक और सहज ग्राह्य बनाकर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 

७. शिष्टता : पत्र में प्रयुक्त संबोधन तथा भाषा प्रापक के मान-सम्मान व् रूचि के अनुरूप होना चाहिए। असहमति की अभिव्यक्ति शालीनता तथा सम्मान सहित हो। रुक्ष, अशिष्ट, अश्लील अथवा क्रोधादि पूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

८. लघु वाक्य : पात्र में प्रयुक्त वाक्य यथासंभव छोटे हों। लंबे, संयोजक चिन्हों या क्लिष्ट शब्दों आदि के प्रयोग से पत्र का कथ्य ग्रहण करने में प्रापक को कठिनाई हो सकती है। विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान किया जाना चाहिए।  

९. भाव : पत्र इस तरह लिखें की उसे पढ़कर प्रापक को सुखानुभूति हो। दुखद  देने के पूर्व व् पश्चातसान्त्वनाकारक शब्द / भावों का प्रयोग किया जाना चाहिए। 

प्रकार : 

१. व्यक्तिगत 

२. सार्वजनिक

३. पारिवारिक 

४. साहित्यिक 

५. शासकीय / कार्यालयीन 

६. तकनीकी 

७. औपचारिक 

अंग / तत्व :

१. प्रेषक : नाम, पता, दूरभाष, चलभाष, ईमेल आदि। 

२. दिनांक व स्थान 

३. विषय 

४. संदर्भ 

५. संबोधन 

६. कथ्य या विषय वस्तु 

७. समापन 

८. समापन सूचक शब्द 

९. हस्ताक्षर 

१०. नाम 

११. संलग्नक 

१२. पुनश्च  

१३. प्रापक का पता : नाम, भवन क्रमांक, गली-पथ, मोहल्ला, शहर/कस्बा, जिला, डाकघर का पिनकोड, प्रापक का दूरभाष/चलभाष। 

१४ शुल्क : डाक टिकिट, पंजीयन शुल्क, कूरियर शुल्क आदि  

पत्र लेखन साहित्य :

बापू के पत्र सरदार वल्लभ भाई के नाम 

सरदार की सीख (पत्रों से उद्धरण)

पिता के पत्र पुत्री के नाम - जवाहरलाल नेहरू 

नाती के पत्र  


भाई कुलबीर के नाम भगत सिंह द्वारा लिखा गया अन्तिम पत्र।

सैण्ट्रल जेल,
लाहौर।

दिनांक 3 मार्च, 1931

प्रिय कुलबीर सिंह,
तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। तुमने खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा। मैं कुछ अल्फाज (शब्द) लिख रहा हूँ- मैंने किसी के लिए कुछ नहीं किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं। अब तुम्हें मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूँ। तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा? तुम गुजारा कैसे करोगे? यह सब सोचकर ही काँप जाता हूँ, मगर भाई हौंसला रखना, मुसीबत से कभी मत घबराना। मेहनत से बढ़ते जाना। अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा लेकिन सब कुछ पिताजी की सलाह से ही करना। मेरे अजीज, प्यारे भाई जिन्दगी बहुत कठिन है। सभी लोग बेरहम है। सिर्फ मुहब्बत और हौंसले से ही गुजारा हो सकता है। अच्छा भाई अलविदा.....।

तुम्हारा अग्रज
भगत सिंह

(4) पं. मोतीलाल नेहरू द्वारा अपने पुत्र जवाहरलाल नेहरू को लिखा गया पत्र।

बनारस,
कांग्रेस कैम्प,

दिनांक 28 दिसम्बर, 1905

प्रिय जवाहर,
नमस्कार।

मैं कांग्रेस के कार्यक्रम में भाग ले रहा हूँ, यह उपर्युक्त पते से ही आपको ज्ञात हो गया होगा। मैं यहाँ खासतौर से गोखले जी का भाषण सुनने आया था, जो मैं गत वर्ष नहीं सुन सका। उनका भाषण सुनियोजित तथा प्रशंसनीय था, फिर भी मुझे उसमें कोई असाधारण बात दिखाई नहीं पड़ी। 'इण्डियन पीपुल' की प्रति मैं भेज रहा हूँ, उसमें तुम्हें पूरा भाषण पढ़ने को मिल जाएगा। आज मैंने सुरेन्द्रनाथ जी का भाषण सुना तथा कल मैं इलाहाबाद वापस चला जाऊँगा। अब देखने-सुनने लायक कोई नई बात नहीं रह गई है। मुझे पता चला है कि लगाई गई प्रदर्शनी में कोई खास बात नहीं है। मैंने अभी तक यद्यपि देखी नहीं है, किन्तु यह पत्र लिख चुकने के बाद मैं उसे देखने जाऊँगा।

मैं बड़ी उत्सुकता से यह जानने की प्रतीक्षा में था कि पैर में मोच आ जाने के कारण तुम्हें फुटबॉल नहीं खेलना पड़ेगा। हैरो का डॉक्टर कभी तुम्हें नहीं छोड़ता, यदि चोट मालूम होती। तुम्हारा अगला पत्र मिलने पर पूरी जानकारी प्राप्त कर प्रसन्नता होगी।

इलाहाबाद से यहाँ आते समय तुम्हारी माँ की तबीयत बिलकुल ठीक थी। लखनऊ मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा किया गया। समारोह भव्य था। मुझे वेल्स के राजकुमार तथा राजकुमारी को काफी निकट से देखने का मौका मिला था।

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अदिति सिंह भदौरिया।

पापा,

आज काफी समय बाद खुद के लिए कुछ कहने का मौका मिला, तभी आपकी याद आईं। सोचा जो कह ना सकी वो पत्र में लिखकर आपको कह दूँ।   हर पल आपके प्रेम को समाज के भौतिक पदार्थों में तौलती रही ओर जाने अनजाने आप से नाराज होती रही । 
               आज जब आप नहीं है तो हर भौतिक पदार्थ मुझ पर हस रहे है,  मानो कह रहे हो, आओ ओर हमारे भीतर निश्छल प्यार को ढूँढ सको तो ढूँढ लो ओर मैं अपनी कलसी से बहते को रोकने की नाकाम कोशिश करके आपकी तस्वीर को पोछने लगती हूँ। काश मेरे जैसा हर बच्चा भावनाओं को समझें, तो उसे काश कभी ना कहना पडे।
    
