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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

बेटी पचीसा

बेटी पचीसा
(बेटी पर २५ दोहे)
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सपना है; अरमान है, बेटी घर का गर्व।
बिखरा निर्झर सी हँसी, दुख हर लेती सर्व।।
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बेटी है प्रभु की कृपा, प्रकृति का उपहार।
दिल की धड़कन सरीखी, करे वंश-उद्धार।।
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लिए रुदन में छंद वह, मधुर हँसी में गीत।
मृदुल-मृदुल मुस्कान में, लुटा रही संगीत।।
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नन्हें कर-पग हिलाकर, मुट्ठी रखती बंद।
टुकुर-टुकुर जग देखती, दे स्वर्गिक आनंद।।
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छुई-मुई चंपा-कली, निर्मल श्वेत कपास।
हर उपमा फीकी पड़े, दे न सके आभास।।
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पूजा की घंटी-ध्वनि, जैसे पहले बोल।
छेड़े तार सितार के, कानों में रस घोल।।
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बैठ पिता के काँध पर, ताक रही आकाश।
ऐंठ न; बाँधूगी तुझे, निज बाँहों के पाश।।
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अँगुली थामी चल पड़ी, बेटी ले विश्वास।
गिर-उठ फिर-फिर पग धरे, होगा सफल प्रयास।।
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बेटी-बेटा से बढ़े, जनक-जननि का वंश।
एक वृक्ष के दो कुसुम, दोनों में तरु-अंश।।
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बेटा-बेटी दो नयन, दोनों कर; दो पैर।
माना नहीं समान तो, रहे न जग की खैर।।
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गाइड हो-कर हो सके, बेटी सबसे श्रेष्ठ।
कैडेट हो या कमांडर, करें प्रशंसा ज्येष्ठ।।
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छुम-छुम-छन पायल बजी, स्वेद-बिंदु से सींच।
बेटी कत्थक कर हँसी, भरतनाट्यम् भींच।।
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बेटी मुख-पोथी पढ़े, बिना कहे ले जान।
दादी-बब्बा असीसें, 'है सद्गुण की खान'।।
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दादी नानी माँ बुआ, मौसी चाची सँग।
मामी दीदी सखी हैं, बिटिया के ही रंग।।
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बेटी से घर; घर बने, बेटी बिना मकान।
बेटी बिन बेजान घर, बेटी घर की जान।।
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बेटी से किस्मत खुले, खुल जाती तकदीर।
बेटी पाने के लिए, बनते सभी फकीर।।
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बेटी-बेटे में 'सलिल', कभी न करिए फर्क।
ऊँच-नीच जो कर रहे, वे जाएँगे नर्क।।
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बेटी बिन निर्जीव जग, बेटी पा संजीव।
नेह-नर्मदा में खिले, बेटी बन राजीव।।
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सुषमा; आशा-किरण है, बेटी पुष्पा बाग़।
शांति; कांति है; क्रांति भी, बेटी सर की पाग।।
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ऊषा संध्या निशा ऋतु, धरती दिशा सुगंध।
बेटी पूनम चाँदनी, श्वास-आस संबंध।।
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श्रृद्धा निष्ठा अपेक्षा, कृपा दया की नीति।
परंपरा उन्नति प्रगति, बेटी जीवन-रीति।।
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ईश अर्चना वंदना, भजन प्रार्थना प्रीति।
शक्ति-भक्ति अनुरक्ति है, बेटी अभय अभीति।।
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धरती पर पग जमाकर, छूती है आकाश।
शारद रमा उमा यही, करे अनय का नाश।।
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दीपक बाती स्नेह यह, ज्योति उजास अनंत।
बेटी-बेटा संग मिल, जीतें दिशा-दिगंत।।
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१०.७.२०१८, ७९९९५५९६१८

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