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बुधवार, 12 दिसंबर 2018

दोहा गीत

सामयिक दोहा गीत 
*
अहंकार की हार 
*
समय कह रहा: 'आँक ले
तू अपनी औकात। 
मत औरों की फ़िक्र कर,
भुला न बोली बात।।
जीत नम्रता की हुई,
अहंकार की हार... 
*
जनता ने प्रतिनिधि चुने, 
दूर करें जन-कष्ट। 
मुक्त कराओ किसी से,
नहीं घोषणा शिष्ट।।
बड़बोले का सिर झुका,
सही नियति का न्याय। 
रोजी छीन गरीब की,
हो न सेठ-पर्याय।।
शाह समझ मत कर कभी,
जन-हित पर आघात।
समय कह रहा आँक ले 
तू अपनी औकात।। 
लौटी आकर लक्ष्मी 
देख बंद है द्वार, 
जीत नम्रता की हुई,
अहंकार की हार... 
*
जोड़-तोड़कर मत बना,
जहाँ-तहाँ सरकार। 
छुटभैये गुंडइ करें, 
बिना बात हुंकार।। 
सेठ-हितों की नीतियाँ,
अफसर हुए दबंग।
श्रमिक-कृषक क्रंदन करें, 
आम आदमी तंग। 
दाम बढ़ा पेट्रोल के, 
खुद लिख ली निज मात। 
समय कह रहा आँक ले 
तू अपनी औकात।। 
किया गैर पर; पलटकर 
खुद ही झेला वार,
जीत नम्रता की हुई,
अहंकार की हार... 
*
लघु उद्योगों का हुआ,
दिन-दिन बंटाढार। 
भूमि किसानों की छिनी,
युवा फिरें बेकार। 
दलित कहा हनुमंत को, 
कैसे खुश हों राम?
गरज प्रवक्ता कर रहे,
खुद ही जनमत वाम। 
दोष अन्य के गिनाकर, 
अपने मिटें न तात। 
समय कह रहा आँक ले 
तू अपनी औकात।। 
औरों खातिर बोए थे,
खुद को चुभते खार, 
जीत नम्रता की हुई,
अहंकार की हार... 
***
१२.१२.२०१८
(३ राज्यों में भाजपा की हार पर)

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