           आज आप होते तो जान पाते कि मैं वो बनने की कोशिश कर रही हूँ जो आप मुझे बनते देखना चाहते थे।
                     पापा हो सके तो अपनी लाडो को माफ कर देना।

आपकी ओर बस आपकी,
अदिति ।
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गीता शुक्ला

प्रिय रूचि,  प्रसन्न रहो l 
समझ नहीं आ रहा कि पत्र कहाँ से आरम्भ करूँ....l एकाएक शब्द मूक हो गए और विश्वास का दायरा सीमित हो गया l फ़ोन पर अम्मा ने जब उस दुर्घटना के बारे में बताया तो एकाएक तो यकीन ही नहीं हुआ l ऐसे में तुम्हारे बारे में सोच कर बहुत उदास हो गई थी मैं l चाहती तो थी कि उड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊँ l किन्तु चाहा हुआ सब हो तो नहीं जाता l स्वयं को बहुत विवश महसूस किया, परन्तु फिर दिल को समझाया कि जो बात अपने वश में न हो उसे इश्वर पर ही छोड़ देना चाहिए क्योंकि हम चाहें या न चाहें हमें उसका फैंसला मानना ही पड़ता है l 
यही बात तुम्हे भी समझाना चाहती हूँ कि तुम लोग उदास मत होना l समय आने पर सब ठीक हो जाएगा l हो सकता है उस शिशु के न आने में ही कोई अच्छाई छिपी हो l ध्यान रखना बहना, यह तुम्हारे जीवन का अंतिम सत्य नहीं है l ईश्वरीय विधान पर विश्वास रखो और आगे कि संभावनाओं कि धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा भी l भावनाओं पर संयम रखना मुश्किल अवश्य होता है किन्तु ऐसा ही करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प फिलहाल है भी तो नहीं l मुझे विशवास दिलाओ कि तुम भी ऐसा ही करोगी l इसके लिए आवश्यक है कि तबीयत ठीक होने पर मुझे फ़ोन करना और पत्र का उत्तर अवश्य देना l यह वर्ष समाप्त होने को है, जाते हुए वर्ष  के साथ वह सब कुछ, जिसका कारण तुम नहीं हो, भूल कर आने वाले वर्ष का स्वागत नए विशवास, आशा और उमंग के साथ करो यही समय की सच्चाई है l 
इधर कुछ दिनों से तुम्हारी बहुत चर्चा हो रही थी l प्रतिदिन तुम्हारे फ़ोन और पत्र की प्रतीक्षा होती थी l बबलू स्कूल जाते हुए अक्सर रो कर जाता था l मासी यहाँ होती तो ऐसा होता, वैसा होता; यही सब कह कर बार-बार पूछता था कि मासी दिल्ली कब आएगी ? अम्मा बार-बार यही कहती थी कि पता नहीं रूचि की तबीयत कैसी है.... सभी का ध्यान तुम्हारी ओर लगा हुआ था l और यकीन मानो इश्वर का ध्यान भी तुम्हारी ओर ही था, इसीलिये तो उन्होंने शायद कुछ अधिक कठिन देखने से बचा लिया तुम्हे l मुझे लगता है जब हम उदास होते हैं तो मन और मस्तिष्क दोनों से ही अपने प्रिय से ज्यादा जुड़ जाते हैं l ठीक ऐसा ही आजकल महसूस हो रहा है l सचमुच तेरी बहुत याद आ रही है.......l 
 छोड़.... कुछ और सुना अन्यथा ये भावनाएँ हमें पागल ही कर देंगी l  
गोपाल के ऑफिस का क्या हाल है ? जब उन्हें ऑफिस के काम से बाहर जाना होता है तो तू समय कैसे बिताती है ? किस तरह की पुस्तकें पढ़ रही है आजकल, बताना l मेरा तो कहीं आना-जाना होता नहीं l 12 दिसम्बर को मीना की शादी थी, बस वहीँ गई थी, वहीँ सब रिश्तेदारों से मिलना हुआ l सब ठीक हैं l 
अच्छा अब मै यह पत्र यहीं समाप्त कर रही हूँ, तुम्हारा पत्र पाने के विशवास पर .... लिखेगी न ... मुस्कुरा कर ...l एक बार पुनः तुम दोनों को बहुत-बहुत प्यार l तुम्हारे जीजाजी कि भावनाएं भी यही हैं किन्तु तू तो जानती ही है पत्र न लिखना उनकी मजबूरी है l हर बार यही कहते है कि मेरी तरफ से भी लिख देना l सचमुच इन ग्यारह वर्षों में मैंने उन्हें कभी किसी को पत्र लिखते नहीं देखा l उनका स्नेह तो सदा तुम दोनों के साथ है ही l तुम्हारे पिछले पत्र में भी अनुरोध था कि जीजाजी भी कभी आशीर्वाद के दो शब्द लिख दें इसीलिये तुम्हे ये सब बता रही हूँ l 
गोपाल से मेरा स्नेह कहना और अपना विशेष ख्याल रखना शारीरिक भी और मानसिक भी l 
शेष फिर... 
तुम्हारी दीदी
गीता
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क्रम संख्या - 3
गीता चौबे 'गूँज'

