हास्य कविता:
कान बनाम नाक
संजीव 'सलिल'
*
शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार क्यों कान?
कहा नाक ने- 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?
क्यों अछूत श्रीमान, न क्यों कर मुझे खींचते?
क्यों कानों को लाड़-क्रोध से आप मींचते??
शिक्षक बोला- "छात्र की अगर खींच दूँ नाक,
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?
बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची, तो हुए फजीते..
नाक एक है कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या अधिक हो, सजे शीश पर ताज..
सजे शीश पर ताज, सभी संबंध भुनाते.
गधा बाप को और गधे को बाप बताते..
नाक कटे तो प्रतिष्ठा का हो जाता अंत.
कान खिंचे तो सहिष्णुता बढ़ती, बनता संत..
संत बने तो गुरु कहें सारे गुरुघंटाल.
नाक खिंचे तो बंद हो श्वास हाल-बेहाल..
कान ज्ञान को बाहर से भीतर पहुँचाते.
नाक दबा अन्दर की दम बाहर ले आते..
टाँग अड़ा या फँसा मत, खींचेगे सब टाँग.
टाँग खिंची, औंधे गिरा, बिगड़ेगा सब स्वांग..
खींच-खिंचाकर कान, हो गिन्नी बुक में नाम.
'सलिल' सीख कर यह कला, खोले तुरत दुकान..
खोले तुरत दुकान, लपक पेटेंट कराये.
एजेंसी दे-देकर भारी रकम कमाये..
हम भी खींचें जाएँ, दो हमको भी अधिकार.
केश निकालेंगे जुलुस, माँग न हो स्वीकार..
माँग न हो स्वीकार, न तब तक माँग भराएँ.
छोरा-छोरी तंग, किस तरह ब्याह रचाएँ?
साली जीजू को पकड़, खींचेगी जब बाल.
सहनशीलता सिद्ध हो, तब पायें वरमाल..
तब पायें वरमाल, न झोंटा पकड़ युद्ध हो.
बने स्नेह सम्बन्ध, संगिनी शुभ-प्रबुद्ध हो..
विश्वयुद्ध हो गृह में, बाहर खबर न जाए.
कान-केश को खींच, पराक्रम सुमुखि दिखाए..
आँख, गाल ना अधर खिंचाई सुख पा सकते.
कान खिंचाते जो लालू सम हरदम हँसते..
********************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें