नवगीत:
संजीव
.
सांस जब
अविराम चलती जा रही हो
तब कलम
किस तरह
चुप विश्राम कर ले?
.
शब्द-पायल की
सुनी झंकार जब-जब
अर्थ-धनु ने
की तभी टंकार तब-तब
मन गगन में
विचारों का हंस कहिए
सो रहे किस तरह
सुबह-शाम कर ले?
.
घड़ी का क्या है
टँगी थिर,
मगर चलती
नश्वरी दुनिया
सनातन लगे, छलती
तन सुमन में
आत्मा की गंध कहिए
खो रहे किस तरह
नाम अनाम कर ले?
.
संजीव
.
सांस जब
अविराम चलती जा रही हो
तब कलम
किस तरह
चुप विश्राम कर ले?
.
शब्द-पायल की
सुनी झंकार जब-जब
अर्थ-धनु ने
की तभी टंकार तब-तब
मन गगन में
विचारों का हंस कहिए
सो रहे किस तरह
सुबह-शाम कर ले?
.
घड़ी का क्या है
टँगी थिर,
मगर चलती
नश्वरी दुनिया
सनातन लगे, छलती
तन सुमन में
आत्मा की गंध कहिए
खो रहे किस तरह
नाम अनाम कर ले?
.
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