माँ की पाती बिटिया के नाम...
                                        09/04/2020 
मेरी प्यारी गुड़िया,                    
              सदा सुखी रहो।
मैं यहाँ तुम्हारे पापा के साथ सकुशल हूँ और आशा करती हूँ कि तुम भी अपने ससुराल में अपने नए परिवार के साथ कुशलतापूर्वक जीवन व्यतीत कर रही होगी। अभी पूरे विश्व में उथल-पुथल मची हुई है जिसमें हमारा देश भी शामिल है। पूरे देश में लाॅक डाउन की स्थिति है।
     तुम्हारे पूज्य श्वसुर जी के देहांत की खबर सुनकर मन को बहुत धक्का लगा, परंतु साथ ही यह जानकर खुशी हुई कि तुम उनके अंतिम समय में उनके साथ थी और जिस तरह तुमने पूरे परिवार को सम्भाला वह अत्यंत ही प्रशंसनीय है। मुझे गर्व है कि तुमने अपने दायित्वों का निर्वहन बहुत अच्छी तरह से किया। एक माँ को इससे ज्यादा और क्या चाहिए।
        मैं मानती हूँ कि श्वसुर जी के श्राद्ध कर्म हो जाने के बाद भी लाॅक डाउन के कारण तुम्हें संयुक्त परिवार में रहना पड़ रहा है। इंटेरनेट की अनियमितता के कारण तुम्हारा आनलाइन कारोबार प्रभावित हो रहा है। परंतु गुड़िया, कभी-कभी जब कुछ चीजें हमारे वश में नहीं होती हैं और तब हमें उसे ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।
तुम पहले कभी संयुक्त परिवार में नहीं रही। अतः तुम्हें कुछ कठिनाइयां अवश्य आ रही होंगी, परंतु तुम इस नए परिवेश को देखने और समझने का सुअवसर मानकर चलो तो उत्सुकता के साथ तुम्हारा उत्साह बना रहेगा। वहाँ के बड़े - बुजुर्गों से एक नए प्रदेश की संस्कृति के साथ कुछ नए रस्मों और रिवाजों की भी जानकारी तुम्हें मिलेगी।
मैं जानती हूँ मेरी बच्ची कि जिसने कभी घरेलू काम नहीं किया उसे एक संयुक्त परिवार में पूरा-पूरा दिन रसोई घर में बिताना कितना कठिन हो रहा होगा। परंतु तुम तो शुरू से ही चुनौतियों का सामना डटकर करती आयी हो। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि तुम दृढ़तापूर्वक ही चुनौती को स्वीकार करोगी और पूरी सफलता भी प्राप्त करोगी।
   एक माँ के रूप में मैं हमेशा यही सीख दूँगी कि अपने मन, वचन और कर्म से कभी किसी का दिल न दुखाना। बड़ों को आदर और छोटो को प्यार देना।
                             तुम्हारी माँ 
                            गीता चौबे गूँज 
                           रांची झारखंड 
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क्रम संख्या - 4
रमेश सेठी

पैगाम लिखूं 
या कलाम लिखू
पहला पत्र मैं
तेरे नाम लिखूं    2
अरमान लिखू
या मुस्कान लिखूं 
पहला पत्र मैं 
तेरे नाम लिखूं 2

तेरी चमक लिखूं
या परवाज लिखूं 
तुझे ताज लिखूं 
या मुमताज लिखूं
तेरी हर अदा पे 
मुझे नाज़ लिखूं

पहला पत्र मैं
तेरे नाम लिखूं   2

तुझे शहद लिखूं
या मिठासभरी 
कोहिनूर लिखूं
या स्वर्ग परी
तेरी महिमा का
कैसे गुणगान लिखूं
पहला पत्र मैं 
तेरे नाम लिखूं 2

मोटे नयन लिखूं
मन बैचैन लिखूं
जो मिलो कभी 
तो चैन लिखूं
तेरे भोलेपन पे
कुर्बान लिखूं

पहला पत्र मैं 
तेरे नाम लिखूं 2

तुझे प्रेरणा लिखूं
या प्रेम की मूरत
करुणा से भरी 
या भोली सूरत 
कोई सरगम लिखूं
या साज़ लिखूं 

पहला पत्र मैं
तेरे नाम लिखूं  2

सब्र हो तुम
मैं बेसबरा
रब ने मिलाया
रब की रज़ा 
उसकी रज़ा का
एहतराम लिखूं

पहला पत्र मैं 
तेरे नाम लिखूं  2

गीत    पहला पत्र 
स्वयं रचित
रमेश सेठी 
रोपड़ पंजाब
7009267952
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क्रम संख्या - 5
शाइस्ता खान

