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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

दण्डक छंद सलिला 
जिस काव्य रचना की प्रत्येक पंक्ति में २६ से अधिक अर्थात २७ या अधिक वर्ण, सामान्य गणों के साथ हों उन्हें दण्डक छंद कहते हैं। दण्डक छंद की प्रत्येक पंक्ति सस्वर पढ़ते समय सांस भर जाती है। दंडक छंदों के २ प्रकार साधारण दण्डक (गणबद्ध) और मुक्तक दंडक (गण-बंधन मुक्त, लघु-गुरु विधान सहित) हैं।  

साधारण दण्डक के ८ पारंपरिक प्रकार चंडवृष्टिप्रपात (२ नगण + ७ रगण), मत्तमातंगलीलाकर (९ या अधिक रगण), कुसुमस्तावक (९ या अधिक सगण), सिंहविक्रीड़ (९ या अधिक यगण), शालू (तगण + ८ नगण + लघु-गुरु), त्रिभंगी ( ६ नगण + २ सगण + भगण + मगण + सगण + गुरु ),  अशोक पुष्प मंजरी (नीलचक्र ३०, सुधानिधि ३२ गुरु-लघु वर्ण), तथा अनंगशेखर (महीधर २८ लघु-गुरु वर्ण) हैं। 

मुक्तक दण्डक के ९ पारंपरिक प्रकार  (अ. ३१ वर्णीय) मनहरण, जनहरण, कलाधर (आ. ३२ वर्णीय) रूप घनाक्षरी, जलहरण, डमरू, कृपाण, विजया तथा (इ. ३३ वर्णीय) देव घनाक्षरी हैं। 
चंडवृष्टिप्रपात छंद 
जाति: २७ वर्णीय दण्डक जातीय।    
गण सूत्र: २ नगण + ७ रगण = ननसतर। 
आंकिक सूत्र: १११ १११ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ = २७ वर्ण। 
छंद लक्षण: प्रति पंक्ति २७ वर्ण, २ (१११) + ७ (२१२)। सामान्यत: ४ पंक्तियाँ, पदांत २-२ पंक्तियों में सम पदांत।
लक्षण छंद: 
नन सतर न भूलना रे!, बनें चण्ड वर्षा तभी, छंद गाओ सदा झूम के। 
कम न अधिक तौलना रे!, करें काम पूरा अभी, प्रीत पाओ प्रिया चूम के।।
धरणि-गगन हैं सँगाती, रहें साथ ही साथ वे, हेरते हैं सदा दूर से। 
धरम-करम है सहारा, करें काम हो नाम भी, जो न मानें जिएं सूर से।।    
उदाहरण: 
१. सरस सरल गीत गा रे!, सुनें लोग ताली बजा, गीत तेरा करें याद वे। 
    सहज सुखद बोल बोले, गुनें नित्य बातें सदा, भोर तेरी करें याद वे।। 
    अजर अमर कौन होता, सभी जन्म लें जो मरें, देवता भी धरा से गए।
    'सलिल' अमिय भूल जा रे!,गले धार ले जो मिले, जो मरे हैं वही तो जिए।।
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प्रचित छंद 
'ननसतर' वृत्त में एक या अधिक 'रगण' जोड़ने से अनेक छंद बनते हैं जिन्हें प्रचित छंद कहा जाता है। छंदप्रभाकरकार ने सात प्रचित छंद अर्ण (२ नगण + ८ रगण), अर्णव (२ नगण + ९ रगण), ब्याल (२ नगण + १० रगण), जीमूत (२ नगण + ११ रगण), लीलाकर (२ नगण + १२ रगण), उद्दाम (२ नगण + १३ रगण) तथा शंख (२ नगण + १४ रगण) का उल्लेख किया है। 
सिंहविक्रांत छंद 
२ नगण एवं  ७ या अधिक यगण के मेल से बने दण्डक छंदों को 'सिंहविक्रांत' छंद कहा गया है। 

   

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