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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

भाषा सेतु

भाषा सेतु 
एक सुंदर बांग्ला गीत: सावन गगने घोर घनघटा
बाङ्ला-हिंदी-गुजराती-छत्तीसगढ़ी  
गर्मी से हाल बेहाल है। इंतजार है कब बादल आएं और बरसे जिससे तन - मन को शीतलता मिले। कुदरत के खेल कुदरत जाने, जब इन्द्र देव की मर्जी होगी तभी बरसेंगे। गर्मी से परेशान तन को शीतलता तब ही मिल पाएगी लेकिन मन की शीतलता का इलाज है हमारे पास। सरस गीत सुनकर भी मन को शीतलता दी जा सकती है ना तो आईये आज एक ऐसा ही सुन्दर गीत सुनकर आनन्द लीजिए।

यह सुन्दर बांग्ला गीत लिखा है भानु सिंह ने.. गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगौर अपनी प्रेम कवितायेँ भानुसिंह के छद्‍म नाम से लिखते थे। यह 'भानु सिंहेर पदावली' का हिस्सा है। इसे स्वर दिया है कालजयी कोकिलकंठी गायिका लता जी ने, हिंदी काव्यानुवाद किया है आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने.
बांगला गीत
सावन गगने घोर घन घटा निशीथ यामिनी रे
कुञ्ज पथे सखि कैसे जावब अबला कामिनी रे।
उन्मद पवने जमुना तर्जित घन घन गर्जित मेह
दमकत बिद्युत पथ तरु लुंठित थरहर कम्पित देह
घन-घन रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम बरखत नीरद पुंज
शाल-पियाले ताल-तमाले निविड़ तिमिरमय कुञ्‍ज।
कह रे सजनी, ये दुर्योगे कुंजी निर्दय कान्ह
दारुण बाँसी काहे बजावत सकरुण राधा नाम
मोती महारे वेश बना दे टीप लगा दे भाले
उरहि बिलुंठित लोल चिकुर मम बाँध ह चम्पकमाले।
गहन रैन में न जाओ, बाला, नवल किशोर क पास
गरजे घन-घन बहु डरपावब कहे भानु तव दास।
हिंदी काव्यानुवाद
श्रावण नभ में बदरा छाये आधी रतिया रे
बाग़ डगर किस विधि जाएगी निर्बल गुइयाँ रे
मस्त हवा यमुना फुँफकारे गरज बरसते मेघ
दीप्त अशनि मग-वृक्ष लोटते थरथर कँपे शरीर
घन-घन रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम बरसे जलद समूह
शाल-चिरौजी ताड़-तेजतरु घोर अंध-तरु व्यूह
सखी बोल रे!, यह अति दुष्कर कितना निष्ठुर कृष्ण
तीव्र वेणु क्यों बजा नाम ले 'राधा' कातर तृष्ण
मुक्ता मणि सम रूप सजा दे लगा डिठौना माथ
हृदय क्षुब्ध है, गूँथ चपल लट चंपा बाँध सुहाथ
रात घनेरी जाना मत तज कान्ह मिलन की आस
रव करते 'सलिलज' भय भारी, 'भानु' तिहारा दास
***

भावार्थ
सावन की घनी अँधेरी रात है, गगन घटाओं से भरा है और राधा ने ठान लिया है कि कुंजवन में कान्हा से मिलने जाएगी। सखी समझा रही है, मार्ग की सारी कठिनाइयाँ गिना रही है - देख कैसी उन्मत्त पवन चल रही है, राह में कितने पेड़ टूटे पड़े हैं, देह थर-थर काँप रही है। राधा कहती हैं - हाँ, मानती हूँ कि बड़ा कठिन समय है लेकिन उस निर्दय कान्हा का क्या करूँ जो ऐसी दारुण बांसुरी बजाकर मेरा ही नाम पुकार रहा है। जल्दी से मुझे सजा दे। कवि भानु प्रार्थना करते हैं ऐसी गहन रैन में नवलकिशोर के पास मत जाओ, बाला।
*
गुजराती में रूपान्तरण -
द्वारा कल्पना भट्ट, भोपाल

શ્રાવણ નભ ની આ અંધારી રાત રે
કેમે પહુંચે બાગ માં કોમળ નાર રે
મસ્ત હવા ફૂંકારે યમુના તીર રે
ગરજે વાદળ ,વરસે મેઘ અહીં રે
દામિની દમકે તરૂ તન કમ્પૅ થર થર રે
ઘન ઘન રીમઝીમ રીમઝીમ રીમઝીમ વરસે વાદળ સમૂહ રે
છે અંધારું ઘોર , તૂટી પડયા છે ઝાડ રે
જાણું છું આ બધું પણ જો ને aa નિષ્ઠુર કાન્હ ને
રાધા નામની મધુર તાણ વગાડતો આ છલિયો રે
સજાઓ મુને મુક્ત મણિ થી
લગાડો માથે એક કાળો દીઠડો રે
ક્ષુબ્ધ હૃદય છે ,લટ બાંધો ,ચંપો બાંધો સુહાથ રે
અરજ કરતો હૂં 'સલિલ' ભાવ ભારી રે
હૂં 'ભાનુ' છું પ્રભુ તમારો દાસ રે .

***
श्रावण नभ् नी आ अंधारी रात रे
केमे पहुंचे बाग़ मां कोमल नार रे
मस्त हवा फुंकारे यमुना तीर रे
गरजे वादळ, वरसे मेघ अहीं रे
दामिनी दमके तरु तन कम्पे थर थर रे
घन घन रिमझिम रिमझिम रिमझिम वरसे वादळ समूह रे
छे अंधारु घोर, टूटी पड्या छे झाड़ रे
जाणु छुं आ बधुं पण जो ने आ निष्ठुर कान्ह ने
राधा नाम नी मधुर तान वगाळतो आ छलियो रे
सजाओ मुने मुक्त मणि थी
लगाड़ो माथे एक काडो डिठडो रे
क्षुब्ध ह्रदय छे ,लट बांधो चम्पो बाँधो सुहाथ रे
अरज करतो हूँ 'सलिल' भाव भारी रे
हूँ ' भानु' छु प्रभु तमारो दास रे
***

छत्तीसगढ़ी रूपांतरण द्वारा ज्योति मिश्र, बिलासपुर
***
सावन आकास मां बादर छागे आधी रात ऱे।
बाड़ी रद्दा कोन जतन जाबे, तैं दूबर मितान रे।
बइहा हवा हे ,जमुना फुंकारे गरजत-बरसत हे मेघ।
चमकत हे बिजरी, रद्दा- पेड़ लोटत झुर-झुर कपथे सरीर।
घन-घन, झिमिर ,झिमिर, झिमिर बरसे बादर के झुण्ड।
साल अउ चार, ताड़-तेज बिरिख अब्बड़ अंधियारे हे बारी।
कइसे मितानिन ! अत्त मचात हे, काबर ये कन्हई।
बंसी बजाथे,"राधा" के नांव ले अब्बड़ दुखिया कन्हई।
मोती, जेवर जाथा पहिरा दे, काला चीन्हा लगा दे माथ।
मन ह ब्याकुल हे, गूंद चोटी पिरो,खोंच चंपा सुहात।
अंधियार रात, झन जाबे छोड़ कन्हाई मिले के आस।
गरजत हे बादर, भय भारी, सुरुज तोरे हे दास।
या
गरजत हे बादर, भय भारी, "भानु" तोरे हे दास।
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