मेरे प्यारे बेटे 
हमैशा ख़ुश रहो
आज तुम्हारी सालगिरह है और आज तुम 18 बरस के हो गये एक बारगी तो यक़ीन ही नहीं हो रहा तुम युवावस्था में क़दम रख रहे हो,मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे कल की ही बात हो जब उंगली पकड़ कर तुम ने चलना सीखा. 
तुम्हारे पीछे भाग भाग कर तुम्हे खाना खिलाया तुम्हारे बालों में ढेर ढेर सारा तेल डालकर तुम्हारे गालों को पकड़ कर कंघा किया 
तुम्हे काजल लगाया 
आज तुम मेरे कंधे से भी ऊंचे निकल गये हो आज मैं सोच रही थी तुम्हें क्या गिफ्ट दूं???  शेविंग किट दूं , टी शर्ट दूं , बैग दूं ? मगर नहीं 18 साल के युवा बेटे को तो कुछ स्पेशल गिफ़्ट देनी चाहिए इसलिये मोबाइल  लेपटॉप  इंटरनेट के वक्त में ख़त लिख रहीं हूं इसे तुम डिलीट नहीं कर सकते मेरा यह ख़त तुम हमैशा सम्हाल कर रखोगे. 
           प्यारे बेटे आज में तुम से एक बात कहना चाहती थी उम्र के  जिस मोड़ पर तुम हो वहां से बहुत सी चमकदार राहें नज़र आयेंगी जिन पर चल कर तुम्हें पल भर की खुशियां तो मिल जायेंगी लेकिन ज़िन्दगी की असली खुशियों के दरवाजे़ हमैशा के लिये बंद हो जायेगें तुम भटक सकते हो इसलिये तुम इन राहों पर कभी मत चलना तुम उस राह पर चलना उस मंज़िल को पाना जिस का ख़्वाब मैं ने तुम्हें दिखाया है !
                 तुम्हें याद होगा जब तुम चौथी या पांचवी क्लास में थे एक दिन स्कूल से आकर तुम ने पूछा था अम्मी मैं बड़ा होकर क्या बनूँगा मैं ने कहा अच्छा इंसान  तुमने कहा ठीक है मगर में बनूंगा क्या ? मैंने फिर कहा अच्छा इंसान ! अब तुम्हारे झुंझलाने की बारी थी  तुमने कहा टीचर ने सबसे पूछा है कल मुझे भी बताना है मैं क्या बनूंगा मैं उस वक्त तुम्हारे पास बैठी और तुम्हें प्यार से समझाया :
बेटा आजीविका के लिये कुछ भी बनो डाक्टर, इंजीनियर, वकील, टीचर,बिज़नेस मेन,नेता,अभिनेता लेकिन उससे पहले एक अच्छे इंसान ज़रूर बनो जब तक तुम ईमानदार नहीं होगे ग़रीबों के लिये हमदर्द नहीं होगे देश से प्यार नहीं करोगे औरत की इज़्ज़त नहीं करोगे तुम अपने काम को भी इमानदारी से नहीं कर सकते हम कुछ भी बनें लेकिन पहले एक अच्छा इंसान बनना बेहद ज़रूरी है मुझे बहुत खुशी है बरसों पहले मेरी कही इस बात पर तुम ईमानदारी से चल रहे हो तुमने एक बात ज़रूर सुनी होगी ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा. खु़दा ने हमें खूबसूरत ज़िन्दगी  दी है इसकी क़द्र करो जब तुम अपनी ज़िंदगी से प्यार करोगे तो बुरी आदतें तुम्हारे पास भी नहीं आयेंगी आज के युवा धूम्रपान, गुटका,शराब पीना अपनी शान समझते हैं उन्हें नहीं मालूम वे पल पल क़दम दर क़दम किन परेशानियों को अपने पास बुला रहे हैं तुम्हें यह बात याद होगी मगर आज फिर याद दिला रही हूं एक दिन मैंने तुमसे कहा था जिस दिन तुमने सुपारी का एक दाना भी मुंह मे रख लिया उस दिन से उस मुंह  से मुझे अम्मी मत कहना  यह तुम्हें धमकी नहीं थी यह मेरा प्यार था में चाहती थी तुम्हें कोई चीज नुक़सान न पहुंचाये मुझे खुशी है मेरी यह बात तुम्हारे लिये पत्थर की लकीर हो  गईतुम्हें मालूम है न किसी की सेवा करने से ग़रीब की मदद करने से कितनी खु़शी मिलती है दिल को बड़ा सुकून सा मिलता है समाज सेवा हम जिस तरह से करते है वह भी हमारे प्यार की तरह निराला है शादी पार्टी मे से बचा खाना लाकर ग़रीब बच्चों को खिलाना जब वे बच्चे सुकून और मज़े से खाते हैं तो हमें तुम्हारे बाबा की डांट भी प्यारी लगती है रिश्तेदारो दोस्तो के यहां से खिलौने पुराने कपड़े लाकर ग़रीबों में बांटना हमारा शौक़ बन गया है तम्हें याद है गर्मी के दिनों में सब्ज़ी वाले फ़ेरी वाले को ठंडा पानी पिलाना सर्दी के दिनों में बुज़ुर्गों को अदरक की चाय पिलाना हमें कितना सुकून देता है  राह चलते किसी बुज़ुर्ग की मदद करना, ग़रीब अशिक्षित बच्चों को बोल चाल का तरीक़ा सिखाना, साफ़ सफ़ई से रहना, लड़ाई झगड़ा न करना, शिक्षा पर ज़ोर देना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है , मैं चाहती हुं तुम इन सब बातों को अपनी ज़िन्दगी का स्थायी हिस्सा बना लोअभी तुम्हारी उम्र शादी की तो नहीं है मगर उस सिलसिले में भी तुम से कुछ कहना चाहती हूं, तुम जिस लड़की को भी अपना हम सफ़र बनाओ उसके साथ पूरे ईमानदार रहना,उसकी इज़्ज़त करना,उसके वालदेन की इज़्ज़त भी इसी तरह करना जैसे तुम अपने वालदेन की इज़्ज़त करते हो तुम्हारी बातें,तुम्हारे किसी भी काम से उन्हें दुख न पहुंचे 
ख़त के शुरू मे मैंने लिखा था खुश रहो अब एक बात और कहना चाहती हूं सब को भी ख़ुश रखो, मुझे उम्मीद है तुम्हे मेरा यह तोहफ़ा पसदं आया होगा और तुम इसे हमेशा सम्हाल कर रखोगे 
                            तुम्हारी अम्मी
                      (शाइस्ता ख़ान भोपाल )
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क्रम संख्या - 6
संध्या गोयल 'सुगम्या'

"हस्तलिखित पत्र"

कभी सोचा भी न था कि हस्तलिखित पत्र एक गुज़रे जमाने की चीज़ हो जाएंगे। आज के इस तकनीकी युग में पैदा हुए, पले बढ़े बच्चों के लिये उस युग की कल्पना भी सहज नहीं है, जब अपनी भावनायें दूसरे तक पहुँचाने का, एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने का और एक दूसरे के जीवन में अच्छा- बुरा जो कुछ भी चल रहा है, उसे जानने का एकमात्र जरिया थे ये पत्र। इनके इंतज़ार में जो मज़ा था, और इनको पाने का जो आनन्द था, उसका वर्णन शब्दों में कर पाना लगभग असम्भव ही है।
हमारे पिताजी श्री नन्दगोपाल सिंहल साहित्यिक रुचि वाले एक जागरूक व्यक्ति थे। उन्होंने हम सभी बच्चों में पत्र लेखन की आदत एक पौधे की भाँति रोप दी थी। हमारे खाली समय का एक बड़ा हिस्सा इन पत्रों की भेंट चढ़ता था। इनके माध्यम से हम दूर दराज रहने वाले अपने सभी रिश्तेदारों एवं मित्रों से जुड़े रहते थे। आजकल जिस पोस्टमैन की उपस्थिति को भी सब नज़रअंदाज़ कर देते हैं, उसी पोस्टमैन का इन्तज़ार हम बड़ी बेसब्री से किया करते थे। इसीलिये हम बच्चों ने अपने स्कूली ज्ञान का सदुपयोग करते हुए अपनी पत्र पेटी में एक घण्टी लगा दी थी। जैसे ही उसमें पत्र आते, घण्टी बज उठती और हम बच्चे दौड़ पड़ते पत्र लाने के लिये। जल्दी ही मोहल्ले के शरारती बच्चों को इस घण्टी की खबर लग गई। फिर क्या था, अब तो पत्र पेटी की घण्टी हर समय बजने लगी। बच्चे उसमें कागज डाल देते और घण्टी बजने पर भाग खड़े होते। कहना न होगा कि उनकी शरारतों से तंग आकर वह घण्टी हमें हटानी ही पड़ गई थी। 
आइये, अब आपको लगभग आधी शती पुराना एक संस्मरण सुनाती हूँ, जो पत्र लेखन से ही सम्बन्धित है।

