कुल पेज दृश्य

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

navgeet

नवगीत: 
संजीव

सांस जब 
अविराम चलती जा रही हो 
तब कलम 
किस तरह 
चुप विश्राम कर ले?
.
शब्द-पायल की
सुनी झंकार जब-जब
अर्थ-धनु ने
की तभी टंकार तब-तब
मन गगन में 

विचारों का हंस कहिए
सो रहे किस तरह
सुबह-शाम कर ले?
.
घड़ी का क्या है
टँगी थिर, 

मगर चलती
नश्वरी दुनिया
सनातन लगे, छलती
तन सुमन में 

आत्मा की गंध कहिए
खो रहे किस तरह
नाम अनाम कर ले?
.

कोई टिप्पणी नहीं: