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रविवार, 19 जुलाई 2020

माहेश्वर सूत्र, पाणिनि और अष्टाध्यायी

संस्कृत व्याकरण तो संस्कृत भाषा के उद्भव के समय से ही है। उसे लिपिबद्ध कर पुस्तक के रूप में लाने का श्रेय “पाणिनी” को है और उनकी पुस्तक का नाम है - अष्टाध्यायी।
यानि 8 अध्याय और 4 हज़ार सूत्र।
अष्टाध्यायी का मूल आधार 14 माहेश्वर सूत्र हैं , जिन्हें मान्यता अनुसार भगवान शिव ने स्वयं 14 बार अलग अलग तरह से डमरू बजाकर बताया था। असल में ये माहेश्वर सूत्र - एक तरह का शॉर्टहैंड है।
जैसे अच् = समस्त स्वर
हल् = समस्त व्यंजन जिनमें हलन्त हो ।
ल् , च् , क् - के नीचे चिन्ह को हलन्त इसी कारण कहते हैं।
अष्टाध्यायी - लौकिक संस्कृत का व्याकरण है । वैदिक संस्कृत कुछ मामलों में अलग है खासकर - धातुरूप या लकार में।
पाणिनि का जन्म - गांधार में पेशावर के पास चौथी या पांचवी ईसा पूर्व शताब्दी में हुआ था।
पाणिनि के बारे में कुछ और जानकारी
पाणिनि के जीवनकाल को मापने के लिए यवनानी शब्द के उद्धरण का सहारा लिया जाता है । इसका अर्थ यूनान की स्त्री या यूनान की लिपि से लगाया जाता है । गांधार में यवनो (Greeks) के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी सिकंदर के आक्रमण के पहले नहीं थी । सिकंदर भारत में ईसा पूर्व 330 के आसपास आया था । पर ऐसा हो सकता है कि पाणिनि को फारसी यौन के जरिये यवनों की जानकारी होगी और पाणिनि दारा प्रथम (शासनकाल – 421 – 485 ईसा पूर्व) के काल में भी हो सकते हैं । प्लूटार्क के अनुसार सिकंदर जब भारत आया था तो यहां पहले से कुछ यूनानी बस्तियां थीं ।
इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के करीब है। जहाँ काबुल नदी सिंधु में मिली है उस संगम से कुछ मील दूर यह गाँव था। उसे अब लहर कहते हैं। अपने जन्मस्थान के अनुसार पाणिनि शालातुरीय भी कहे गए हैं। और अष्टाध्यायी में स्वयं उन्होंने इस नाम का उल्लेख किया है। चीनी यात्री युवान्च्वाङ् (Xuanxang), (7वीं शती) उत्तर-पश्चिम से आते समय शालातुर गाँव में गए थे, जहाँ पर उन्होने पाणिनि की मूर्ति स्थापित देखी| पंचतंत्र की एक कथा के अनुसार, एक शेर इनकी मृत्यु का कारण बना|
पाणिनि का समय वैदिक काल के अन्त मे था, ऐसा उनके द्वारा दिये गये व्याकरण को देख कर कहा जा सकता है| वैदिक ग्रन्थो मे छन्दो के रूप के लिये उन्होने कुछ विशेष नियम दिये थे, जो कि उस समय के सामान्य बोलचाल के भाषा मे प्रयुक्त नही होते थे| इस प्रकार हम कह सकते है कि वैदिक संस्कृत पहले से ही विद्यमान थी, परन्तु वह लोक भाषा नही थी| [1]
14 माहेश्वर सूत्र में और जानने हेतु यहाँ देखें

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