सन उन्नीस सौ पिचहत्तर की बात है। 
देश में आपातकाल लागू किया गया था। सन उन्नीस सौ इकहत्तर में बने एक कानून "मीसा"(maintenance of internal security, आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम) का इन दिनों व्यापक रूप से इस्तेमाल हुआ। देश भर में राजनीतिक विरोधियों की धरपकड़ हुई और रातों-रात इन विरोधियों से जेलें भर दी गईं। इसी तूफान की चपेट में आये शिकोहाबाद (मैनपुरी) निवासी हमारे मामा जी श्री ओंकारनाथ अग्रवाल एवं मौसा जी श्री जयप्रकाश गुप्त। ये वे लोग थे जो चींटियों की लाइन देखकर उन्हें बचाने के लिये अपनी राह बदल देते थे। पर आज इनसे देश की सुरक्षा को खतरा बताया जा रहा था। इस दंश को जिसने झेला है, वही जानता है कि यह सब कितना भयावह था। मीसा बन्दियों से मिलना असम्भव था। उनकी खैरियत पता करने का भी कोई जरिया नहीं था। ऐसे में घरवालों पर क्या बीत रही होगी, आप इसका बस अंदाज़ा ही लगा सकते हैं। काफी समय बीत जाने पर मीसा बन्दियों को एक छोटा सा पेपर और पेन दिया गया। उन्हें सिर्फ एक पत्र लिखने की इजाज़त दी गई थी। हमारे मामा जी ने इस पत्र के लिये हमारे माता पिता को चुना। फलस्वरूप कुछ दिन बाद माँ पिताजी को मामा जी का एक हस्तलिखित पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने अपनी खैरियत लिखी थी और  घर के सब लोगों को याद किया था।  इस पत्र की विशेषता बताई जानी अभी शेष है। इस छोटे से पत्र में बेहद बारीक अक्षरों में सात पैरेग्राफ लिखे गये थे। इसमें केवल पहला पैरेग्राफ हमारे परिवार के लिये था। फिर अगले पाँच पैरे हमारी पाँच मौसियों के परिवार के लिए थे। और सातवाँ पैरा मामा जी के खुद के परिवार यानि नाना जी, नानी जी व मामी जी के लिये था। 
उन दिनों हर हाथ में क्या, हर घर में भी फोन नहीं हुआ करता था। वरना तो पिताजी सभी घरों में फोन करके उनकी खैरियत की सूचना सभी को दे देते। पिताजी मामा जी का इशारा समझ गए थे। उन्होंने इस पत्र की सात कटिंग कीं। अपनी कटिंग अपने पास रखकर शेष छह कटिंग छह लिफाफों में रखीं और सभी के पते लिखकर पोस्ट कर दीं। ये छह पत्र उन छह घरों में कैसे हाथों हाथ लिये गये होंगे और कैसे उन्हें भगवान के प्रसाद की भाँति सिर आँखों से लगाया गया होगा, इसकी बस आज कल्पना ही की जा सकती है।

सन्ध्या गोयल सुगम्या
ग़ाज़ियाबाद
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क्रम संख्या - 7
मनोरमा जैन 'पाखी'
नमन मंच 
आयोजन -#खत उनके नाम 

आज इतने सालों बाद फिर तुम याद आये। और साथ में कितनी यादें भी। आओ न फिर से चलते हैं उन्हीं वादियों में। 

