नूतन छंद सलिला १
आज से श्रीगणेश हो रहा है धारावाहिक छंद श्रृंखला का। इसके मूल में मातुश्री शांति देवी व बुआ श्री महादेवी जी की प्रेरणा, डॉ. सुरेश कुमार वर्मा व आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी की प्रोत्साहन तथा स्व. गार्गीशरण मिश्र 'मराल' आचार्य भगवत दुबे व गुरु सक्सेना का आग्रह है। लिपि-लेखनी अक्षरदाता प्रभु चित्रगुप्त, माँ सरस्वती तथा माँ नर्मदा का कृपा से हो रहे इस छांदस अनुष्ठान के पूर्व आचार्य पिंगल, हिंदी के प्रथम व्याकरणाचार्य कामता प्रसाद गुरु तथा छंदाचार्य जगन्नाथ प्रसाद भानु को प्रणाम।
संजीव
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नूतन छंद सलिला १
१. गुरु घनाक्षरी
संकेत- गुरु = दीर्घ ध्वनि।
विधान-
प्रति पंक्ति ३२ वर्ण।
८-८-८-८ पर यति।
लयखंड- सारेगामा = गुरु गुरु गुरु गुरु।
उदाहरण-
चंदा मामा! प्यारे-प्यारे, बच्चों की आँखों के तारे, तारो-तारो तारे बोले, होंगे बच्चों वारे-न्यारे।
आओ! आओ!! खेलो-कूदो, दौड़ो-भागो बाड़ें फाँदो, ना ना ना ना नाना बोले, नानी बोली हाँ हाँ हाँ रे!
मेघा राजा लाया बाजा, खा जा खाजा ताजा-ताजा, पानी-पानी क्यों होता तू?, पानी पी लो पिज्जा ना ले-
गैया दुद्दू पी ले लल्ला, हल्दीवाला छोड़ो हल्ला, चैया प्याला भूलो भैया, खेलो ता-ता-थैया जा रे।।
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नूतन छंद सलिला २
सबल घनाक्षरी
संकेत- घनाक्षरी = ३२वर्ण, सब + ल = सब लघु ध्वनियाँ।
विधान-
प्रति पंक्ति ३२ लघु वर्ण, गुरु निषिद्ध।
८-८-८-८ पर यति।
* प्याला भूल भैया, खेले ता-ता-थैया जा रे!
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उदाहरण-
प्रमुदित मुकुलित, सलिल हुलसकर, शिखर-शिखर चढ़, उछल उतरकर।
कलि-मल हरकर, हहर-हहरकर, घहर-घहरकर, सतत प्रवहकर।।
कमल-चरण चल, शतदल-कर भर, जलज-अधर पर, धरकर हुलसित-
विनत न मद कर, सहज सुलभ रह, शशि सहचर बन, शिव-सिर चढ़कर।।
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१७-१२-२०१८
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