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शनिवार, 29 दिसंबर 2018

त्रिपदी, दोहा, रोला, कुंडलिया

कुछ त्रिपदियाँ
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नोटा मन भाया है,
क्यों कमल चुनें बोलो?
अब नाथ सुहाया है।
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तुम मंदिर का पत्ता
हो बार-बार चलते
प्रभु को भी तुम छलते।
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छप्पन इंची छाती
बिन आमंत्रण जाकर
बेइज्जत हो आती।
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राफेल खरीदोगे,
बिन कीमत बतलाये
करनी भी भोगोगे।
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पंद्रह लखिया किस्सा
भूले हो कह जुमला
अब तो न चले घिस्सा।
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वादे मत बिसराना,
तुम हारो या जीतो-
ठेंगा मत दिखलाना।
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जनता भी सयानी है,
नेता यदि चतुर तो
यान उनकी नानी है।
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कर सेवा का वादा,
सत्ता-खातिर लड़ते-
झूठा है हर दावा।
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पप्पू का था ठप्पा,
कोशिश रंग लाई है-
निकला सबका बप्पा।
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औंधे मुँह गर्व गिरा,
जुमला कह वादों को
नज़रों से आज गिरा।
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रचना न चुराएँ हम,
लिखकर मौलिक रचना
निज नाम कमाएँ हम।
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गागर में सागर सी,
क्षणिका लघु, अर्थ बड़े-
ब्रज के नटनागर सी।
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मन ने मन से मिलकर
उन्मन हो कुछ न कहा-
धीरज का बाँध ढहा।
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है किसका कौन सगा,
खुद से खुद ने पूछा?
उत्तर जो नेह-पगा।
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तन से तन जब रूठा,
मन, मन ही मन रोया-
सुनकर झूठी-झूठा।
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तन्मय होकर तन ने,
मन-मृण्मय जान कहा-
क्षण भंगुर है दुनिया।
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कार्यशाला:
दोहा - कुण्डलिया
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नवल वर्ष इतना करो, हम सब पर उपकार।
रोटी कपड़ा गेह पर, हो सबका अधिकार।।  -सरस्वती कुमारी, ईटानगर

हो सबका अधिकार, कि वः कर्तव्य कर सके।
हिंदी से कर प्यार सत्य का पंथ वर सके।।
चमड़ी देखो नहीं, गुणों से प्यार सब करो।
नवल वर्ष उपकार, हम सब पर इतना करो।। -संजीव, जबलपुर
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