चित्रगुप्त वंदना: १
धन-धन भाग हमारे
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धन-धन भाग हमारे
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धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वार पधारे।
शरणागत को ट्रेन, प्रभु द्वार पधारे....
*
माटी तन, चंचल अंतर्मन,
पारस हो प्रभु कर दो कंचन।
जनगण-प्राण पुकारे,
प्रभु द्वार पधारे....
*
प्रीत की रीत सदैव निभाई,
लाज भगत की दौड़ बचाई।
कबहुँ न मन से बिसारें,
प्रभु द्वार पधारे....
*
मिथ्या जग की तृष्णा-माया,
अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
'सलिल' ईश-जय गा रे!
प्रभु द्वार पधारे....
*
संजीव
७९९९५५९६१८
शरणागत को ट्रेन, प्रभु द्वार पधारे....
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माटी तन, चंचल अंतर्मन,
पारस हो प्रभु कर दो कंचन।
जनगण-प्राण पुकारे,
प्रभु द्वार पधारे....
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प्रीत की रीत सदैव निभाई,
लाज भगत की दौड़ बचाई।
कबहुँ न मन से बिसारें,
प्रभु द्वार पधारे....
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मिथ्या जग की तृष्णा-माया,
अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
'सलिल' ईश-जय गा रे!
प्रभु द्वार पधारे....
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संजीव
७९९९५५९६१८
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