प्रिय ,
कैसे हो?याद करते हो मुझे ?नहीं न!झल्ले हो तुम ।
सुनो ,कुछ याद आ रहा है ।बताती हूँ।उम्र ही क्या थी ,सोलहवाँ ही तो लागा था। कुछ ख्वाब पल रहे थे आंखों में,कुछ ख्वाहिशें कैद हो रही थी पलकों में।लबों पर गीत रुकने लगे थे। कुछ रुहानी सा मौसम ।शब की चांदनी भीगी ,भीगी लगती तो सुबह शबनम में नहाई। सर्द हवायें  तन को छूती थी पर कुछ था जो #मन को छू रहा था। तभी आया वैलेंटाइन डे।सहेली खोज रही थी अपने दोस्त को देने के लिए लव-कार्ड। मैं बस देख रही थी। मन हुआ था कि ले लूँ। पर किसके लिए ?एक कार्ड पसंद करके शॉप से निकल रही थी, अचानक तुम सामने आ गये। सकपका गयी थी । याद है तुमको ? तुमको लगा वो कार्ड मैंने लिया है।क्योंं कि मेरे हाथों में ही था। सहेली के आने से हम लोग चले गये थे। पर तुम्हारी आंखों में उभरे थे सवाल ।
14 फरवरी को रोज की तरह जैसे ही मैं तुम्हारे घर के नीचे से निकली । आँटी ने आवाज लगाई। अक्सर बाजार से कुछ मँगाना होता था तो यूँ ही तो बुला लेती थी वो। मैं घर पहुँची तो उन्होंने सामान की पर्ची थमाते पूछा, कालेज से लौटते ले आएगी न? कोई दिक्कत तो नहीं।
न ,ले आऊँगी। तभी तुमने बोला था।मम्मी इन लड़कियों को तो बहाना है कॉलेज का । असली मकसद तो ...।मुझे चाय दे दो ,देर हो रही कालेज के लिऐ।बात अधूरी छोड़ कर पलट भी दी थी तुमने। मेरा चेहरा लाल हुआ था।खिसिया भी गयी थी। 
आँटी रसोई में गयी और पलक झपकते ही एक छोटा सा खूबसूरत लिफाफा हाथ में पकड़ी बुक्स के अंदर । मैं हकबका गयी। चुप रहना और जबाव का इंतजार करूँगा। एक आँख शरारत से दबाते हुये मुस्कुरा दिये थे तुम।सच ,कितना हिम्मत थी तुमने। तब तक आँटी पैसे और दो चाय भी ले आई थी। मेरी हिम्मत कहाँ थी अब चाय पीने की। पसीने छूट रहे थे। अरे तुझे क्या हुआ ?अभी तो ठीक थी। पसीना आ रहा है। अरे तू काँप भी रही है ,क्या हुआ सडनली। अचानक मेरी हालत देख आँटी चौक गयी थी। 
मम्मी, शायद सर्दी लग रही होगी। चाय पीने से आराम आयेगा।
मेरी आँसू भरी आँखे तुम्हारी ओर उठ गयीं थी। उनमें अपने लिए चिंता देखी थी। चाय पीने का इशारा किया। मेरी नज़र झुक गयी थी। दिल की धड़कनें जैसे कनपटी पर बज रही थीं। चाय के घूंट जैसे तैसे हलक से नीचे उतरे। उतनी देर चिंतित से आप वहीं खड़े रहे थे।
बाद में कहा था तुमने । यार डरा ही दिया था। कितनी पागल हो तुम और सीधी भी। इसी पागलपन से तो प्यार हुआ मुझे। 
याद है, तुमने रिप्लाई  माँगा था। समझ न आया क्या रेप्लाईदूँ। पेंटिंग का शौक था तो हाथ से कुछ पीस बना कर दिए थे।जिनको एक दूसरे से जोड़ कर सुंदर सी पेंटिग बनती थी।और वो लिखा था तुम्हारा नाम।
तुमने उसे अपनी स्टडी टेबल पर सामने ही लगा लिया था। यह कह कर कि  कालेज के दोस्त ने दिया।
सच में नील , कितने प्यारे ,इनोसेंट से थे वो दिन । आज भी हैं तुम्हारी यादें मेरे पास ,जेहन में भी और मेरे कलेक्शन में भी। सबसे खूबसूरत याद तो वो पेन है ग्रीन कलर का । जो तुम्हें बहुत पसंद था। किसी को न देते थे। हर एग्जाम में वो तुम्हारा लकी चार्म था। मेरे पेपर के पहले दिन गिफ्ट दिया था वह। जानती हूँ जब इस पल मैं तुमको काव्यांचल के कारण याद कर रही हूँ ।तो लग रहा है ये दिन तुमको भी याद आ रहे होंगे। यही तो दिन थे जब सोलहवें साल में तुम करीब आये थे। आलवेज लव यू। ये खत तुमको न दूँगी।
                                                                                                                            तुम्हारी
                                                                                                                              Xyz

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क्रम संख्या - 8
डॉ. निरुपमा वर्मा 
एटा, उत्तर प्रदेश

देवी लक्ष्मी को पत्र 

हे! विष्णु की महान भार्या ,आप की माया अपरंपार है आपकी कृपा दृष्टि से से हम सभी भारतीय राजनीतिज्ञगण की अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं । आपकी दया दृष्टि की सदैव हम कामना करते हैं । स्वर्ण चिड़िया का यह देश मुगलों और फिर अंग्रेजों के बाद हम भारतीय राजनीतिज्ञ गणों को प्राप्त हुआ । आपके लिए हमने काली, नीली ,पीली ,लाल ,सफेद विभिन्न टोपियां धारण की, लठ चलाए गोलियां चलवाई । तब इस सोने की चिड़िया को प्राप्त किया आप तो जानती हैं हम नेता बनने से पूर्व कितनी दयनीय अवस्था में जी रहे थे। अब लाखों करोड़ों को संभालने के लिए हमें मंदिर मंदिर जाना होता है, स्विस बैंक की शरण लेनी पड़ती है। हे महालक्ष्मी !! आपकी कृपा से पिछड़ा वर्ग, दलित वर्ग, आदिवासी वर्ग, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक ग्रामीण, विधवा पेंशन जैसे विभिन्न मद आबंटन बनाकर उसमें से अपना हिस्सा प्राप्त करके समाजवादी समानता संवैधानिक वायदे पूरा करते हैं। हमने आपकी ही झलक दिखा कर बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान करते हुए उन्हें हथियार , पार्टी के झंडे की सुरक्षा प्रदान की । और उन्हें धर्म और जाति के नाम पर भीड़ में शामिल किया । 
इस तरह लोकतंत्र में हमने तुम्हारी मदद से लोक को गोली मार दी और तंत्र पर काबिज हो गए । 
अब तो मुख्य न्यायाधीश , चुनाव आयुक्त , सीबीआई , भीआपकी कृपा से हमारे दबाव में है। यह आपका ही प्रताप है कि कई तथाकथित बाबा , गुरु और तांत्रिक और ज्योतिषी को हमने अपने दल में बैकडोर से अपने दल में शामिल कर रखा है ।
अतः हे!! कृपा निधान लक्ष्मी जी !! आपकी इन महती सब कृपा को मद्देनजर रखते हुए हम भारतीय नेता दीपावली पर विनम्र भाव से एक सम्मान पत्र सादर समर्पित करने वाले हैं। 
-----आप की कृपा दृष्टि के सदैव याचक 
हम है ---
भवदीय 
स्वतंत्र भारत देश के राजनीतिक नेता
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क्रम संख्या - 10
बबिता भाटिया 
दिल्ली 
जन्मदिन के अवसर पर पिता का पत्र  ~
बिटिया के नाम  

मेरी प्यारी बेटी  श्रुति! 
२८ अक्टूबर अब तक का वह खूबसूरत  दिन है, इस दिन मुझे स्वर्ग से सर्वश्रेष्ठ उपहार मिला था तुम्हारे रूप में ... आज के दिन मुझे पिता बनने की अनुभूति  हुई थी । तुम्हारी मधुर मुस्कान ने मेरा मन मोह लिया । जब तुम लाड से मुझे गलबहियाँ डालती हो तो मेरी सारी थकान दूर हो जाती है। ...

