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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

समीक्षा: दोहा शतक मंजूषा

कृति चर्चा:
अगरबत्तियों की तरह महकता दोहा साक्षी समय का
डाॅ. प्रभा ब्यौहार
[कृति विवरण: दोहा दोहा नर्मदा, दोहा सलिला निर्मला, दोहा दिव्य दिनेश, संपादक द्वय;  आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डॉ. साधना वर्मा, प्रथम संस्करण २०१८, पृष्ठ प्रत्येक १६०, आवरण पेपरबैक-बहुरंगी, मूल्य क्रमश: २५०रु., २५०रु. व ३०० रु., प्रकाशक समन्वय प्रकाशन अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, संपादक संपर्क salil. sanjiv@gmail.com ]
जायसी का एक कथन हैः  
‘‘जो इतना जलेगा, वह कैसे नहीं महकेगा’’


                  यह उक्ति विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा "शांतिराज पुस्तक माला" के अंतर्गत सद्य
प्रकाशित दोहा संकलनत्रयी दोहा शतक मंजूषा भाग १ "दोहा-दोहा नर्मदा", भाग २ "दोहा सलिला निर्मला" तथा भाग ३ "दोहा दीप्त दिनेश" पर पूर्णत: चरितार्थ होती है। इस महत्वपूर्ण दोहा त्रयी को प्रकाशित किया है संस्कारधानी जबलपुर में साहित्यिक गतिविधियों और हिंदी-लेखन को प्रोत्साहित कर रहे अव्यावसायिक प्रतिष्ठान समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर ने।

                  काव्य की प्रक्रिया मूलतः अत्यंत जटिल हैं सर्वप्रथम भाव बीजों का अंत:करण में स्फुटन फिर भाषा व छंद के माध्यम से ग्राहक अथवा सहृदय तक संप्रेषण और फिर कवि की मनःस्थिति के अनुरूप भोक्ता की मनःस्थिति से एकाकार होकर विभिन्न रसों को निष्पादित करना। इस समूची प्रक्रिया में कवि एक विशिष्ट संवेदनशील व्यक्ति दृष्टिगत होता है, जो काव्य की विविध शैलियों में से अपने अनुरूप किसी एक को चुनता है और उसे नये भाव, नये शब्द देता है।

                  दोहा वह काव्य विधा है जिसमें दोहा का संसार और जीवन के विविध अनुभवों से प्रभावित होकर काव्य पंक्तियाॅं कह उठता है जहाॅं तक उपर्युक्त दोहा संकलनों का प्रश्न है। संपादक संजीव वर्मा 'सलिल' ने

‘‘दोहा गाथा सनातन, शारद-कृपा पुनीत।
साॅंची साक्षी समय की, जनगण-मन की मीत।।’’

                  कहकर दोहों की परिभाषा, इतिहास, विस्तार पर गहन विवेचन प्रत्येक संकलन में किया है कि यह वह दोहा विधा है जो ‘‘जनगण-मन को मुग्ध कर, करे हृदय पर राज’’।  दोहों का विस्तृत इतिहास है अपभ्रंश से क्रमश: विविध बोलियों में होते हुए दोहा हिंदी के हृदय में आ विराजा है। चंदबरदाई, अमीर खुसरो, कबीर, तुलसीदास आदि के दोहे तो ग्रामीण अंचल के निरक्षरों के मुख से भी सुने जा सकते हैं।

                  उपर्युक्त तीन दोहा संकलनों में से प्रत्येक में १५-१५ दोहाकारों के १००-१०० दोहे हैं जो प्रत्येक दोहाकार का प्रतिनिधित्व करते है विधागत समानता के अतिरिक्त दोहों में अन्वति और बिंब योजना कई स्थानों पर दर्शनीय है। उदाहरणार्थ- 
अ. खेत से डोली चली, खलिहानों की ओर।
पिता गेह से ज्यों बिदा, पिया गेह की ओर।। -अखिलेश  खरे

ब. किरणों की है पालकी, सूरज बना कहार।
ऊषा कुलवधु सी लगे, धूप लगे गुलनार।। -जयप्रकाश श्रीवास्तव

स. झूमी फसलें खेत में, महक रही है बौर।
अमराई संसद बनी, है तोतों का शोर।। -अविनाश  ब्यौहार

द. अलस्सुबह उठ चाय में, घोला प्यार-दुलार। 
है! विधाता माँगते, प्रियतम क्यों अखबार।।  

                  इन दोहों का विष्लेषण करने पर मुख्यतः तीन विषय दृष्टिगत होते है-' प्रकृति या पर्यावरण के प्रति आकर्षण, जीवन और परिवार के प्रति रागात्मक रुझान जो सुखद संकेत देते हैं तथा राजनैतिक जीवन में ह्रास होते नैतिक मूल्य, निश्चय ही प्रकृति सौंदर्य को मनुष्य ही नष्ट कर रहा है और इसलिए "आदम के हाथों हुआ, है जंगल लहू लुहान"। और आवश्यक है-
"रक्षित कर वातावरण, बचा जीव अस्तित्व।
टालो महाविनाश को, रहे मनुज स्वामित्व।।"

                  परिवर्तित मूल्य, तकनालाॅजी के हस्तक्षेप से संबंधों का बिखराव हुआ, परिवार टूट रहें है मानों किसी ने जीवन में नागफनी बो दी है। अविनाश कह उठते हैः
"पत्थर का यह शहर है, यहाॅं बुतों का वास।"
                  राजनीति का क्षेत्र तो मूलहीनता के उस स्तर पर है कि प्रजातंत्र की अवधारणा ही नष्ट हो रही है। उपर्युक्त संकलनों के प्रत्येक दोहाकार के दोहे का अर्थ पूर्ण संप्रेषण करते है। छंद और भाषा कथ्य को स्पष्ट करते हैं। अभिधा, लक्षणा का अधिक प्रयोग है, व्यंजना का कम प्रयोग संभवतः कथन की स्पष्टता के लिए है।
                  दोहा त्रयी में लगभग दो हजार वर्षों की दोहा-यात्रा के पड़ाव, दोहा के तत्व, उच्चार नियम, रस प्रक्रिया, दोहा की विशेषताएँ, विविध रसों के दोहे, भाषा गीत, विविध भाषा-बोलिओं के दोहे, और गीत सम्राट नीरज, राजनेता-कवि अटल जी तथा महीयसी महादेवी जी को स्मरण कर संपादक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी ने वस्तुत: अपने संपादन नैपुण्य का परिचय दिया है। 
  
                  कुल मिलाकर दोहे प्रभावित करते हैं और निश्चय ही ४५ दोहाकार अगरबत्ती की काड़ियों की तरह देर तक महकते रहेंगे।
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संपर्क: खण्डेलवाल काॅम्पलेक्स, महानद्दा जबलपुर

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