समय पंख लगा कर उङ गया ...  और तुम कब न जाने छोटी से बड़ी हो गयी,,  अपनी समझ से खुद ही अपनी राह तय करती रही।  हमारे परिवार की मीठी सी खुश्बू हो तुम,  सबको बांधे रखने का हुनर है तुम में ,,  कुनबे से हर शख्स का  एक  एक गुण समेटे पापा की लाडो अब श्रुति से मिस श्रुति भाटिया हो गयी ,, 
  
सब पर एक सा भाव ,  तर्क अधिकार में , और भाव से , रिश्तों में धागा सी हो तुम  ,   ऐसे थोड़ी श्रुति दी को श्रेष्ठ भाई  सुप्रीम कोर्ट कहता है ,   ढेर सी दुआएं है तेरे साथ ,  सदैव खुश रहोगी तुम ...  क्योंकि तुझमे कला है खुशियाँ बाँटने की ,  फितरत में है तेरी ,, सबको अपना बनाकर रखना,  बनी रहे भाईयों की लाडली , ऐसे थोड़ी कहते है वो ,  श्रुति जैसा कोई नही ,,   
सबकी तरफ से जन्मदिन पर ढेर  सारी शुभकामनायें ,, अनंत ,, ....बस समेटती रहो ,, गठरी भरी रहे।
 इन शुभ कामनाओं के साथ...

तुम्हारे पापा   
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 निर्भया के नाम एक काल्पनिक पत्र
सदानंद कवीश्वर
प्रिय बेटी, निर्भया.....
समझ नहीं पा रहा हूँ कि आगे क्या लिखूँ ? साधारणतया किसी भी पत्र में नाम लिखने के बाद शुभाशीष, खुश रहो, सुखी रहो ... या ऐसा ही कुछ लिखने की प्रथा है... और हाँ, मैं भी जब कोई पत्र लिखता हूँ तो यही सब लिखता हूँ किन्तु आज तुम्हे पत्र लिखते हुए न जाने क्यों समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि तुम्हारे नाम के बाद क्या लिखूँ ? 
यदि शुभाशीष लिखता हूँ तो लगता है किस मुँह से लिखूँ, क्या आशीष दूँ तुम्हे ? तुम्हारा वह दर्द भरा चेहरा आ जाता है आँखों के सामने l क्या कर पाए हम तुम्हे बचाने के लिए... अरे बचाना तो छोडो हम तो घटना घटने से पहले तुम्हे सुरक्षित भी नहीं रख पाए l अब आशीष दें या न दें क्या फर्क पड़ता है ? कभी कभी लगता है हम इतने विवश क्यों हैं ? क्यों नहीं हम संस्कार दे पाए अपने बच्चों को ? क्या एक अकेली लड़की के साथ यह सब होना ही उसकी किस्मत में लिखा है ? प्रश्न तो बहुत हैं पर उत्तर कहाँ है ? जब तुम इस दुनिया में थीं तब तुम्हे भी तो आशीष मिले ही होंगे पर बेटा, जितने तुम्हे आशीष मिले उससे कहीं ज्यादा शैतान पैदा हो गए इस दुनिया में l अक्सर सुनने में आता है कि किसी की जेब कट गई, कहीं चोरी हो गई, कोई पर्स ले कर भाग गया...... पर बेटा जैसा तुम्हारे साथ हुआ वह तो न किसी ने सुना न देखा l जिंदा होते हुए मिले आशीष ही जब तुम्हारे काम न आए तो अब क्या आशीष दूँ तुम्हे ?
तो क्या ‘खुश रहो’ कहूँ...? कैसे खुश रह पाओगी बिटिया तुम ? जिस बेदर्दी से तुम्हे चोट पहुँचाई गई उसके बाद कोई कैसे खुश रह सकता है ? मैं आजतक यह नहीं समझ पाया कि आखिर गलती क्या थी तुम्हारी ? क्या लड़की होना ही तुम्हारी एकमात्र गल्ती थी ? और कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है ? मानसिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति भी ऐसी हरकत नहीं कर सकता l शारीरिक और मानसिक कष्ट अपने होंठ दबा कर सहन करती हुईं तुम लाचार हो कर चलीं गईं, अब कैसे कहूँ कि “खुश रहो l”
‘सुखी रहो’ कहना भी बेमानी ही लग रहा है l जब जीते जी ही हम तुम्हे सुख न दे सके तो अब क्या दे पाएंगे ? कभी कभी लगता है कि इस क्रूर और निर्मम दुनिया से, जहाँ इंसान की शक्ल में शैतान रहते हैं, तुम नाता तोड़ कर चली गईं यह ठीक ही हुआ क्योंकि इस सीमा तक दुःख, कष्ट और अपमान सहने के बाद यदि तुम बच जातीं तो क्या सुखी रह पातीं ? पर जो बात सबसे अधिक कष्ट देती है वह यह कि आखिर तुम्हे इस समाज ने इस स्थिति तक पहुँचने के लिए मजबूर किया ही क्यों ? इतना सब होने के बाद कैसे कहूँ बिटिया कि... ‘सुखी रहो’
मेरी वेदना यहीं समाप्त नहीं हो जाती बेटा... कष्ट तो इस बात का भी बहुत है कि उस घटना के कुछ समय बाद सारे अपराधी पकड़ भी लिए गए थे किन्तु हमारे देश की न्याय पद्धति ने उन्हें सजा दिलवाने के लिए सात साल का समय लिया l इस बात से तुम्हारी आत्मा को कितना कष्ट हुआ होगा इस बात का अंदाजा भी संभवतः नहीं लगा पाएंगे हम कभी l 

इन सबसे भी ज्यादा तकलीफ इस बात की है कि उस जानलेवा घटना के बाद नारे लगे, जुलूस निकले, कसमें खाईं गईं, पोस्टर लगे, मोमबत्तियां जलीं, क़ानून बने पर वैसी घिनौनी घटनाएँ तो अब भी हो ही रहीं हैं l कुछ भी नहीं बदला बिटिया... तुम्हारे जैसी मासूम कलियाँ आज भी मसल दी जातीं हैं, उन्हें भी उसी तरह बेदर्दी, बेरहमी से मार दिया जाता है l  शैतान आज भी जिंदा हैं बेटा... अगर कोई मरा है तो वह है, इंसानियत, अगर कोई मरा है तो वह है इस देश का कानून, हमारा ज़मीर मर गया बेटा, हमारी आँखों की शर्म मर गई l 
हम तुमसे, तुम्हारी याद से, तुम्हारी आँखों के उन प्रश्नों से आँख मिलाने लायक नहीं हैं बेटा... तुम एक बार मर कर मुक्त हो गईं... हम रोज़ मर रहे हैं, अपनी नज़रों में गिर रहे हैं... फिर भी जिंदा हैं l
हमें माफ़ कर दो बेटा.... माफ़ कर दो.... माफ़ कर दो....l 

तुम्हारा शुभचिंतक (जो तुम्हारे लिए कुछ भी शुभ न कर सका) 
-सदानंद कवीश्वर
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डॉ आलोक रंजन कुमार 
मिलन की प्रेम-पाती 
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कहाँ  खो  गई  वो  बहारें ,
कहाँ  सो  गई  वो  नज़ारें।
ढूंढा  था  बड़ी  मेहनत  से,
कहां  खो  गई  वो  सितारें।

नदी  का  किनारा  था और    
चमन  में  थे  फूल  खिले ।
मकर  संक्रांति  के  मेले  में,
सनम ! हम दोनों  थे  मिले।

तन्हाई में जीने नआता मुझे,
तन्हा  जियूं कैसे  तेरे  बिना।
यादें ही अब शेष रह गई  हैं ,
विरह में जियूं कैसे तेरे बिना।
 
मैं तो दिल लगाए बैठा हूं औ'
तुझपर मां का सख्त पहरा है।
वो क्या जानें,ऐ मेरे हमसफर!
दर्द का रिश्ता बहुत ही गहरा है।

तेरे हर एक लफ्ज़ से देखा है,
पैग़ामे-मोहब्बत निकलते हुए।
हर एक  नज़रों  में  देखा  है ,
तेरे  दिल  को  पिघलते  हुए।

ये जो मुझ में लौ जल रही है ,
वो यादें मुझे अब खल रही हैं।
तेरे प्रेम-दीप की रोशनी से ही,
ये ज़िंदगी अबतक पल रही है।

जब तलक दीपक में तेल है,
तभी तक इस लौ का मेल है।
जहां  खत्म हुआ  तेल सनम,
तो ज़िंदगी का खत्म खेल है।

तुझ से गुज़ारिश है ऐ प्रेम-परी,
मेरी नज़रों में छाई रहो हर घड़ी।
पर तुम बेवफा मत बन जाना,
वरना आ जाएगी अंतिम घड़ी।

बड़े फ़क्र से लिखा है प्रेम-पाती,
जिसका  कोई  हिसाब  नहीं ।
तेरा सिर्फ यूं ही मुस्कुरा देना ,
मेरे प्रेम-पत्र का जवाब नहीं ।

निराश न करना ऐ मेरी प्रेम पाती,
ज़रा उनको प्रेम-संदेश सुनाना।
मेरे हमसफ़र रश्मि प्रकाश के,
उर में सुर बनकर समा जाना।

मिलन की प्रेम पाती के ज़रिए,
संदेश भेजा है आलोक रंजन।
ठुकरा ना देना इस पाती को ,
करना इसका हार्दिक-अभिनंदन!

हार्दिक नमन ! 
श्री गणेशाय नमः
                 जपला,पलामू।
             दिनांक:२३-१०-२०

आदरणीय भ्राताश्री !
सादर नमस्कार ! 🙏

  कुशलांतरे कुशलाभिलाषी !
बड़े अरमान से पाती प्रेषित किया है। विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी ! आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मुझे भी आपका आशीर्वाद प्राप्त होगा।
      पुनः हार्दिक नमन के साथ -
      आपका ही अनुज -
      आलोक रंजन ।
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प्रिय नदी

छुट्टियों में घूमने का कार्यक्रम बन रहा है । कहाँ जाया जाए,,,, कभी नैनीताल, कभी शिमला, कभी मनाली । अल्मोड़ा का नाम आते ही मैनें झट हाँ कर दी क्योंकि बचपन से इच्छा थी वहाँ जाने की । सुमित्रानंदन पंत जैसे महान व्यक्तित्व जहाँ से निकले वह जगह कितनी महान होगी । पर चर्चा चलते चलते मन्सूरी पर आकर अटक गई ।अल्मोडा अगले साल चल पड़ेंगे कहकर सबने मुझे हरिद्वार मन्सूरी ट्रिप पर चलने के लिए तैयार कर लिया। 

सच में गंगा स्नान का आनन्द हमेशा अविस्मरणीय रहता है । वहाँ की कचौडी और हलवे का स्वाद तो जैसे सभी भी जीभ पर ही है । शाम को वहाँ से मसूरी के लिए चल दिये, दो दिन रुके । खूब घूमे । मौसम बहुत सुहावना था तो घूमने का आनन्द दुगुना हो गया । 

वापिसी पर आते हुए वाया देहरादून आये । वहाँ रास्ते में जब हमारी कार छोटे से पुल से गुजर रही थी तो बाहर की ओर देखा । पुल नदी पर बना हुआ था पर नदी.... बिन पानी की नदी । जी धक्क से रह गया । उचक कर दूर तक देखने की कोशिश की पर वही नजारा! आँखे बरबस भर आई । हम रुडकी रोड पर थे सड़क पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था और साथ ही साथ चल रही थी सूखी उदास बेबस नदी! 

सभी सभ्यताओं का विकास नदी किनारे से ही शुरु हुआ और आज नदियों की क्या दशा कर दी हमने ! अपने विनाश के लिए खुद ही गडडा खोद रहे हैं हम । क्या फायदा इस पढ़ाई लिखाई का कि प्रकृति से ही खिलवाड़ करने लगे हम!

नदियाँ तो जीवनदायिनी होती हैं और यहाँ तो नदी खुद जीवन दान के लिए बिलख रही है । सौ सौ सवाल पूछे खुद से! पर निरुत्तर ! 

हे नदी ! हाथ जोड़ आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ अपने इन्सान होने पर, अपने जाहिल पर । शर्मिंदा हूँ अपने कृत्यों पर कि आज आप को इस हाल पर ला खड़ा कर दिया ।

क्षमाप्रार्थी
अंजू खरबंदा 
दिल्ली
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